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पाण्डवपुराणम् बलकृष्णौ ततो यातौ कौशाम्बीगहनान्तरम् । पिपासापीडितो विष्णुर्जज्ञे तत्र बलच्युतः॥ मृतो जरत्कुमारस्य बाणेन क्षणतः क्षयी । बलो जलं समादायागतोऽपश्यन्मृतं हरिम् ॥८७ उवाह तद्वपू रामः षण्मासान्प्रीतितो भृशम् । सिद्धार्थबोधितोऽप्याशु न विवेद मृति हरेः॥ ततो जरत्कुमारोऽसौ गत्वा पाण्डवसंनिधिम् । आचख्यौ स्वकृतं मृत्यु केशवस्य सुकेशिनः श्रुत्वा तन्मरणं पाण्डुनन्दना रुरुदुर्भृशम् । विस्मयं परमं प्राप्ता साध्वी कुन्ती रुरोद च ॥९० जारसेयं पुरस्कृत्य बान्धवैः सह पाण्डवाः । खकलत्रैः सुमित्रस्तर्गता बलदिदृक्षया ॥९१ कियद्भिर्वासरैः प्रापुर्वनस्थं च हलायुधम् । तमासाद्य नृपाः सर्वे रुरुदुर्दुःखिताशयाः ॥९२ हली तान्वीक्ष्य सुस्निग्धः स्नेहनिर्भरमानसान् । आलिलिङ्ग समुत्थाय कुन्तीनमनपूर्वकम् ।। तदा तत्र क्षणं स्थित्वा जगदुस्ते सुपाण्डवाः। हलायुध महाशोकं मुश्च विष्णुसमुद्भवम् ॥९४ ज्ञात्वा संसारवैचित्र्यं सावधानमना भव । दामोदरस्य देहस्य संस्कारः क्रियतां लघु ॥९५ रामो वभाण मोहात्मा खमित्रपुत्रबान्धवैः । दह्येतां पितरौ तूर्ण युष्माभिश्च श्मशानके ।।९६
श्रीजिनेश्वरकी वाणी मिथ्या नहीं होती है ॥ ७९-८५ ॥
[कृष्ण-मरण तथा बलभद्र दीक्षा--ग्रहण ] कौशाम्बीवनमें बलसे-सामर्थ्यसे च्युत होकर अर्थात् थक कर कृष्ण प्याससे दुःखी हुए। जिनका शीघ्र क्षय होनेवाला है ऐसे वे कृष्ण जरत्कुमारके बाणसे तत्काल मर गये । बलभद्र पानी लेकर आये उनको कृष्ण मरा हुआ दीखा । बलभद्रने छह महिनोंतक अतिशय प्रीतिसे. कृष्णका शरीर धारण किया। सिद्धार्थने उपदेश किया तो भी कृष्णका मरण उन्होंने नहीं जाना ॥ ८६-८८ ॥ तदनंतर वह जरत्कुमार पाण्डवोंके पास गया और उत्तम केशवाले केशवका स्वकृत मरण उसने उनको कहा अर्थात् मेरे बाणसे कृष्णकी मृत्यु हुई ऐसा उसने कहा। पाण्डवोंने कृष्णका मरण सुनकर अतिशय शोक किया। उनको आश्चर्य हुआ। साध्वी कुन्ती रोने लगी। जरत्कुमारको आगे करके, पाण्डव, बांधव, अपनी स्त्रिया और सुमित्रों के साथ बलभद्रको देखनेके लिये निकले। कई दिवसोंके अनंतर वे वनमें रहे हुए बलभद्रके पास आये। उसे प्राप्त करके वे सब दुःखित होकर रोने लगे ॥ ८९-९२ ॥ कुन्तीको प्रथम नमन कर तथा स्नेहसे जिनका मन भरा हुआ है ऐसे पाण्डवोंको देखकर स्नेहयुक्त हलीने-बलभद्रने उठकर आलिंगन दिया। वे पाण्डव वहां क्षणतक ठहरकर बलभद्रको कहने लगे कि “हे बलभद्र, आप विष्णुसे उत्पन्न हुए शोकको छोड दीजिये । हे बलभद्र, संसारकी विचित्रता जानकर अपना चित्त सावधान करो। तथा दामोदरके देहका संस्कार जल्दी किया जावे ।" तब मोहित हुए बलभद्र कहने लगे, कि “ श्मशानमें तुम अपने मित्र पुत्र और बांधवोंके साथ अपने माता-पिताको शीघ्र जला दो"। पाण्डव बलभद्रके साथ निद्रारहित रहने लगे। उन्होंने उनके साथ रहकर सुंदर उपदेश देते हुए वर्षाकाल व्यतीत किया । सिद्धार्थने आकर बलभद्रको उपदेश दिया, तब वे सावध
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