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पाण्डवपुराणम् तेनेदं चरितं विचारसुकरं चाकारि चञ्चद्रचा पाण्डोः श्रीशुभसिद्धिसातजनकं सिद्धयै सुतानां मुदा ॥१७२
[कविविरचितग्रन्थानां नामावलिः ]. चन्द्रनार्थचरितं चरितार्थ पद्मनाभचरितं शुभचन्द्रम् । मन्मथस्य महिमानमतन्द्रो जीवकस्य॑ चरितं च चकार ॥१७३ चन्दनायोः कथा येन दृब्धा नान्दीश्वरी तथा । आशाधरकृताचार्या वृत्तिः सद्वत्तिशालिनी ॥१७४ त्रिंशचतुर्विंशतिपूजनं च सद्वद्धसिद्धार्चनमाव्यधच ।
सारस्वतीयार्चनमत्र शुद्धं चिन्तामणीयार्चनमुच्चरिष्णुः ॥१७५ श्रीकर्मदाहविधिबन्धुरसिद्धसेवां नाना गुणौघगणनाथसमर्चनं च । श्रीपार्श्वनाथरकाव्यसुपञ्जिकां च, यः संचकार शुभचन्द्रयतीन्द्रचन्द्रः ॥१७६
प्रसिद्ध शुभचन्द्र भट्टारक हुआ है। चमकनेवाली कांति जिसकी है ऐसे इस शुभचन्द्रने विचारसुलभ, शुभ, सिद्धि और सुख देनेवाला पाण्डुराजाके पुत्रोंका चरित आनंदसे रचा है ॥ १७२ ॥
[कविविरचित ग्रंन्थोंकी नामावली ] उत्तम अर्थसे भरा हुआ चन्द्रनार्थचरित्र, शुभ और आनंददायक पद्मनाभचरित्र, 'प्रद्युम्नकी महिमा' अर्थात् प्रद्युम्नचरित्र और जीवकका चरित्र अर्थात् जीवंधरैचरित्र ऐसे ग्रंथ आलस्यरहित होकर श्रीशुभचन्द्राचार्यने बनाये हैं ॥ १७३ ॥ इस शुभ चन्द्रभट्टारकने ' चन्दनाकी कथा रची है तथा नांदीश्वरी कथा-नन्दीश्वरव्रतकी कथा रची है। उत्तम रचनासे शोभनेवाली आशाधरकृत आचारशास्त्रके ऊपर वृत्ति लिखी है अर्थात् आशाधरकृत अनगारधर्मामृतके ऊपर टीका लिखी है ॥१७४॥ 'त्रिंशञ्चतुर्विंशति पूजन ' तीस चोवीस तीर्थकरोंका पूजन अर्थात् पांच भरतक्षेत्र और पांच ऐरावतक्षेत्रके त्रिकालवर्ति सातसौ वीस तीर्थंकरोंका पूजन, उत्तरोत्तर बढनेवाला सिद्धोंके गुणोंका पूजन, जिसको सद्भसिद्धार्चन कहते हैं, रचा है। शुद्ध सरस्वतीयोर्चन- (सरस्वतीवलयका पूजन ) चिन्तामणीयार्चन, इन ग्रंथोंकी रचना की है। श्रीकर्मदाहविधि जिसमें सिद्धोंका सुंदर पूजन है ऐसा ग्रंथ अर्थात् कर्मदहनतका उद्यापन रचा है। नाना गुणसमूहसे युक्त गणनाथसमर्चन अर्थात् चौदहसौ बावन गणधरोंकी पूजा रची है। यतीन्द्रोंमें चंद्रके समान शुभचंद्रसूरीने वादिराज कवीके 'पार्श्वनाथ -चरित्र' काव्यके ऊपर उत्तम पञ्जिका लिखी है। जिसने पत्योपमविधि को उद्यापन प्रकाशयुक्त किया है। जिसके बारासौ चौतीस भेद हैं ऐसे चारित्रशुद्धि
१ [ आशाधरकृतार्चाया ]
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