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________________ विंशतितमं पर्व ४४१ अश्वत्थामा समाकर्ण्य तद्वधं कुद्धमानसः । न्यवेदयजरासंध बन्धुरं चेति निष्ठुरम् ।।२९९ प्रभो दशसहस्रेण नृपेण कौरवः क्षितौ । पतितस्तनिशम्याशु चक्री शोकाकुलोऽभवत् ||३०० सेनापत्यादिसैन्येनादिदेश गुरुनन्दनम् । जरासंधस्तु युद्धाय प्रचण्डः पाण्डवान्प्रति ॥३०१ गुरुपुत्रः समागत्य दुर्योधनसमीपताम् । रुदन बभाण भो तात सर्व शून्यं त्वया विना॥३०२ अस्माभिर्बाह्मणैस्ताताभोजि राज्यं समुज्ज्वलम् । त्वत्प्रसादादिदानी कि नाथ ब्रूहि करिष्यते ॥३०३ तावता चक्रिणा शीर्षे बबन्ध मधुभूपतेः । चर्मपट्टः पुनः सोऽपि प्रेषितः सह सद्भलैः ॥३०४ अधुना पाण्डवानां हि विनाशो नेष्यते मया। संलोण्ये कृष्णशीर्ष हि भणित्वेति चचाल सः ॥३०५ दुर्योधनस्तदावोचन्मया बद्धस्तवाधुना । पट्टस्त्वं याहि संग्रामेऽश्वत्थामञ्जहि वैरिणः ॥३०६ अश्वत्थामा स्वसैन्येन गत्वा पाण्डवसैन्यकम् । वेष्टयामास सर्वत्र चतुर्दिक्षु भयप्रदम् ॥३०७ तदा सस्मार सद्विद्यां माहेश्वरीं गुरोः सुतः । शूलहस्ता दधावासौ चन्द्रमाला समायिका ।। राजा, पवित्र वचनवाला गुरुपुत्र अश्वत्थामा, जो कि शत्रुको दुर्जय है, पाण्डवोंको नष्ट करने में समर्थ है। दुर्योधनका वध सुनकर करुद्ध अन्तःकरणवाला अश्वत्थामा मनोहर जरासंधको इस प्रकार अतिशय कठोर समाचार सुनाने लगा- "हे प्रभो जरासंध महाराज, दश हजार राजाओंके साथ दुर्योधन राजा भूतलपर पड़ा है अर्थात् कण्ठगतप्राण हुआ है।" उसका भाषण सुनकर चक्रीजरासंध शोकव्याकुल हुआ। “ सेनापति आदि सैन्योंको साथ लेकर तुम पाण्डवोंसे लडो, ऐसी आज्ञा महापराक्रमी जरासंधने अश्वत्थामाको दी ॥ २९७-३०१॥ दुर्योधनके पास आकर गुरुपुत्रअश्वत्थामा रोकर कहने लगा, कि “ हे दुर्योधन आपके बिना मुझे सब शून्यसा दीख रहा है। हे तात, आपके प्रसादसे हम ब्राह्मणोंने उज्ज्वल राज्यका उपभोग लिया है। हे नाथ, अब हम कौनसा कार्य करें, आज्ञा दीजिये" ॥ ३०२-३०३ ॥ उस समय चक्रवर्ती जरासंधने मधुराजाके मस्तकपर चर्मपट्ट बांधा और उसे भी अपने उत्तम सैन्यके साथ लडनेके लिये भेज दिया। " इस समय मैं पाण्डवोंका विनाश करूंगा और कृष्णका मस्तक तोडूंगा " ऐसा कहकर वह युद्ध के लिये चला गया ।। ३०४-३०५॥ दुर्योधनने उस समय अश्वत्थामासे कहा, कि मैंने अब तेरे मस्तकपर सेनापति-पट्ट बांधा है। तू युद्धमें जा और शत्रुओंका विनाश कर।" उस समय अश्वत्थामाने माहेश्वरी नामक उत्तम विद्याका स्मरण किया। अश्वत्थामाने अपने सैन्यको साथ लेकर पाण्डवोंके भयंकर सैन्यको सर्वत्र चारों दिशाओंमें वेष्टित किया। जिसके हाथमें-शूल १ केवलं सब प्रत्योरेव, नान्यत्र । पां. ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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