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द्वितीयं पर्व स्त्रीत्वं गतस्तदा भ्रूणः पूर्णे मासि कदाचन । मात्सिकेन च सा मत्सी दृष्टा लब्धा विदारिता॥३६ ततस्तजठरात्तूर्ण निर्गता मत्स्यगन्धिका । मत्स्यगन्धाख्यया ख्याता नारी पूतिकलेवरा ॥३७ दौर्गन्ध्याद्धीवरेणैषा गङ्गाकूले निवासिता । द्रोणीवाहनकृत्येन जीविता यौवनोन्नता ॥३८ कदाचिदृषिणा पारासरेण नावि संस्थिता । सा संग संगिता भेजे भ्रूणं कर्मवशाल्लघु ।।३९ तेन योजनगन्धा सा दीर्पणानेहसा कृता । सुतं व्यासाभिधं जज्ञे रूपिणं नयकोविदम् ॥४० जन्मानन्तरतस्तूर्ण व्यासो वेदाङ्गपारगः । जनकान्तिकमापासौ तपोऽयं तपसावृतः ॥४१ शान्तनेन सुशान्तेन दृष्ट्वा योजनगन्धिका । उपयेमे सुतौ लेभे सा चित्रं च विचित्रकम्।।४२ शान्तनोश्च सुवीर्येण जाता सा सुततामगात् । पुनर्विवाह्य सा तेन सुता जाया कथं कृता।।४३ तौ च चित्रविचित्राख्यौ प्राप्तपाणिप्रपीडनौ । मृते तातेऽथ संप्राप्तराज्यौ तौ मृतिमापतुः॥४४
तबसे वह गर्भ बढता गया । उस समय नौ महिने पूर्ण होनेपर वह गर्भ स्त्रीत्वको प्राप्त हुआ । किसी धीवरने उस मछली को देखा, पकड लिया और चीर डाला । तब उसके पेटसे मत्स्यके समान दुर्गन्ध शरीरको धारण करनेवाली 'मत्स्यगन्धा' नामसे प्रसिद्ध बालिका निकली । दुर्गन्धा होनेके कारण धीवरने गंगाके किनारेपर उसका निवास करा दिया । वहां वह नौका चला कर उदरनिर्वाह करने लगी । कुछ काल बीतनेपर वह तरुणी हो गई ॥ ३५-३८ ॥ एक दिन नौकामें रहनेवाली उस कन्याके साथ पाराशर ऋषिका सम्बन्ध हुआ । दैवयोगसे वह गर्भवती हो गई, उसे पाराशर ऋषीने बहुत दिनों बाद योजनगंधा बनाया अर्थात् उसका शरीर एक योजन तक सुगन्ध फैलाने वाला बनवाया । योजनगंधाने 'व्यास' नामक सुंदर और नीतिनिपुण पुत्रको जन्म दिया । जन्मके अनन्तर वेदाङ्गोंमें निपुण, तपोयुक्त वह व्यास तपके लिये अपने पिताके पास चला गया ॥ ३९-४१ ॥
[शान्तन राजाके साथ योजनगंधाका विवाह ] अतिशय शान्त स्वभावी शान्तन राजाने एक दिन योजनगन्धाको देखा और उसके साथ उसने विवाह किया। उससे योजनगंधाके चित्र और विचित्र नामके दो पुत्र हुए । शांतनके वीर्यसे ही यह योजनगंधा उत्पन्न हुई थी । अतएव यह शांतनकी पुत्री हुई, फिर उसे राजाने किस तरह अपनी पत्नी बना लिया ? चित्र विचित्र राजकुमारोंका विवाह हुआ, वे दोनों पिताका देहान्त होनेपर राज्य पालन करने लगे और कुछ कालके बाद उनकी मृत्यु
१ स. पाराशरेण।
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