SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 563
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०८ पाण्डवपुराणम् केवलज्ञानमुत्पाद्य घातिकर्मनिबर्हणात् । अन्तकृत्केवलज्ञानभाजिनः शिवमुद्ययुः ॥१३२ .. युधिष्ठिरमहाभीमपार्थाः पृथ्वीं वराष्टमी । मुक्त्वा भेजुः शिवस्थानं तनुवाते शिवाश्रिते ॥ सम्यक्त्वाद्यष्टसुस्पष्टगुणा मोहविवर्जिताः । अनन्तानन्तशर्माणोऽभूवंस्ते सिद्धिसंगताः ॥१३४ पञ्चससारनिर्मुक्ता बुभुक्षाक्षयसंगताः । पिपासापीडनोन्मुक्ता भयनिद्राविदूरगाः ॥१३५ अनन्तानन्तकालं ये भोक्ष्यन्ते चाक्षयं सुखम् । ते सिद्धा नः शिवं दधुः पूर्णसर्वमनोरथाः॥ तत्कैवल्यसुनिर्वाणे युगपनिखिलामराः । ज्ञात्वागत्य व्यधुस्तेषां कल्याणद्वयसूत्सवम् ॥१३७ मद्रीजावथ मुक्ताघौ किंचित्कालुष्यसुंगतौ । प्रापतुश्चोपसर्गेण मृत्युं तौ स्वर्गसन्मुखौ ॥१३८ सर्वार्थसिद्धिमासाद्य त्रयस्त्रिंशन्महार्णवान् । स्थास्यतस्तत्र तो देवावहमिन्द्रपदं श्रितौ ॥१३९ ततश्युत्वा समागत्य नृलोके नरतां गतौ । सेत्स्यतस्तपसा तौ द्वौ परात्मध्यानधारिणी ।। राजीमती तथा कुन्ती सुभद्रा द्रापदी पुनः । सम्यक्त्वेन समं वृत्तं वत्रिरे ता वृषोद्यताः ।। तिरसठ प्रकृतियाँ इस प्रकार समझनी चाहिये । ज्ञानावरणकी ५ दर्शनावरणकी ९ मोहनीयकी २८ अंतरायकी ५ ऐसी घाति-कर्मोकी ४७ प्रकृतियां। मनुष्यायु छोडकर तीन आयु तथा साधारण, आतप, पंचेन्द्रियजातिरहित चार जाति, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्व्य, स्थावर, सूक्ष्म, तिर्यग्गति, तिर्यग्ग-यानुपूर्व्य, उद्योत ऐसे तिरसठ प्रकृतिओंका विनाश पाण्डवोंने किया। घातिकर्मोका नाश करनेसे उनको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अन्तकृत्-केवलज्ञानी होकर वे मुक्तिको प्राप्त हुए अर्थात् केव ठज्ञान और मोक्ष इनकी उनको समसमयमें प्राप्त हुई ॥ १३२ ॥ युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन उत्तम आठवी पृथ्वीको छोडकर अर्थात् उस पृथ्वीके ऊपर तनुवातवलयमें जो कि सिद्धपरमेष्ठियोंसे आश्रित है ऐसे शिवस्थानमें जाकर विराने ॥ १३३ ॥ वे पाण्डव अर्थात सिद्धपग्मेष्टी आठों कोंका नाश होनेसे सम्यक्त्वादिक आठ स्पटगुणोंसे युक्त हुए। मोहरहित, अनंतानंत मुक्ति लक्ष्मीसे आलिंगित हुए ॥ १३४ ॥ सम्यक्त्वगुण, अनन्तज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य, अव्याबाध, अवगाहन, सूक्ष्म, और अगुरुलघु ऐसे आठ गुणोंसे वे सिद्धपरमात्मा हुए। पांच प्रकारके संसारसे तथा भूख, प्यास, भय, निद्रा आदिसे रहित, अनंतानंत कालतक अक्षय सुख भोगनेवाले, जिनके सर्व मनोरथ पूर्ण हुए हैं वे पाण्डव सिद्धपरमात्मा हमें शाश्वत सुख प्रदान करें। उनको केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त हुआ जानकर सभी देवोंने आकर दोनों कल्याणकोंका उत्सव किया ॥१३५-१३७॥ जिनका पातक नष्ट हुआ है और जिनके मन में अत्यल्पकषाय रहा था ऐसे वे मद्रीके पुत्र नकुल तथा सहदेव मुनि जो कि स्वर्गके सन्मुख हुए थे उपसर्गसे मृत्युके वश हुए। वे सर्वार्थसिद्धि अनुत्तर विमानको प्राप्त होकर तेतीस सागरोपम कालतक वहां रहेंगे। वे वहां अमिन्द्रपदके धारक देव हुए हैं। वहांसे च्युत होकर वे मनुष्यलोकमें आकर महापुरुष होंगे। परमात्माके ध्यानमें तत्पर वे दोनों महापुरुष तपश्चरण कर मुक्त होंगे ॥ १३८-१४० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy