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________________ द्वाविंशं पर्व ४६९ अतिचक्रमुरुन्निद्राः पाण्डवा हलिना समम् । प्रावृट्कालं ददानास्ते प्रतिबोधं सुबन्धुरम् ॥ सिद्धार्थबोधितः प्राह हली संस्कारसिद्धये । वरं यूयं समायाता मम हर्षप्रदायिनः ॥९८ तुङ्गीगिरौ ददाहासौ कृष्णदेहं सपाण्डवः । पिहितास्रवमासाद्य प्रपेदे संयमं बलः ॥९९ मुक्त्वा राज्यं सुनेमिर्वरवृषसुरथे नेमिवन्नम्रनानानाकीन्द्रः कामहर्ताऽसमशमसहितो रम्यराजीमतीं यः । हित्वा दीक्षां प्रपेदे दरदमनमितः सिद्धकैवल्यबोधो धृत्वा धर्मे धरित्रीं गिरिवरशिखरे संस्थितो भातु भव्यः ॥ १०० यो नेमिर्निखिलैर्नरेश निकरैः संसेवितो यं नता देवेन्द्रा वरनेमिना कृतमिदं तस्मै नमो नेमये । नेमेः कम्रगुणा भवन्ति चरणे नेमेः परं शासनम् मौ विश्वसितं मनो मम महानेमे वृषो दीयताम् ॥ १०१ इति श्रीपाण्डवपुराणे भारतनाम्नि भ० श्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे श्रीनेमिनाथदीक्षा ग्रहण केवलोत्पत्तिद्वारिकादहनकृष्ण परलोकगमनबलदेवदीक्षाग्रहणवर्णनं नाम द्वाविंशतितमं पर्व ॥ २२ ॥ हो गये और पांडवोंको कहने लगे, कि अच्छा हुआ मुझे आनंद देनेवाले आप कृष्णके संस्कार कार्यकी सिद्धिके लिये आये । तदनंतर पाण्डव और बलभद्रने मिलकर तुंगीपर्वतके ऊपर कृष्णके देहका दहन किया । अनंतर पिहितास्त्रवमुनीश्वर के पास जाकर उन्होंने संयम - मुनिदीक्षा धारणा की ।। ९३-९९ ।। [ नेमि - जिनस्तुति ] उत्तम जैनधर्मरूपी रथमें जो चक्रके ऊपर लगाई हुई लोहकी पट्टीके समान हैं, जिनके चरणोंपर स्वर्गके अनेक इन्द्र नम्र हुए हैं, जिन्होंने मदनका नाश किया है, जिन्होंने राज्यको छोडकर अनुपम शान्ति धारण की है, सुंदर राजीमतीको छोडकर जिन्होंने दीक्षा धारण की, भीतिको नष्ट कर जो केवलज्ञानी हुए तथा विहार कर पृथ्वीको जिन्होंने धर्ममें स्थिर किया, गिरनार पर्वतके शिखरपर स्थित ऐसे अतिशय सुंदर नेमिप्रभु हमेशा प्रकाशवन्त रहें। जो नेमिप्रभु संपूर्ण राजसमूहसे भक्ति से सेवे गये । जिस नेमिप्रभुको देवेन्द्रोंने नमस्कार किया । जिस श्रीनेमिविभूने यह धर्मतीर्थ प्रगट किया उस नेमिप्रभुको मेरा नमस्कार है । नेमिप्रभुसे भव्योंको सुंदर गुण प्राप्त होते हैं। चरित्रके विषयमें भगवान् नेमिजिनका उत्तम शासन है । नेमितीर्थकरमें मेरा मन विश्वास - श्रद्धा रखता है । हे महानेमि जिन, आप मुझे धर्मप्रदान करें | १०० - १०१ ॥ श्रीब्रह्मश्रीपालकी साहायता से श्रीभट्टारक शुभचन्द्रजीने रचे हुए महाभारतनामक पाण्डवपुराण में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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