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________________ ४४२ पाण्डवपुराणम् तन्माहात्म्याननाशाशु विष्णुपाण्डवयोर्बलम् । गुरुपुत्रश्चरन्सैन्ये चूरयामास तदलम् ॥३०९ गजा रथादिवाहानां महीपा दलिता रणे । तेन पाश्चालभूपस्य शिरञ्छिनं समुत्कटम् ॥३१० जयश्रियं समाप्यासौ गुरुपुत्रः शिरस्तदा । तस्य दुर्योधनस्याने दधौ धृतिकरं परम् ॥३११ तन्निरीक्ष्य तदावोचत्कौरवः पाण्डवान्भुवि । हन्तुं क्षमोऽस्ति कोऽप्यत्र निरस्ता यैर्नराः सुराः द्रोणकर्णी रणे ध्वस्तौ यैस्तु पावनिना हतः । अहमेकेन चान्येषां हतानां तत्र का कथा ॥ पश्चापि पाण्डवाः सन्ति जीवन्तस्तत्र किं परैः । हतैः पाञ्चालभूपाद्यैर्वृथानर्थपरायणैः।।३१४ हरिणा पाण्डवैस्तूर्णं बलेनाश्रावि मस्तकम् । सेनान्या सह संछिन्नं तस्य द्रोणसुतेन च ।।३१५ तच्छृत्वा दुःखिताः सर्वे रुरुदुः पाण्डवादयः। कृष्णोऽवोचन कर्तव्यः शोकः स्मो जीविता वयम् ॥३१६ तदा कुद्धो जरासंधः प्रलयाब्धिरिवाययौ । तदा सुरैर्हरिःप्रोचे मा विलम्बय केशव ॥३१७ जहि मागधभूपालं भविता ते महोदयः । श्रुत्वेत्याकारितश्चक्री विष्णुना भाविचक्रिणा ॥ है और मस्तकपर चंद्र है ऐसी मायावती माहेश्वरी विद्या भागती हुई अश्वत्थामाके पास आई। माहेश्वरीके प्रभावसे विष्णू और पाण्डवोंका सैन्य शीघ्र नष्ट हुआ। उनके सैन्यमें संचार करनेवाले गुरुपुत्रने उनके सैन्यको नष्ट कर डाला । युद्धमें गज, रथ आदिकोंके स्वामी राजालोग अश्वत्थामाने नष्ट किये और पांचालराजाका किरीटसे उत्कट शोभायुक्त दीखनेवाला मस्तक छिन्न किया। इस प्रकार जयलक्ष्मीको प्राप्त कर अश्वत्थामाने द्रुपदराजाका संतोष देनेवाला मस्तक दुर्योधनराजाके आगे रख दिया ॥ ३०६-३११ ॥ दुर्योधनराजाने द्रुपदराजाका मस्तक देखा और ऐसा कहा " जिन्होंने देव और मनुष्योंको पराजित किया है ऐसे पाण्डवोंको इस भूतलमें मारनेके लिये क्या कोई समर्थ है ? उन्होंने द्रोण और कर्णको युद्ध में मार डाला। अकेले भीमने मुझे मारा । फिर अन्य जनोंको उसने मारा इसमें क्या आश्चर्य है ? हे अश्वत्थामा, पांचों पाण्डव अद्यापि जीवित होते हुए अनर्थमें तत्पर ऐसे पांचालादिक राजाओंको मारनेमें क्या विशेषता है ? वह सब व्यर्थ है" ॥ ३१२-३१४ ॥ इधर श्रीकृष्ण, पाण्डव और बलभद्रोंने " द्रोणपुत्रने सेनापतिको साथ लेकर पांचालराजाका मस्तक तोड डाला" ऐसा वृत्तान्त सुना । उस समय पाण्डवादिक सब दुःखित हो रोने लगे। कृष्णने कहा, कि शोक करना योग्य नहीं है क्यों कि हम सब जीवित हैं ॥३१५-३१६॥ [कृष्णसे-जरासंधवध ] अठारहवें दिन प्रलयकालके समान क्रुद्ध हुआ प्रतिनारायण जरासन्व युद्धके लिये रणभूमिमें आगया। तब देवोंने हरिसे कहा, कि ' हे केशव, अब विलम्ब मत कर। तू मागधराजा जरासंधका वध कर और इस कार्यमें तुझे महाभ्युदयकी प्राप्ति होगी।" देवोंके वाक्य सुनकर भावी चक्रवर्ती विष्णुने चक्रवर्ती जरासंधको युद्धके लिये बुलाया ॥ ३१७-३१८ ॥ यादवोंका सैन्य देखकर जरासंधने सोमक नामक दूतको सर्व राजाओंका परिचय कहने के लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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