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पाण्डवपुराणम् तत्राथ वृषभेशेन कुरुवंशविभूषणौ । नरेन्द्रौ स्थापितौ यत्र सोमश्रेयांसौ तौ वरो ॥ २०७ तत्र सोमस्य सोमास्या लसल्लक्ष्मीमती सती। लक्ष्मीमती प्रिया चासीत्प्राणेभ्योऽपि गरीयसी२०८ योल्लसत्पदविन्यासालङ्कारपरिभृषिता । गूढार्था सद्गुणा रम्या त्यक्तदोषेव भारती ॥२०९ मञ्जूषेव समस्तस्यालङ्कारस्य स्फुरत्प्रभा । सच्छवेः सगुणस्यापि या भाति भुवनत्रये।।२१० स्फुरत्कुण्डलकेयूरतारहारा समुद्रिका । समेखला शुभाकारा शोभते योपमातिगा ॥२११ चन्द्रानना कुरङ्गाक्षी चन्द्रखण्डललाटिका । पक्वश्रीफलसंछन्नपयोधरा बभौ च या ॥२१२ नितम्बिनीगणानां या सीमां कर्तुं विनिर्मिता । वेधसा विधिवत्सर्वां सामग्रीमनुभूय वै।। २१३ तयोः सुतः सदा श्रीमाञ्शत्रुपक्षक्षयंकरः । जयाभिधी जयश्रीकः साक्षाजय इवापरः॥२१४ अथ श्रीवृषभो भाति वसुधां वसुधां बुधः । सुधामयीं प्रकुर्वाणो नानानीतिसमन्विताम्।।२१५ सुनासीराज्ञया नृत्यं निर्मितुं नटपेटकैः । नीलाञ्जसा समायासीजिनाग्रे सह सद्गुणा ।। २१६
श्लेष आदि काव्यके सद्गुणोंसे सुंदर और अप्रतिपत्ति आदि दोषोंसे वाजत सरस्वती समान शोभती थी । अर्थात् सुंदर चरणोंको लीलासे धरतापर रखती हुई, कटक-कुण्डलादि अलंकारोंको धारण करनेवाली, गूढाभिप्रायको धारण करनेवाली, सत्यभाषणादि सद्गुणयुक्त आर सौन्दर्य धारण करनेवाली, लक्ष्मीमती नामकी महारानी थी । वह संपूर्ण अलंकारा, सद्गुणा तथा उत्तम कान्तिकी दीप्तिमान पिटारीसी त्रैलोक्यमें शोभती थी । सुन्दर शरीरयुक्त वह रानी चमकनेवाले कर्णकुंडल, बाजुबंद, प्रभायुक्त हार, मुद्रिका तथा करधनी इन आभूषणोंको धारण कर अनुपम शोभाको धारण करती थी । लक्ष्मीमती रानीका मुख चन्द्रके समान था, आंखें हरिणके आंखोंके समान थीं । ललाट अष्टमीके चन्द्रके समान था। तथा पक्क श्रीफल--बिल्वफलके समान पुष्ट स्तन थे । ऐसे सुंदर अवयवोंसे यह रानी शोभती थी। ब्रह्मदेवने योग्य-पद्धतिसे संपूर्ण कारणसामग्रीका अनुभव करके इस लक्ष्मीमती रानीको सर्व स्त्रियोंमें श्रेष्ठ बनाया ॥२०७-२१३॥ महाराज सोमप्रभ और लक्ष्मीमति रानीका शत्रुपक्षका क्षय करनेवाला श्रीमान् जय नामक पुत्र था, जो साक्षात् दूसरा जयही प्रतीत होता था ॥२१४॥
[ नीलांजसा देवाङ्गनाका नृत्य देखकर आदिभगवानने विरक्त होकर दीक्षा धारण की । ] सुवर्णादि धनको धारण करनेवाली पृथ्वीको अनेक नीतियुक्त और अमृतमय करनेवाले बुद्धिमान आदिभगवान् शोभते थे । उस समय इन्द्रके आदेशसे सद्गुणयुक्त नीलाञ्जसा नामकी देवाङ्गना जिनेश्वरके आगे नृत्य करनेके लिये नटोंका समूह लेकर आगई ॥ २१५-२१६ ॥ हावभावमें
१५ सोमश्रेयांसनामानौ नरेन्द्रौ स्थापितौ वरौ । म नरैन्द्रौ स्थापितौ सोमश्रेयांसौ भ्रातरौ वरौ ।
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