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द्वितीयं पर्व
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तया न विद्यते विद्वन् दारिद्र्यं क्व गतं नृणाम् । इदानीं च क्षुधा नाथ यथा याति तथा कुरु ।। १४० त्वदाज्ञापालकाः पुण्याः सुपर्वाणः सुपावनाः । अतः किं दुर्लभं देव वर्तते तव सांप्रतम् । । १४१ सति त्वयि मरिष्यामस्तव देव कृपा कथं । अतः पाहि पवित्रास्मान्क्षुधार्त्तान् क्षीण विग्रहान् ॥ १४२ तेषां दीनं वचः श्रुत्वा दयावान्भगवानभूत् । दीनान्दृष्ट्वा हि कस्यात्र दया नो जायते लघु || १४३ उवाच वृषभो धीमान्कृपया कृपणान्प्रति । महीरुहा महीपृष्ठे मह्यन्ते महितैर्गुणैः ॥ १४४ ते भोज्याः खल्वभोज्याश्च वर्तन्ते विविधा द्रुमाः । तत्र तान्प्रथमान्भोज्यानाद्रियन्ते नरोत्तमाः १४५ वृक्षा वल्लयस्तृणान्येव सुवनस्पतयोऽखिलाः । भोज्याभोज्यादिभेदेन भिद्यन्ते विबुधा जनाः॥ १४६ रसाला लाङ्गलीवृक्षा जम्बीरा जम्बवस्तथा । राजादनाथ खर्जूराः पनसाः कदलीद्रुमाः || १४७ मातुलिङ्गा मधूकाश्च नारङ्गाः क्रमुकास्तथा । तिन्दुकाश्च कपित्थाश्च बदर्यविश्चिणीद्रवः ।। १४८ • भल्लातक्यश्च चार्वाद्या भोज्या ज्ञेयाश्च श्रीफलाः । वल्ल्यस्तु गोस्तनीमुख्याः कुष्माण्डिन्यश्च चिर्भटाः इत्याद्या बहवो वल्लयो भोज्याश्चान्याः पराः स्मृताः । व्रीहयः शालयो मुद्रा राजमाषाश्च माषकाः ॥ गोधूमाः सर्षपाचैलास्तिलाः श्यामाककङ्गवः । कोद्रवाच मसूराच वल्लाश्च हरिमन्थकाः ॥। १५१ यत्रा धानास्त्रिपुटका आढकाश्च कुलत्थकाः । वेणवा वनमुद्राश्व नीवारप्रमुखा इमे ॥। १५२
पवित्र और पुण्यवान् देव आपकी आज्ञाके वश हैं। इसलिये हे प्रभो, ऐसे समय आपको क्या दुर्लभ है ? हे ईश, आपके होते हुए भी यदि हमारी मृत्यु हो गयी तो हमपर आपकी कृपा कैसी ? इसलिये हे देव, क्षुधासे क्षीणशरीरवाले हम लोगोंकी आप रक्षा कीजिये ॥ ३८-४२ ॥ उन प्रजाजनोंकी दीनवाणी सुनकर प्रभुके चित्तमें करुणा उत्पन्न हुई । भला ! दीनोंको देखकर तत्काल किसके मन में दया नहीं जागृत होगी ? || ४३ ॥
[ प्रभुने जीवनोपाय बताये । ] ज्ञानवान् श्रीवृषभदेवने उन दीन प्रजाजनोंको दयासे इस प्रकार कहा " इस भूतलपर ये दीखनेवाले वृक्ष अपने उत्कृष्ट गुणोंसे आदरणीय बने हैं । अर्थात् जिन वृक्षों को आप लोग देख रहे हैं उनमें अच्छे अच्छे गुण हैं । अनेक प्रकारके वे वृक्ष भोज्य और अभोज्य हैं । उनमें से प्रथम भोज्यवृक्षोंका श्रेष्ठ लोग उपयोग करते हैं । वृक्ष, औ घास ये सब अच्छी वनस्पतियां हैं । इनके भोज्य - वनस्पति और अभोज्य - वनस्पति ऐसे दो भेद बुद्धिमान लोक करते हैं। आम्रवृक्ष, नारियल, नीबू, जामून, राजादन - चिरोंजी वृक्ष, खजूर, पनस, केला, बिजौरा, महुआ, नारिंग, सुपारी, तिन्दुक, कैंथ, बेर, चिंचणी - इमलीका वृक्ष, भिलावा चारोली, श्रीफल आदिक वृक्ष अर्थात् उनके फल भोज्य हैं । बेलोंमें द्राक्षा, कुष्मांडी और चिटीaast आदिक लतायें मुख्य हैं । इनसे अन्य वल्ली अभोज्य हैं । व्रीहि, शालि, मूंग, चौलाई, उडीद, गेहूं, सरसौ, इलायची, तिल, श्यामाक, कोद्रव, मसूर वाल, चना, जौ, धान, त्रिपुटक, तूअर, वैणव – वनमूंग और नीवार इत्यादिक जो धान्यभेद हैं वे सब भोजनमें भूखशमनके लिये खाने
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