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विंशतितमं पर्व
४३९ स्वबुद्धथा स्वीयता नाथ यथा न स्यादुपद्रवः । दुर्योधनस्तदावोचत्त्वं किं वक्षि ममाग्रतः ।। निहत्य पाण्डवान्सर्वान्मरिष्येऽहं न चान्यथा । इत्युक्त्वा पाण्डुसैन्येन प्रचण्डो योद्धमागमत् ।। द्वयोः सैन्यं दधावाशु महाहंकारसंकुलम् । लाहि लाहि वदच्छौण्डानुत्खातखड्गधारिणः ॥ मद्राधिपं तदा प्राप्तः पाण्डुभूपो महोन्नतः । भीमो दुर्योधनं यातो महाहवपरायणम् ॥२७९ कर्णपुत्रालयः प्राप्ता नकुलं विपुले रणे । मद्रीसुतेन खड़ेन भटा अष्टौ निपातिताः ॥२८० चम्पाधिपसुतैः साधं युयुधे नकुलो बली । दुर्योधनस्तदा धीमांशापं चिच्छेद मारुतेः।।२८१ शक्ति लात्वावधीद्रीमो वक्षो दुर्योधनस्य वै । कौरवस्तु तदा मूर्छामित उन्मूञ्छितः क्षणात् संक्रुद्धः कौरवो भीमं जलस्थलनभश्चरैः । वाणैश्चच्छाद कवचं क्षुरप्रैस्तस्य चाभिनत ॥२८३ भीमः कुद्धो गदा लात्वा सहस्राणि च विंशतिम् । भटानामवधीदष्टौ सहस्राणि रथात्मनाम् ।। यत्र यत्र परं याति भीमस्तत्र न तिष्ठति । नृपः कोऽपि भयत्रस्तः संत्रस्तसुमनोरथः ॥२८५ यं यं पश्यति भीमेशः स स गच्छति पश्चताम् । धर्मात्मजस्तदावोचदुर्योधननृपं प्रति ॥२८६
हे नाथ, अपनी बुद्धिको आप अब स्थिर कीजिए, जिससे आपको कुछ पीडा नहीं होगी।" दुर्योधनने उस समय कहा, कि तू मुझे यह क्या कह रहा है ? मै सब पाण्डवोंको मारकरही मरुंगा। अन्यथा नहीं। मैं युद्ध छोडकर कदापि घर नहीं लौटूंगा ऐसा कहकर वह प्रतापी दुर्योधन पाण्डवोंके सैन्यके साथ लडनेके लिये उद्यत हुआ ॥२७१-२७७ ॥ उस समय महा अहंकारसे भरी हुई दोनों ओरकी सेना कोषसे बाहर निकाली हुई तरवारें हाथमें लिये हुए शूरोंसे 'प्रहार ग्रहण करो' ऐसा कहती हुई आगे दौडने लगी ॥ २७८ ॥ उस समय महोदयशाली पाण्डुभूप-युधिष्ठिर मद्राधिपसे लडनेके लिये आये और युद्ध करनेमें महाचतुर ऐसे दुर्योधनके साथ भीम लडनेके लिये प्राप्त हुए। उस विशाल रणमें कर्णके तीन पुत्र नकुलके साथ लडनेके लिये आये। सहदेवने युद्ध में खड्गके द्वारा आठ शूर योद्धा मारे | बलवान् नकुलने चम्पाधिप कर्णके तीन पुत्रोंके साथ युद्ध किया ।। २७९-२८१ ॥ चतुर दुर्योधनने भीमका धनुष्य छेद डाला। तब भीमने शक्तिनामक आयुध धारण कर दुर्योधनके वक्षःस्थलपर प्रहार किया जिससे वह उसी समय मूछित हुआ परंतु कुछ क्षणके बाद वह सावध हुआ। क्रुद्ध होकर उसने भीमको जलबाण, स्थलबाण और नभश्चरबाणोंसे आच्छादित किया। और बाणोंसे उसका कवच छिन्न कर दिया ॥ २८२-२८३ ॥ तब कुपित हो और हाथमें गदा ले भीमने वीस हजार वीरोंको मारा तथा आठ हजार रथी योद्धाओंको यमपुरीको पहुंचा दिया जहां भीम जाता वहां भयभीत होकर कोई भी राजा नहीं ठहरता। उसके मनोरथ तुरंत नष्ट होते थे। जिस जिसके प्रति भीमकी दृष्टि जाती वह वह परलोक प्रयाण करता था ॥ २८४-२८६ ॥
[ भीमके द्वारा दुर्योधन-वध ] धर्मात्मज-युधिष्ठिर राजा दुर्योधनके प्रति इस प्रकार कहने
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