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द्वितीयं पर्व
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अगम्यं न हि किंचिते वस्तुजालं महामते । स्वज्ज्ञानान्धौ जगत्सर्व जलबिन्दुयते यते ॥ १६ स्वायत्त सदा विद्या सर्वलोकप्रदीपिका । यस्यां सर्व जगन्नाथ नित्यशो गोष्पदायते ॥ १७ ऋद्धयो वृद्धिसंबद्धा महर्षेश्च तवाधिप । बीजबुद्धिं प्रपन्नस्य मनःपर्यययोगिनः ॥ १८ पदानुसारिता तेऽद्य परमावधिवेदिनः । सर्वार्थवेदिनी विद्या शोभते गगनेऽर्कवत् ॥ १९ सर्वोषधिसमृद्धस्य पररोगापहारिणः । परोपकारिता ते क्व सर्ववाचामगोचरा ॥२० चारणद्धर्या चरच्चारो विहायसि भवान्महान् । अवतो जीववृन्दानि क्व न ते परमा दया ।। २१ अक्षीणर्द्धिपदप्राप्तेरियत्ता न च विद्यते। ऋद्धीनां तव ताराणां प्रमाणं गगने यथा ॥ २२ द्वापरो द्वापरे काले मम क व्यवतिष्ठते । त्वत्प्रसादात्किमाध्मातो वह्निः शोध्यं न शोधयेत् ॥ २३ त्वमद्य परमो नाथस्त्वमद्य परमो गुरुः । त्वमद्य शरणं देव त्वमद्य परमो मुनिः॥ २४
एक ही बीजभूत पदार्थको परके उपदेशसे जान कर उस पदके आश्रयसे संपूर्ण श्रुतका ग्रहण करना बीजबुद्धि ऋद्धि है । परमावधिज्ञान के धारक, आपकी पदानुसारिता विद्या संपूर्ण पदार्थोंको जानती हुई आकाशमें सूर्य के समान शोभायमान हो रही है । [ जो बुद्धि आदि मध्य अथवा अन्तमें गुरुके उपदेश से एक बीजपदको ग्रहण करके उपरिम ग्रंथको ग्रहण करती है वह पदानुसारिणी बुद्धि कहछाती है । ] हे प्रभो, आप सर्वौषधि ऋद्धिसे संपन्न हैं । दूसरोंके रोग मिटानेवाले आपकी परोपकारिताका कितना वर्णन करें, वह सर्व वचनों के द्वारा भी अकथनीय है । अर्थात् आपका परोपकार स्वभाव लोकोत्तर है॥१४-२०|| हे महापुरुष, आप चारणऋद्धि के प्रभावसे आकाशमें सूर्य के समान गमन करते हैं । आप प्राणिमात्रका रक्षण करनेवाले होनेसे आपकी दया किसपर नहीं है ? अर्थात् आप सबपर दयालु हैं । हे प्रभो, आपको अक्षीण ऋद्धि नामकी ऋद्धि प्राप्त होनेसे आपमें श्रेष्ठ ऋद्धियोंकी सीमा नहीं रही जैसे आकाशमें ताराओंकी सीमा नहीं होती है ॥२१ - २२ ॥ हे प्रभो, इस चतुर्थ काल में आपके प्रसादसे मेरा संशय कहां रहेगा ? प्रज्वलित की हुई अग्नि क्या शोधनीय वस्तुके मलका नाश कर उसे शुद्ध नहीं करती है ? अर्थात् अग्नि जैसे पदार्थके मलको नष्ट कर उसे निर्मल बनाती हैं उसी प्रकार आप मेरे हृदयका संशय निकालकर उसे निर्मल बनाइये । हे प्रभो, आप हमारे उत्तम हितकारी स्वामी हैं । आप ही हमारे परम गुरु हैं । हे देव, आप हमारे लिये शरण हैं, रक्षक हैं तथा अब आप ही उत्कृष्ट मुनि हैं । प्रभो, आप सर्वज्ञ महावीर के पुत्र हैं । महावीर प्रभु आपके पिता हैं | आप उन के तत्त्वज्ञानरूपी गर्भ से उत्पन्न हुए हैं । आप सर्वज्ञसदृश हैं अर्थात् सर्वज्ञ केवलज्ञानसे चराचरको प्रत्यक्ष जानते हैं और आप श्रुतज्ञानसे परोक्षतया जीवादिक
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१ चारणऋद्धिके धारक मुनि आकाशमार्गसे जाते हैं अतः उनसे किसी प्राणिको कुछ भी बाधा नहीं होती है, अतः उनका दयालुत्व गुण बाधारहित निर्दोष रहता I
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