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पाण्डवपुराणम्
सर्वज्ञपुत्र सर्वज्ञदेश्य सर्वज्ञवत्सल । त्वत्तः सर्व बुभुत्सेऽहं नाना लोकहितावहम् ॥ २५ प्रसीद पुरुषश्रेष्ठ दयां कुरु दयापर | चरितं श्रोतुमिच्छामि पाण्डवानां कुरूद्धवाम् ||२६ पाण्डवाः कौरवाः ख्याताः क्षितौ क्षितिपसेविताः । कस्मिन्वंशे समुत्पन्ना वदेति च विदांवर ॥ २७ कुर्वन्वयसमुत्पत्तिर्युगे कस्मिन्नजायत । के के नराश्य संजातास्तद्वंशे वसुधातले ॥२८ के के तीर्थकरास्तीर्थ्याः सुतर्थिपथपण्डिताः । के के च चक्रिणो वंशे कुरूणां गुणगौरवे ॥ २९ नाथात्र श्रूयते शास्त्रे परकीये कथान्तरम् । तद्वन्ध्यासुतसौरूप्य वर्णनाभं विभाति मे ||३० तथा हि शान्तनो राजा युद्धार्थं क्वापि यातवान् । तत्र स्थितः स्वकामिन्या रजः कालं विवेद सः ॥ ३१ स्वरेतो रतिदानाय निषिच्य ताम्रभाजने । समुद्र्य तत्स भूमीशो बबन्ध श्येनकन्धरे ॥ ३२ स पत्री प्रेषितस्तेन स्वजायां प्रति सत्वरम् | अटन्पथि समायासीद्गङ्गोपरि सुलीलया ||३३ तत्रान्यः श्येनको मार्गे दृष्ट्या तं पत्रिणं रुषा । आयान्तं पातयामास छित्त्वा सुयुध्य ताम्रकम् ॥ ३४ मत्सीमुखेऽपतत्तच्च सरेतः स्थितिमाप च । पुनस्तज्जठरे गर्भो बभूव तत ऊर्जितः || ३५
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सकल वस्तु जानते हैं। इसलिये आपको सर्वज्ञदेश्य अर्थात् श्रुतकेवली कहते हैं । आप सर्वज्ञ तथा दयालु हैं । हे प्रभो, आपसे नाना जीवोंका हित करनेवाले सर्व विषय जानने की मेरी इच्छा है । हे पुरुषश्रेष्ठ, आप प्रसन्न हूजिये, और हे दयातत्पर मुझपर दया कीजिये । कुरुवंश में उत्पन्न हुए पाण्डवोंका चरित्र सुननेकी मेरी इच्छा है || २३ - २६ ॥ हे विद्वच्छ्रेष्ट, राजगण जिनकी सेवा करता था, जो इस संसार में प्रसिद्ध थे ऐसे पाण्डव और कौरव किस वंश में उत्पन्न हुए थे सो कहि । कुरुवंशकी उत्पत्ति किस युगमें हो गयी ? इस भूतलपर उनके वंशमें किन किन पुरुषोंने जन्म लिया ? गुणोंसे महनीय ऐसे कुरुवंशमें कौन कौन से पूज्य - तीर्थमार्ग दिखाने में पण्डित और तीर्थके हित करनेवाले तीर्थकरों का जन्म हुआ ? और कौन कौन से चक्रवर्ती उत्पन्न हुए ? ॥। २७-२९ ॥
[ अन्यमतीय पुराणों में पांडवों की कथा ] हे नाथ, अन्यमतके शास्त्र में पाण्डवोंकी जो जैन मतसे भिन्न कथा सुनी जाती है, वह मुझे बंध्यापुत्रकी सुन्दरताके वर्णनके समान दीखती है । अन्य मतकी कथा इस प्रकार है - शांतनु राजा युद्धार्थ कहीं गया था। वहां उसे अपनी पत्नी ऋतुकालकी याद आ गई। उसने एक तांबेके कलशमें रतिदानके लिये अपना वीर्य रख दिया, तथा उसका मुँह बंद कर वह बाजके गले बांध दिया और उस पक्षीको अपने पत्नीके पास. शीघ्र भेज दिया । वह पक्षी जाता हुआ मार्गमें लीलासे गंगानदीपर आगया । वहां मार्गमें दूसरे बाज पक्षाने उसे आते हुए देख क्रोध से उसके साथ युद्ध कर उसके गलेका तांबेका कलश तोडकर नदीमें गिराया ॥ ३०-३४ ॥ जीर्य से भरा हुआ वह कलश मछलीके मुहमें गिरकर उसके पेटमें चला गया और उसे गर्भ हुआ,
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