SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४६ पाण्डवपुराणम् माधवस्तं विधचे स्म मगधेषु पुनर्नुपम् । प्रणिपातावसानो हि कोपों विपुलचेतसाम् ॥३५२ त्रिखण्डभरताधीशो भूत्वा स हलिना सह । विवेश द्वारिका रम्यां वाद्यवृन्दैः समुत्सवैः ।। पाण्डवाः स्वपुरं प्रापुर्हस्तिनागपुरं परम् । धर्मकर्म प्रकुर्वाणाः शर्मसिद्धिमुपागताः ॥३५४ क्षिप्त्वा ये वैरिचक्रं नरनिकरनताः शक्रतुल्याः स्मरन्तः धर्म शर्माधिपूरं विषमभवहरं पाण्डवाः पुण्यतो वै । राज्यं प्राज्यं समाता गजपुरनगरे सर्वसंतानसौख्यम् भुञ्जन्तो भव्यवगै रिपुभयमथनास्ते जयन्तु क्षितीशाः ॥३५५ धर्मात्मा धर्मपुत्रो रिपुभयहरणो भीमसेनः सुसेनः ख्यातः क्षोण्यां सुपार्थः पृथुगुणसुकथः प्रार्थितो बन्दियन्दैः। मद्रीपुत्रौ पवित्रौ नकुलवरसहाद्यन्तदेवौ सुदेवौ पञ्चैते पाण्डुपुत्राश्चिरमसमगुणाः पालयन्ति स्म पृथ्वीम् ॥३५६ इति श्रीपाण्डवपुराणे महाभारतनाम्नि भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे पाण्डवकौरवसंग्रामजरासंधवधवर्णनं नाम विंशतितमं पर्व ॥ २० ॥ किया। योग्य ही है, कि उदार चित्तवालोंका कोप प्रणिपातान्त होता है ।अर्थात् शत्रु नम्र होनेपर वे महाशय क्षमाशील होते हैं ॥ ३५१-३५२ ॥ श्रीबलरामके साथ श्रीकृष्ण तीन खण्डोंके स्वामी ( अर्धचक्रवर्ती होकर उन्होंने वाद्यसमूहों के साथ बडे उत्सवोंसे रमणीय द्वारकानगरीमें प्रवेश किया। तथा धर्म कर्म करनेवाले, (देवपूजादि श्रावकोंके षट्कर्म करनेवाले) सुखकी सिद्धिको प्राप्त हुए ऐसे पाण्डवभी अपने उत्तम हस्तिनागपुर नगरको प्राप्त हो गये ॥ ३५३-३५४ ॥ जो शत्रुसमूहको नष्ट कर सर्व मानवोंसे आदरणीय बने, जो विषम संसारका नाश करनेवाला, सुखसमुद्रके प्रवाहोंसे परिपूर्ण, ऐसे धर्मको इन्द्रके समान स्मरण करनेवाले, गजपुर नगरमें-हस्तिनापुरमें उत्तम राज्यको पुण्यसे प्राप्त हुए, तथा भव्यसमूहोंके साथ सर्वप्रकारके अखण्ड सुखोंको भोगनेवाले, शत्रुभयको नष्ट करनेवाले, जो विशाल पृथ्वीके स्वामी हुए ऐसे उन पांच पाण्डवोंकी सदा जय हो ॥३५५ ।। धर्मपुत्र-युधिष्ठिर धर्मात्मा है, भीमसेन उत्तम सेनाके धारक और शत्रुभयनाशक हैं। स्तुतिपाठकोंका समूह जिसकी स्तुति करता है, जिसके महागुणोंकी सुकथा लोगोंके द्वारा कही जाती है जो पृथ्वीपर प्रसिद्ध है ऐसा सुपार्थ-अर्जुन जो सुदेव अर्थात् चमकनेवाले, सौंदर्ययुक्त है, ऐसे पवित्र मद्रीके पुत्र नकुल और सहदेव ऐसे ये पांच पाण्डव अनुपम गुणोंके धारक होकर पृथ्वीका पालन करने लगे ॥३५६॥ ब्रह्मश्रीपालजीके साहाय्यसे भट्टारक शुभचन्द्राचार्यने रचे हुए महाभारत नामक पाण्डवपुराणमें पाण्डव कौरवोंका युद्ध और जरासंधके वधका वर्णन करनेवाला वीसवां पर्व समाप्त हुआ ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy