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पाण्डवपुराणम् गौतमो गोतमो गीष्पा गणेशो गणनायकः । गिरां गणनतो नित्यं भातु भाभारभूषितः ।। ७ युधिष्ठिरं कर्मशत्रुयुधि स्थिरं स्थिरात्मकम् । दधे धर्मार्थसंसिद्धं मानसे महितं मुदा ।। ८ भीमं महामुनि भीमं पापारिक्षयकारणे । संसारासातशान्त्यर्थ दधे हृदि धृतोन्नतिम् ॥ ९ अर्जुनस्य प्रसिद्धस्य विशुद्धस्य जितात्मनः । स्मरामि स्मरमुक्तस्य स्मररूपस्य सुस्मृतः ।।१० नकुलो वै सदा देवैः सेवितः शुद्धशासनः। सहदेवो बली कौल्यो मलनाशी विभाति च ॥ ११ भद्रबाहुमहाभद्रो महाबाहुमहातपाः । स जीयात्सकलं येन श्रुतं ज्ञातं कलौ विदा ॥ १२ विशाखो विश्रुता शाखा सुशाखो यस्य पातु माम् । स भूतले मिलन्मौलिहस्तभूलोकसंस्तुतः॥१३ कुन्दकुन्दो गणी येनोर्जयन्तगिरिमस्तके । सोऽवताद्वादिता ब्राह्मी पाषाणघटिता कलौ ॥ १४ समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः । देवागमेन येनात्र व्यक्तो देवागमः कृतः ॥ १५
[गौतमादि-यतीश्वरोंका स्तवन ] जिन्होंने वीरप्रभुके मुखसे निकली हुई वाणी धारण की है, जो गोतम अर्थात् किरणातिशयसे युक्त हैं, तेजःसंपन्न शरीरवाले हैं, अथवा गोतम अर्थात् द्वादशांगवाणीकी गणना करनेके कारण उत्कृष्ट वाणीके धारक हैं या गोतम अर्थात् पृथ्वीपर श्रेष्ठ हैं, जो चतुःसंघके अधिपति-पथप्रदर्शक हैं तथा जो कान्तिमण्डलसे भूषित हैं वे गौतमगणधर सदा प्रकाशमान रहें ॥७॥ कर्मशत्रुओंके साथ युद्ध करनेमें उसी तरह आत्मस्वरूपमें स्थिर रहनेवाले, धर्मके अर्थका अर्थात् स्वरूपको प्राप्त करनेवाले, लोकपूज्य युधिष्ठिर-मुनिराजको मैं आनन्दसे हृदयमें धारण करता हूं ॥८॥ पापशत्रुओंका नाश करने में भयंकर, तथा आत्मोन्नतिके धारक भीम-महामुनिको मैं संसारदुःख की शान्तिके लिये हृदयमें धारण करता हूं ॥९॥ जगतमें प्रसिद्ध निर्मल परिणामवाले जितेन्द्रिय, कामविकार-रहित, कामदेवके समान सुंदर तथा सम्यग्ज्ञानको धारण करनेवाले, अर्जुन मुनिराजको मैं स्मरण करता हूं ॥१०॥ जो बलवान् और कुलीन हैं तथा जिनका शासन निर्मल है ऐसे नकुलमुनिराज तथा सदा देवोंके द्वारा सेवित ऐसे कर्ममलका नाश करनेवाले सहदेव-मुनिराज सदैव सुशोभित होते हैं ॥११॥ इस पंचमकालमें जिस बुद्धिमानने सम्पूर्ण द्वादशाङ्ग-श्रुतको जाना तथा जो महातपस्वी तथा भव्यजीवोंके महाकल्याण करनेवाले थे, जो आजानुलम्बीभुजाधारी होनेसे महाबाहु थे उन भद्रबाहु श्रुतकवलीकी जय हो ॥१२॥ जिनकी ज्ञानशाखा विशिष्ट थी अर्थात् जो ग्यारह अंग, चतुर्दश पूर्वज्ञान धारण करनेवाले थे, जिनकी शिष्यशाखा अर्थात् शिष्यपरम्परा भी निर्मलज्ञानचारित्रवाली थी, तथा इस भूतलपर सारा संसार मस्तकपर हाथ जोडकर जिनकी स्तुति करता था वे विशाखाचार्य मेरी रक्षा करें ॥१३॥ जिन्होंने इस पंचमकालमें गिरनारपर्वतके शिखर पर स्थित पाषाणनिर्मित सरस्वती-देवीको बुलवाया वे कुन्दकुन्दाचार्य मेरी रक्षा करें ॥ १४ ॥ देवागम-स्तोत्रके द्वारा जिन्होंने इस संसारमें देवका आगम अर्थात् जिनदेवके
२प महसं।
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