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द्वितीयं पर्व
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गोलकेन समं भाति चैतत्खपुष्पवर्णनम् । एनं पुराणपन्थानं कथं लोका हि मन्वते ॥५४ पाण्डुना गोलकेनापि श्वेतकुष्ठेन कुष्ठिना । कुन्ती मद्री च संप्राप्ता विवाहवरमङ्गलम् ।।५५ . एकदा वरनारीभ्यां पाण्डुराखण्डलोपमः । मृगयायां मृगादीनां मारणाय वनेगमत् ॥५६ ते सज्जनाः सदा सन्तः सर्वजीवदयापराः । मृगयायां मृगान्नन्ति चैतरिक सांप्रतं प्रभो ॥५७ मृगीभूय वने तत्र तापसद्वन्द्वमुत्तमम् । सुरतक्रीडनासक्तं जघान पाण्डुपण्डितः ॥५८ मृगत्वे हि मनुष्याणां योग्यता जायते कथम् । मृगादिमारणं राज्ञो धार्मिकस्य कथं भवेत्।।५९ बाणेनापि मृगो विद्धो नृपेण मृतिमाप च । सुरती तस्त्रिया दत्तः शापो राज्ञ इति ध्रुवम् ।।६० मन्नाथवत्तवापि स्यायुवतीसंगमक्षणे । मृतिः कष्टेति संलब्धशापी भूपो बभूव च ॥६१ कुन्त्या कर्णेन संलब्धः कर्णः किं सूर्यसंगतः। नराः कर्णोद्भवा नाथ नेक्षिताश्च क्षितौ कचित्।।६२ ततः कुन्ती सुधर्मेण सुरतासक्तमानसा । दधे गर्भ ततो लेभे युधिष्ठिरतनूद्भवम् ॥६३
धृतराष्ट्र के साथ हुआ । हे प्रभो, यह सब वर्णन आकाशपुष्पके समान मिथ्या दिखता है । इस प्रकारके असत्य पुराणमार्गको लोग कैसे मान रहे हैं ? यह आश्चर्य की बात है ॥ ४८-५४ ॥
[ पाण्डवोंकी उत्पत्तिकी अन्यमतमें विचित्र कथा ] श्वेतकुष्ठसे कुष्ठी और गोलक पाण्डु राजाके साथ कुन्ती और मद्रीका विवाह हुआ । किसी समय इन्द्रके समान वैभवशाली पाण्डु राजा अपनी दो सुंदर पत्नियोंके साथ वनमें हरिणादिक पशुओंकी शिकार करनेके लिये गया था । हे प्रभो, पाण्डु आदिक भूपाल हमेशा सर्व प्राणियोंपर दया करनेवाले थे परन्तु वे शिकारमें हरिणादिक पशुओंको मारते थे यह वर्णन क्या योग्य है ? उस समय वनमें ऋषि और उसकी पत्नी हरिण और हरिणीका रूप धारण कर सुरतक्रीडा करनेमें आसक्त हुए थे । उनको देखकर विद्वान् पाण्डु राजाने उन दोनोंको मार डाला । हे प्रभो, मनुष्योंमें मृगरूप धारण करने की योग्यता कैसी ! तथा धार्मिक राजा मृगादिकों को कैसे मारेगा ? मुरतक्रीडा करनेवाला हरिण राजाके बाणसे विद्ध हुआ, इससे वह मर गया । " हे राजन्, मेरे पतिके समान तुम भी अपनी स्त्रीके साथ संभोग करते समय मरण करोगे । इस प्रकार उस हरिणीके द्वारा राजाको शाप प्राप्त हुआ ।। ५५-६१ ॥
[अन्यमतमें कर्णादिकोंकी उत्पत्ति कथा] क्या सूर्यके संगमसे कुन्तीको कानसे कर्णकी प्राप्ति हुई ? हे नाथ, मनुष्योंकी उत्पत्ति कानसे होती हुई इस भूतल पर कहीं भी किसीने नहीं देखी है ? तदनन्तर कुन्ती सुधर्म नामक देवके साथ सुरत करनेमें आसक्त हो गई; तब उसे गर्भधारणा हुई और उसने युधिष्ठिर नामक पुत्रको जन्म दिया । वायुने कुन्तीके साथ संभोग किया, तब भयरहित भीम पैदा हुआ । इन्द्रके साथ मैथुन करनेसे कुंतीको चान्दीक समान शुभ्र अर्जुन नामक पुत्र प्राप्त
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