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द्वितीय पर्व
नृत्यन्ती सा जिनस्याग्रे हावभावविचक्षणा । चञ्चला चञ्चलेवाभाद्गगने गुणगुण्ठिता ॥२१७ वीणावंशविनोदेन तरला ताललास्यगा । काकलीकलनासक्ता ननते लेखनतंकी ॥२१८ तदा सभ्याः शुभाकारांनटन्तीं तां निरीक्ष्य च । चित्रिता इव संभेजुः कामवस्थां वचोऽतिगाम्।। तत्क्षणे क्षणदेवासीददृश्या सायुषः क्षये । लास्यं विलयमापन्नं वृक्षवन्मूलसंक्षये ॥२२० ज्ञात्वा जिनेश्वरस्तस्या विपत्तिं विपदातिगः । निर्वदं वेदयन्दिव्यं विवेद जगतः स्थितिम् ।।२२१ आजवंजवजीवानां जीवनं हि विनश्वरम् । जीवनं हस्तगं यद्वत् दृष्टनष्टं क्षणान्तरे ॥२२२ अहो केऽत्र भवे जीवाः स्थास्त्रवो विहितागसः। दृश्यन्ते जलदा यद्वत्कथमत्र स्थितौ मतिः।।२२३ इत्यालोच्य चिरं चित्ते चैतन्यगतचेतनः । राज्ये निवेशयामास भरतं भरताधिपम् ।।२२४ सुरम्ये पोदने बाहुबलिनं बलशालिनम् । सोऽस्थापयत्तथा शेषान्सुतान्नीवृति नीवृति ॥२२५ संस्त्राप्य स सुरैनीतो याप्ययानेन युक्तिमान् । वन भूषणभारेण भूषितो भरतादिभिः ॥२२६ वटाधःस्थितिमासाद्य नवम्यां चैत्रकृष्णके । दिदीक्षे कृतकेशादिलश्चनो भगवाजिनः ॥२२७
चतुर, गुणोंसे युक्त, जिनेश्वरके आगे नृत्य करनेवाली वह चंचल नीलांजसा आकाशमें चंचल बिजलीके समान दीखती थी । तालके ठेकेपर नृत्य करनेवाली, काकलीस्वरसे गायन करनेवाली वह नीलांजसा वीणा और बासुरी वाद्यके विनोदसे नृत्य करने लगी। उस समय नृत्य करनेवाली उस सुंदरीको देखकर सभासदगण चित्रसदृश स्तब्ध हो अपूर्व और अवर्णनीय अवस्थाको प्राप्त हुए ॥ २१७-२१९ ॥ वह नीलांजसा आयुष्यका नाश होनेसे बिजलीके समान तत्काल अदृश्य हो गई। मूल नष्ट होनेपर जैसा वृक्ष नष्ट होता है उसी प्रकार नीलांजसाके विलयसे वह नृत्य भी नष्ट हुआ ॥ २२० ॥ आपदाओंसे रहित आदिभगवंतने उसका नाश देखकर दिव्य वैराग्यका अनुभव करते हुए जगत्की स्थितिको समझा । अंजलीमें रखा हुआ पानी जैसा देखते देखते क्षणभरमें नष्ट होता है वैसेही संसारी जीवोंका जीवन विनाशी है । अहो ! इस संसारमें कौन कर्मबद्ध जीव मृत्युको अगोचर हैं ? सब संसारी जीव मेघके समान नश्वर दीखते हैं। अतः इनकी नित्यतामें विश्वास क्यों किया जाता है ? इस प्रकार कुछ कालतक विचार कर अपने चैतन्यस्वरूपमें उपयोगको लगानेवाले आदिप्रभुने भरतखंडके स्वामीको-भरतको राज्यपर स्थापित किया । बलशाली बाहुबलिकुमारको सुरम्य पोदनपुरमें राज्यारूढ किया । तथा अन्य निन्यानवे पुत्रोंको भिन्न-भिन्न देशका राज्य दिया । देवोंने आदिप्रभुका अभिषेक किया, अनेक अलंकारोंसे भूषित, युक्तिज्ञ आदिभगवानको देवोंने पालखीमें बिठाकर भरतादिपुत्रोंके साथ बनमें लाये । वहां वटके नीचे आदिप्रभुने चैत्रकृष्णनवमी के दिन केशलोचपूर्वक दीक्षा धारण की ॥ २२१-२२७ ।। पापका नाश करनेवाले योगी आदिजिन छह मासतक ध्यानमें निमग्न हो गये । महाभूतोंसेव्याघ्रादि बडे प्राणियोंसे सेवित प्रभु छह मासतक उपवास धारण कर खडे रहे ॥ २२८ ॥ छह
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