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प्रथमं पर्व
पूज्यपादः सदा पूज्यपाद्ः पूज्यैः पुनातु माम् । व्याकरणार्णवो येन तीर्णो विस्तीर्ण सद्गुणः ।। १६ अकलङ्को कलङ्कः स कलौ कलयतु श्रुतम् । पादेन ताडिता येन मायादेवी घटस्थिता ।। १७ जिनसेनयतिर्जीयाज्जिनसेनः कृतं वरम् । पुराणपुरुषाख्यार्थ पुराणं येन धीमता ॥ १८ गुणभद्र भदन्तोऽत्र भगवान्मातु भूतले । पुराणाद्री प्रकाशार्थं येन सूर्यातिं लघु ।। १९ तत्पुराणार्थमालोक्य धृत्वा सारस्वतं श्रुतम् । मानसे पाण्डवानां हि पुराणं भारतं ब्रुवे ॥ २० पुराणान्धिः क्व गम्भीरः कव मेऽत्र धिषणा लघु । अतोऽतिसाहसं मन्ये सर्वझर्झरदायकम् ॥ २१ जिनसेनादयोऽभूवन्कवयः शास्त्रपारगाः । तदङ्घ्रिस्मरणानन्दात्करिष्ये तत्कथां पराम् ॥ २२ यथा मूको विवक्षुः सन्याति हास्यं जगत्रये । तथा शास्त्रं विवक्षुः सन् लोकेऽहं हास्य भाजनम् ॥ २३ यथा जिगमिषुः पङ्गुर्मेरुमूर्धानमुन्नतम् । विहस्यते जनैः शास्त्रं चिकीर्षुश्वाहमञ्जसा ॥ २४ यतेऽहं च तथाप्यत्र शास्त्रं कर्तुमशक्तितः । क्षीणा धेनुर्यथा वत्सं पाति दुग्धप्रदानतः ॥ २५
सिद्धान्तकी महिमा व्यक्त की, जिनके कार्य ग्रंथरचना आदि भव्योंका भद्र [ हित ] करनेवाली हैं
भारत के अलंकार आचार्य समन्तभद्र सदा शोभायमान रहें ।। १५ ।। पूज्यपुरुषोंके द्वारा जिनके चरण सदा पूजे जाते थे इस लिये जिनका ' पूज्यपाद ' नाम सार्थक है, जो विस्तीर्ण सद्गुणवाले व्याकरणसमुद्रके पारगामी थे वे आचार्य पूज्यपाद मेरी रक्षा करें ॥ १६ ॥ जिन्होंनें घडेमें बैठी हुई मायादेवीको पैरसे ताडन किया वे कलंकरहित अकलंकदेव मुझे इस पंचमकालमें श्रुतज्ञान देवें ॥ १७ ॥ जो जिनोंकी सेनाको अर्थात् जिनेन्द्रभक्तोंके समुदायको धारण करते थे, तथा जिनने पुराणपुरुषोंके ( अर्थात् तिरसठ शलाकापुरुषोंके ) श्रेष्टपुराणकी, ( महापुराण) रचना की जिनसेनाचार्य जयवंत हों ||१८|| महापुराणरूपी पर्वतपर शीघ्र प्रकाश डालनेके लिये जो सूर्य के समान हुए वे पूज्य गुणभद्र भगवान् इस भूतलपर शोभायमान होवें ||१९|| श्रीगुणभद्राचार्य के पुराणोंका अभिप्राय देखकर तथा सरस्वतीके अन्यशास्त्रोंको हृदयमें धारण कर मैं पाण्डवोंके पुराणकी, जिसको भारत कहते हैं, रचना करता हूं || २० || यह अथाह पुराणसमुद्र कहां और इसमें प्रवृत्त हुई मेरी छोटीसी बुद्धि कहां ? इस लिए ग्रंथ रचनेका मेरा साहस पूर्णहास्यास्पद तथा भयदायक होगा ॥ २१ ॥ जिनसेनादि कवि शास्त्रके पारंगत हुए हैं; उनके चरणस्मरणजन्य आनन्दसे मैं पाण्डवोंकी उत्कृष्ट कथा कहता हूं ||२२|| जैसे गूंगा मनुष्य बोलने की इच्छा करने से त्रैलोक्यमें हास्यपात्र होता है उसी प्रकार शास्त्रका कथन करनेकी इच्छा करनेवाला मैं इस जगतमें हास्यपात्र बन जाऊंगा ||२३|| जैसे मेरुागरिके उच्च शिखरपर चढनेकी इच्छा करनेवाला पंगुपुरुष लोगोंका हास्यपात्र बनता हैं वैसेही शास्त्रकी रचना करनेकी इच्छा करनेवाला मैं भी परमार्थ से हास्यपात्र बनूंगा ||२४|| असमर्थ होनेपर भी मैं पाण्डवपुराणकी रचना करनेका प्रयत्न कर रहा हूं, क्योंकि क्षीण गाय भी अपने बछड़ेको दूध पिलाकर उसका संरक्षण करती है ||२५||
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