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पाण्डव पुराणम्
धान्य भेदाः सदा भोज्या भोजने क्षुद्विहानये । पचनं भाण्डभेदाश्च दर्शितास्तेन धीमता ।। १५३ असिषी कृषिर्विद्या वाणिज्यं पशुपालनम् । एवं षट्कर्मसंघातं वृषभस्तानुपादिशत् ॥ १५४ भरतादिसुपुत्राणां शतैकं शास्ति शिक्षया । स ब्राह्मी सुन्दरीपुत्र्या लेभे लब्धकलागुणे ॥ १५५ सुमुहूर्तेऽथ शक्रेण नाभिर्देवं वरासने । संरोप्य स्थापयामास राज्ये प्राज्ये प्रजाहिते ॥१५६ ततो देवश्व देवेशं देशस्थापनहेतवे । आदिदेश विदां मान्यो विदेह इव भारते || १५७
वृतः कोशलाद्याथ निर्मितास्तेन धीमता । ग्रामो वृत्यावृतो रम्यपुरं शालेन संवृतम् ।। १५८ नद्यद्रिवेष्टितं खेटं कर्वटं पर्वतैर्वृतम् | ग्रामपञ्चशतोपेतं मटम्बं मण्डितं जनैः ॥ १५९ पतनं बहुरत्नानां योनीभूतं महोन्नतम् | सिन्धुसागरवेलाभिर्युतं द्रोणं मतं जनैः ॥ १६० वाहनं पर्वतारूढमेवं भेदाः प्रतिष्ठिताः । वर्णास्त्रयो वरास्तेन क्षत्रिया वैश्यसञ्ज्ञकाः || १६१ शूद्रा अशुचिसंपन्नाः स्थापिताः सद्भिया इमे । एवं च निर्मिते वर्णे क्षात्रभेदमतः श्रृणु ।। १६२
योग्य हैं । बुद्धिमान प्रभुने उनके पकाने की विधि और अनेक प्रकारके बर्तन भी बताये ।।४४-५३॥ असि-शस्त्रोंके द्वारा अपना और प्रजाका शत्रुसे रक्षण करना । मत्रि - जमाखर्च - बहीखाता इत्यादिक लिखना । कृषि खेती करना । विद्या- गायनादि कलाओंसे उपजीविका करना । वाणिज्य - व्यापार करना । शिल्प - वाद्य बजाना, बढई आदिका कार्य करना । इन छह कर्मो का उपदेश आदीवर प्रजाओंको दिया ॥ ५४ ॥ भरतादिक एकसौ एक पुत्रोंको प्रभुने अनेक शास्त्रोंका शिक्षण दिया । ब्राह्मी तथा सुंदरी इन दो पुत्रियोंको कला और गुणोंमें निपुण किया ॥ ५५ ॥
[ नाभिराजने प्रभुको राज्य दिया । ] उत्तम मुहूर्त में नाभिराजाने इन्द्रकी सहायता से प्रभुको उत्तम आसनपर बिठाकर प्रजाका हित करनेवाला उत्कृष्ट राज्यपद प्रदान किया । तदनंतर विद्वमान्य आदिप्रभुने इंद्रको विदेहके समान इस भारत क्षेत्र में देशोंकी रचना करनेके लिये आदेश दिया ॥ १५६-१५७ ॥ उस निपुण इंद्रने कोशलादिक अनेक देशों की रचना की । जिसके चारों ओर बाडी हो उसको गांव कहते हैं। जिसके चारों ओर परकोटा हो वह नगर रमणीय समझें । नदी और पहाडसे घिरे हुए गांवको खेट कहते हैं। तथा पर्वतोंसे घिरे हुए गांवको कर्बट कहते हैं। पांचसौ गांव जिसके अधीन हैं ऐसे गांवको मटम्ब कहते हैं, वह जनोंसें अलंकृत रहता है । जो अनेक रत्नोंकी खानियोंसे युक्त तथा जो वैभवयुक्त है उसे पत्तन कहते हैं । नदी और समुद्रकी मर्यादाओंसे युक्त गांवको द्रोण कहते हैं । पर्वतपर जो गांव है वह 'वाहन' कहा जाता है । इस प्रकार इन्द्रने ग्रामादिकोंके भेदोंसे युक्त देशोंकी रचना की ।। ५८- ६१ ॥
[वर्ण और वंशोंकी स्थापना | शुभमतिवाले आदि भगवानने तीन वर्णोकी स्थापना की । क्षत्रिय आर वैश्य ये दो वर्ण उत्तम हैं और शूद्र अपवित्रतासंपन्न हैं । इस प्रकार प्रभुने उज्ज्वल ज्ञानसे वर्णोंकी रचना की । अब हे श्रेणिक, क्षत्रियोंके भेदोंका वर्णन सुनो ॥६२॥ चतुर भगवान् वृषभदेव ने राज्यकी अव
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