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पाण्डवपुराणम्
महागजगजारीणां शावकाः सुखलिप्सया । रम्यारामेषु चान्योन्यं रमन्ते यत्प्रभावतः ।। १४५ नागेनाकुलवृन्दानि ददते स्वहितेच्छया । स्वस्वस्थाने स्थितिं मुक्तवैरा यस्य समागमात् ।। १४६ मार्जारमूषका मत्ताः क्रीडन्ति क्रीडनोद्यताः । परस्परं प्रभावेण बान्धवा इव यस्य च ॥ १४७ पद्माकराः सदाशुष्का जाताः संजीवनान्विताः । मरालकोककादम्बकलरावा यतो जिनात् ॥ १४८ शुकाः शालाः समाकीर्णाः फलपुष्पसुपल्लवैः । फलभार भराकीर्णा नमन्तीव जिनेशिनम् ।। १४९ अकालकल्पिताकल्पफलपुष्पभरान्विताः । महीरुहा महेड्मान्या मीयन्ते स्म जिनेशिनः ॥ १५० इति तस्य प्रभावं भो नानाकालसमुद्भवैः । फलैः पुष्पैरहं वीक्ष्य प्राभृतं कृतवांस्तव ।। १५१ इत्यानन्दभरानूपः पुलकाङ्कितविग्रहः । श्रुत्वा तद्वचनं रम्यं जहर्ष हर्षनिस्वनः ।। १५२
दत्त्वा तस्मै भुवनपतये सारवित्तं स भक्त्या गत्वा सप्तोत्तरसुविधिना सत्पदानि प्रहृष्टः । नत्वा तस्यां दिशि जिनपदाम्भोजयुग्मं प्रपेदे स्थानं नानानृपगणयुतस्तत्पदं वन्दनेच्छः || १५३
बडे हाथी और सिंहके बालक सुन्दर बगीचोंमें सुखकी इच्छासे प्रभुके प्रभाव से आपस में खेलकूद रहे हैं । प्रभूके आगमनसे सर्प और नेवला आपसी वैर छोडकर अपना अपना स्थान सुकी इच्छासे एक दूसरेको देरहे हैं । प्रभुके प्रभावसे उन्मत्त बिल्ली और चूहे बंधुओंके समान क्रीडा करने में तत्पर होकर एक दूसरेके साथ खेल रहे हैं। जो तालाब सदा शुष्क थे वे प्रभूके आगमन से स्वच्छ पानी से भर गये और उनमें हंस, चक्रवाक, कादंब आदि पक्षी कलरखकर रहे हैं। सूखे वृक्ष फल, पुष्प और सुंदर पल्लवोंसे व्याप्त होकर, मानो फलोंके भारसे जिन भगवान को नमस्कार कर रहे हैं। अकालमें उत्पन्न हुए फलपुष्परूपी आभूषणोंके भारसे युक्त वृक्ष जिनेश्वरके प्रसाद से बडोंको मान्य हो गये हैं ऐसा विदित होता है। हे राजन् ! अनेक कालमें उत्पन्न होनेवाले फल पुष्पोंसे प्रभुका प्रभाव जानकर मैंने वे फलपुष्प आपको भेट किये हैं ||१४३-५१॥ इस प्रकार मालीके प्रिय वचनको सुनकर राजाके शरीरपर आनंदसे रोमांच उत्पन्न हो गये। आनंदित होकर उनके मुखसे हर्षोद्गार निकले ॥ १५२ ॥ राजा श्रेणिकने वनपालको अच्छा पारितोषिक दिया । और जिस दिशामें महावीर प्रभु समवसरण में विराजमान थे उस दिशा में भक्तिसे सात पद प्रमाण चलकर आनंदित हो प्रभुको उसने परोक्ष वंदना की । तदनंतर प्रभुके चरणोंकी वंदनाकी अभिलाषासे वे अनेक राजाओंके साथ समवसरण में गये ॥१५३॥ भगवान्
१ प. नास्त्ययं श्लोकः ।
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