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पाण्डवपुराणम् निशायां दिवसे शूरा योयुद्धथन्ते स्म निद्रया । घूर्णमाना लुठन्तीतस्ततो भूमौ पतन्ति च ॥ एवं प्रतिदिन युद्धं तयोजोतं भयावहम् । घस्राः सप्तदशैवात्र जाता युधि समुत्कटाः ॥२४२ अष्टादशे दिने प्रातस्तयोर्जातो महाहवः । चतुरङ्गबलं तत्र मेलयित्वा महारणे ॥२४३ ।। रचितो मकरव्यूहो मेरुवद्गलगर्जनैः । गजा गर्जन्ति यत्रोच्चैः खड्डौघाः प्रज्वलन्ति च ॥२४४ कौरवाः पाण्डवाचेलुः कुरुक्षेत्रे क्षयंकरे । योद्धं समुद्यता योधा घातयन्तः परस्परम् ॥२४५ वाहनास्त्रमहामाने कौरवाब्धावसृग्जले । पावनी रथपोतेन विवेश हननोद्यतः ॥२४६ कर्णार्जुनौ तदा लग्नौ रणे योद्धं मदोद्धरौ । रविपुत्रधनुश्छिन्नः पार्थेन विशिखैः खरैः ॥ कर्णेन तस्य च्छत्रं तु छिन्नं छिदुरसच्छरैः । परस्परं तुरंगौ तौ छेदयन्तौ च रेजतुः ॥२४८ कर्णेन लक्ष्यवाणेन छिन्नं पार्थशरासनम् । अन्यं चापं समादाय पार्थः प्रोवाच भानुजम् ॥ त्वं कुन्तीनन्दनः कर्णोऽस्मद्माता भुवि विश्रुतः । सहख घनघातं मे तिष्ठ तिष्ठ स्थिरं रणे। वञ्चयित्वा बहून्वारान्प्रमुक्तस्त्वं रणाङ्गणे । सजो भवाथवा याहि रणं मुक्त्वा निजे गृहे ॥
जिसने अपने पराक्रमका वर्णन किया था उस अर्जुनने दिव्य अस्वसे हजार राजाओंका वध किया ॥ २४० ॥ योद्धागण रात्रीमें और दिनमें हमेशा लडने लगे और जब उन्हें निद्रा आ जाती तब वे रणहीमें भूमिपर इधर उधर लुढकते थे और सो जाते थे। फिर उठकर लडते थे तथा मरते थे। इस प्रकार दोनों सैन्योंमें घमसान युद्ध हुआ। इस प्रकार इस भयानक युद्धमें सत्रह दिन समाप्त हुए ॥२४१-२४२ ॥
[ अर्जुनसे कर्ण-वध ] अठारहवें दिन प्रातःकाल दोनों सैन्योंका घोर युद्ध हुआ। उस महायुद्धमें चतुरंगबल एकत्र करके मकरव्यूहकी रचना की, जहां मेरुके समान हाथी गलगर्जनासे जोरसे चिंघाडते हैं; और तरवारोंके समूह चमकतें हैं ऐसे विनाशक कुरुक्षेत्रमें कौरव और पाण्डव युद्धके लिये चल पडे । उसी प्रकार अन्योन्यको मारते हुए सब योद्धा युद्धके लिये उद्यत हुए। वाहन और अस्वरूप महामत्स्य जिसमें हैं, ऐसे रक्तरूपी पानीसे भरे हुए कौरवसमुद्रमें युद्ध करनेके लिये उद्यत भीमने रथरूप नौकासे प्रवेश किया। अभिमानी ऐसे कर्ण और अर्जुन उसी समय युद्ध करने लगे। अर्जुनने तीक्ष्ण बाणोंके द्वारा कर्णका धनुष्य तोड दिया। कर्णने बाणोंसे अर्जुनका छत्र छेद डाला। तब अन्योन्यके घोडे छेदनेवाले वे दोनों युद्धमें शोभा देने लगे। कर्णने लाख बाणोंकी वर्षासे अर्जुनका धनुष्य तोड दिया। तब दुसरा धनुष्य हाथमें लेकर अर्जुन कर्णको कहने लगा, कि “हे कर्ण, तूं तो हमारी माता-कुन्तीका-पुत्र है अर्थात् हमारा भाई है, यह बात भूतलमें प्रसिद्ध है। मेरा तीव्र आघात तू सहन कर और रणमें स्थिर खडे हो जा। अनेकवार मैंने तुझे वञ्चनासे छोड दिया। पर अब तूं युद्ध के लिये सज्ज हो जा या रण छोडकर अपने घर निकल जा। अर्जुनका यह वचन सुन महोन्नतिशाली सूर्यराजाका पुत्र, कर्ण, असे बोलने लगा- " हे अविनयी जडबुद्धि
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