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पाण्डवपुराणम्
त्वं भृत्यत्वं समासाद्य सुखं तिष्ठ यदृच्छया । गृहाण मत्तमातङ्गान्रथानद्यापि वाजिनः ॥ २८७ अद्याप्याज्ञां प्रतीच्छ त्वं मदीयां सदयो भव । छत्री सिंहासनारूढो राजाद्यापि भवोन्नतः ।। अद्यापि जहि दुष्टत्वं भज मैत्र्यं मया सह । निशम्येति जजल्पासौ धार्तराष्ट्रः सुगर्वभृत् ॥ आवयोर्जन्मतो जातं वैरं नो याति निश्चितम् । एकोऽहं मारयिष्यामि विपुलान्पाण्डवान्रणे ॥ न नज्म महीं भोक्तुं न दास्ये पाण्डवेशिनाम् । उक्तेनालं त्वमद्यापि सज्जो भव रणाङ्गणे ॥ इत्युक्त्वा सोऽसिना भ्रूपं जघान क्रोधकम्पितः । धर्मात्मजः परं खटुं यावत्संघरति ध्रुवम् ॥ तावत्तत्र समायासीदन्तरे पावनिर्मुदा । समस्तारिबलं छेत्तुं भ्रूभङ्गैर्भीषिणः स्थितः ॥२९३ आकारयन्कुरूणां हि सैन्यं प्रबलसंयुतम् । तिष्ठ तिष्ठेति संजल्पन्भीमस्तस्थौ रणाङ्गणे ॥२९४ भीमो गदां समादाय तडिज्झङ्कारसंनिभाम् । यमजिह्वोपमां नागकन्यां वा विदधे रणम् ॥ दुर्योधनस्य शीर्षे सा भीममुक्ता पपात च । कण्ठप्राणो महीपीठे पतितः कौरवस्तदा ॥ २९६ बंभणीति स्म मन्दं स कोऽप्यस्ति कौरवे बले । जीवन्पाण्डववृन्दस्य क्षयं नेतुं क्षमः क्षितौ ॥ तदा वभाण कश्चिच्च गुरुपुत्रः पवित्रवाक् । समर्थस्तान्क्षयं नेतुं विषमो वैरिणोऽस्ति व ||२९८
लगे
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1 हे दुर्योधन तुम मेरे भृत्य होकर अपनी इच्छासे सुखसे रहो । अद्यापि उन्मत्त हाथी, रथ और घोडे लेकर राज्यका अनुभव करो । दयायुक्त होकर मेरी आज्ञा अद्यापि धारण करो । अद्यापि छत्रसहित सिंहासनपर आरूढ होकर उन्नतिशाली राजा बने रहो । अद्यापि दुष्टता छोड मेरे साथ मित्रता धारण करो । ” यह सुन महागर्विष्ठ धृतराष्ट्र पुत्र - दुर्योधन राजा बोलने लगा " हे धर्मराज हम दोनोंमें आजन्म वैर है । वह नष्ट नहीं होगा, यह निश्चयसे जानो । मैं अकेला सभी पाण्डवोंको युद्धमें मार डालूंगा। मै स्वयं पृथ्वीका उपभोग न ले सकूंगा और न तुम्हें भी भोगने दूंगा। अब इससे जादा मैं कुछ नहीं कहता । तुम लड़नेके लिये सज्ज हो जाओ "। ऐसा बोलकर उसने क्रोधसे थर थर कांपते हुए तरवारके द्वारा राजाके ऊपर प्रहार किया । धर्मात्मज - युधिष्ठिर उत्तम खम हाथमें धारण करना चाहताही था की इतनेमें वायुपुत्र भीमने उन दोनोंके बीच में आनंदसे प्रवेश किया । भौंहोंकी वक्रता के कारण महाभयानक दीखनेवाला वह भीम समस्त शत्रुबलको छेदने के लिये खडा हो गया ।। २८७ - २९३ || भीमने उत्कृष्ट सामर्थ्यशाली कौरवोंके सैन्यको लडनेके लिये ललकारा । " हे दुर्योधन रणमें ठहरो, ठहरो " ऐसा बोलता हुआ भीम उसके सामने आ खडा हुआ । बिजलीके समान चमकने वाली, यमकी जिह्वाके समान दीखनेवाली या नागकन्या के सदृश शोभनेवाली ऐसी गदा हाथमें लेकर भीमने युद्धप्रारंभ किया । भीमकी गदा दुर्योधनके मस्तकपर जाकर पडी । उस समय कौरव-दुर्योधन मरणोन्मुख हो जमीनपर आ गिरा ।। २९४ - २९६ ॥ उस समय मंदस्वरसे दुर्योधन कहने लगा " क्या कौरवोंके सैन्यमें पाण्डवोंका क्षय करने में समर्थ ऐसा कोई मनुष्य इस रणमें जीवित है ? तत्र दुर्योधनके पास खडा हुआ कोई पुरुष कहने लगा, कि " हे दुर्योधन-
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