________________
पञ्चविंशं पर्व
५१५
उद्यापनमदीपिष्ट पल्योपमविधेश्च यः । चारित्रशुद्धितपसश्चतुस्त्रिद्वादशात्मनः ॥ १७७ संशयवर्देन विदारणमपशब्दसुर्खेण्डनं परं तर्कम् । सत्तत्त्वनिर्णयं वरस्वरूपसम्बोधिनीं वृत्तिम् ॥१७८ अध्यात्मैपद्यवृत्तिं सर्वार्थापूर्व सर्वतोभद्रम् ।
sar सद्वयाकरणं चिन्तामणिनामधेयं च ॥ १७९ कृता येनाङ्गेप्रज्ञप्तिः सर्वाङ्गार्थप्ररूपिका । स्तोत्राणि चँ पवित्राणि षड्वादः श्रीजिनेशिनाम् ॥१८० तेन श्रीशुभचन्द्रदेव विदुषां सत्पाण्डवानां परम् दीप्यद्वंशविभूषणं शुभभरभ्राजिष्णुशोभाकरम् । शुम्भद्भारतनाम निर्मलगुणं सच्छन्दचिन्तामणिम् पुष्यत्पुण्यपुराणमत्र सुकरं चाकारि प्रीत्या महत् ॥ १८१ शिष्यस्तस्य समृद्धिबुद्धिविशदो यस्तर्कवेदी बरो वैराग्यादिविशुद्धिवृन्दजनकः श्रीपालवर्णी महान् । संशोध्याखिल पुस्तकं वरगुणं सत्पाण्डवानामिदम् तेनालेख पुराणमर्थनिकरं पूर्व वरे पुस्तके ॥१८२ श्री पालवर्णिना येनाकारि शास्त्रार्थसंग्रहे ।
तप नामक व्रतका उद्यापन भी प्रकाशयुक्त किया है ।। १७५-१७६ ॥ ' संशयवदैन विदारण 'अपशब्दसु खण्डन' नामक तर्कप्रथ, 'सत्तत्व-निर्णय' स्वरूपसंबोधिनी टीका अध्यात्मपद्योंके ऊपर टीका अर्थात् नाटक समयसार के कलशोंपर की टीकी, सर्वार्थपूर्व, सर्वतोभद्रे, चिन्तामणिनामक व्याकरण, ऐसे ग्रंथ रचे हैं । सर्व अङ्गों के अर्थका प्ररूपण करनेवाली ' अङ्गप्रेज्ञप्ति ' रची है । ' पवित्र-स्तोत्र' और जिनेश्वरों के षड्वोंद ( षड्दर्शन ) ऐसे ग्रंथ रचे हैं ॥ १७७ - १८० ॥
शोभाका स्थान,
[ पाण्डवपुराणका कर्तत्व ] उज्ज्वलवंशका भूषण, पुण्यसमूहसे प्रकाशमान, सुंदर ऐसे भारत नामसे युक्त, निर्मलगुणोंसे पूर्ण, सज्जन पाण्डवोंके उत्तम पुण्यकी वृद्धि करनेवाला, उत्तम शब्दोंका मानो चिन्तामणि ऐसा सुलभ पाण्डवपुराण अथवा भारत नामक पुराण-ग्रंथ इस शुभचंद्रदेव विद्वानने रचा है ॥ १८९ ॥
[ स्वशिष्य-प्रशंसा ] उस शुभचंद्र भट्टारकका समृद्धिशाली, बुद्धिसे निर्मल, न्यायशास्त्रका ज्ञाता, वैराग्यादिगुणों में विशुद्धियोंको उत्पन्न करनेवाला, श्रेष्ठ, आदरणीय, श्रीपालवर्णी नामक शिष्य था । उसने यह पाण्डव - पुराण, जो कि गुणोंसे श्रेष्ठ और अर्थसे भरा हुआ है, प्रथमतः पूर्ण संशोधा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org