________________
विंशतितमं पर्व
४४५ त्वत्पिता वसुदेवो मे पदातिः पुरतः स्थितः । त्वं गोपतनयो गोपः पापाद्यासि क्षयं खलु ॥ तन्निशम्य तदा कुद्धः कृष्णश्वकं व्यचिक्षिपत् । तेन च्छित्वा जरासंधशीर्ष भूमौ निपातितम् परावृत्य पुनश्चक्रं विष्णुहस्त उपस्थितम् । तदा जयारवश्चक्रे सुरै पैश्च यादवैः ॥३४२ पुष्पवृष्टिं प्रकुर्वाणाः सुराः प्राहुत्रिखण्डपः । नवमस्त्वं समुत्पन्नो धरां धत्स्व खपुण्यतः॥ केशवो रणभूमि तां शोधयन्पतितं नृपम् । जरासंधं निरीक्ष्याशु विषसाद सपाण्डवः ॥३४४ निश्वसन्तं निरीक्ष्याशु दुर्योधनमुवाच सः । स्मर धर्म दयायुक्तं विस्मर द्वेषभावनाम् ॥३४५ येन ते जायते जीवः सुखी जन्मनि जन्मनि । तदा क्रुद्धो जगादैवं दुर्योधनो गतत्रपः ॥ अजीविष्यमहं नूनमकरिष्यं भवत्क्षयम् । निशम्येति तदा नूनं निश्चिक्युस्तमधर्मिणम् ॥३४७ गान्धारेयोऽधमो धर्महीनोऽथ निश्वसन्क्षणात् । दुर्लेश्यो दुर्गतिं मृत्वा प्रपेदे पापपाकतः ॥ पुनस्तु पतितं सैन्यं द्रोणं कर्ण निरीक्ष्य च । रुरुदुः पाण्डवाः सर्वे शुचा विष्णुबलादयः ॥ दहनं च तदा तेषां जरासंधादिभूभुजाम् । चन्दनागुरुभिः शीघ्रं चक्रुः केशवपाण्डवाः ॥ अत्रान्तरे महामात्या जरासंधतनूद्भवम् । सहदेवं नये निष्णं कृष्णस्याङ्के निचिक्षिपुः ॥३५१
ग्वाला है, तू अपने पापसे नष्ट होनेवाला है । " जरासंधका उपर्युक्त भाषण सुनकर कुपित हुए श्रीकृष्णने जरासंधके ऊपर चक्ररत्न छोड दिया। उसने (चक्रने ) जरासंधका मस्तक तोडकर भूमिपर गिराया। और पुनः वह कृष्णके हाथमें जाकर बैठ गया। उस समय देवों, राजाओं, और यादवोंने जयजयकार किया। पुष्पवृष्टि करनेवाले देव कहने लगे कि " हे श्रीकृष्ण तू तीन खण्डोंका पालन करनेवाला नवमनारायण उत्पन्न हुआ है । इस लिये अपने पुण्यसे तू पृथ्वीको धारण कर।" इसके अनंतर रणभूमिका शोधन करनेवाले कृष्णने रणभूमिमें पडे हुए जरासंधको देखकर पाण्डवोंके साथ खेद व्यक्त किया। वहां निश्वास लेते हुए दुर्योधनकोभी उन्होंने देखा वे उसे शीघ्र कहने लगे, कि हे दुर्योधन दयायुक्त धर्मका स्मरण कर और द्वेषभावनाको भूल जा, जिससे तेरा जीव प्रत्येक जन्ममें सुखी हो जावेगा । तब क्रुद्ध और निर्लज्ज दुर्योधनने ऐसा कहा-" यदि मैं जीऊंगा तो आपका नाश करूंगा" उसका ऐसा वचन सुनकर यह अधर्मी धर्महीन पापी है ऐसा उन्होंने निश्चय किया ॥ ३३४-३४७॥
[दुर्योधनको दुर्गतिप्राप्ति ] अधम नीच, धर्मरहित दुर्योधन निश्वास लेता हुआ मर गया । दुर्लेश्यांसे मरण होनेसे पापोदयसे वह दुर्गतिको प्राप्त हुआ। पुनः उन्होंने रणमें पडे हुए सैन्यमें,मरे हुए द्रोण, कर्णको देखकर विष्णु, बलराम, सर्व पाण्डव आदि महापुरुष शोकसे रोने लगे। उन केशव
और पाण्डवोंने जरासंधादिक राजाओंका चंदन, अगुरु आदिक सुगंधि द्रव्योंसे शीघ्र दहन किया ॥ ३४८-३५० ।। इस प्रसंगमें जरासंध राजाके महामात्योंने जरासंधका सहदेव नामक पुत्र, जो नीतिमें निष्णात था, उसे कृष्णके गोदमें स्थापन किया। श्रीकृष्णने पुनः उसे मगधदेशमें राजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org