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________________ १३४ पाण्डवपुराणम् जीवितं कौरवेभ्यश्च दत्त्वा सां सुसुखी सदा । प्रतिज्ञेयं मया सुज्ञ विहिता निजमानसे ॥२१७ गुरुधृष्टार्जुनौ तावद्धं कर्तुं समुद्यतौ । अश्वत्थाम्ना समाहूतो घुटुको भीमनन्दनः ।।२१८ बाणेन पतितो भूमौ मने मन्दमतिः स च । पाण्डवास्तन्मृति ज्ञात्वा रुरुदुर्दुःखदारिताः ।। तदा हरिरुवाचेदं शृणुध्वं पाण्डुनन्दनाः । शोकस्यावसरो नैव क्षत्रियाणां रणे पुनः ॥२२० पाण्डवाः शोचमानास्तु यावत्तिष्ठन्ति संगरे । तावत्कौरवसैन्यं हि युद्धं कर्तुं समुत्थितम् ।। अश्वत्थामा तदाहूतो भीमेन भयकारिणा । ऊचे त्वं गुरुपुरुत्रत्वान्मया मुक्तः सुजीवितः ।। अधुना त्वां न मोक्ष्यामि जीवन्तं जीवनप्रिय । इत्युक्त्वा गदया तं च जघान पवनात्मजः।। अश्वत्थामा मुमूच्र्छाशु पतितो मालवेशिनः । अश्वत्थामा करीन्द्रस्तु हत्वा तैः पातितो भुवि।। तदा पाण्डवसैन्येन नत्वोचेऽथ युधिष्ठिरः । भो देवेश रहस्सं त्वमवधारय सांप्रतम् ।।२२५ द्रोणेन विषमं युद्धं विहितं जर्जरीकृतम् । भवत्सैन्यं च वज्रेण गिरिवर्वा वायुना धनः ॥२२६ अस्मद्वले न कोऽप्यस्ति समर्थस्तनिवारणे | उपाय एक एवास्ति कृपां कृत्वाथ तं कुरु ॥ अश्वत्थामा हतो दन्ती तत्स्थाने च वदाधुना । अश्वत्थामा हतो द्रौणिरित्युक्ते स्यात्पराङ्मुखः धर्मात्मजस्तदावोचदसत्यं ब्रूयते कथम् । असत्यतो भवेन्नूनं किल्बिषं कर्मकारणम् ।। २२९ २१७॥ गुरु और धृष्टार्जुन युद्धके लिए उद्युक्त हुए । अश्वत्थामाने भीमके पुत्र घुटुकको युद्ध के लिये ललकारा। उसके बाणसे वह मंदमति घुटुक जमीनपर गिरा और मर गया। पांडव उसके मृत्युका समाचार जान और दुःखसे दीर्ण हो रोने लगे । उस समय श्रीकृष्ण पाण्डवोंको कहने लगे, कि हे पाण्डवों, सुनो क्षत्रियोंको रणमें रोनेके लिये अवसरही नहीं है। पाण्डव युद्धमें शोक कर रहे थे, इतने में कौरव-सैन्य लडनेके लिये उद्युक्त हुआ ॥ २१८-२२१ ॥ द्रोणाचार्यका शस्त्रसंन्यास ] भय उत्पन्न करनेवाले भीमने युद्धके लिये अश्वत्थामाको ललकारा। और कहा, कि “ तुम मेरे गुरुके पुत्र होनेसे मैंने तुमको जीवित छोड दिया था, किंतु हे जीवनप्रिय, आज मैं तुझे जीवन्त नहीं छोडूंगा।" ऐसा कहकर भीमने गदासे प्रहार किया । अब स्थामा मूञ्छित होकर तत्काल भूमिपर जा पडा। उस समय मालवदेशके राजाका ' अवत्थामा ' नामक हाथी सैनिकोंने मारकर भूमिपर गिराया था। उस समय पाण्डवोंके सैन्यने युधिष्ठिरको नमस्कार कर कहा, कि “ भो देवेश, आप इस समय हमारी कुछ गुप्त विज्ञप्ति ध्यानमें लीजिये। 'द्रोणाचार्यने बहुत घोरयुद्ध किया है। उन्होंने आपके सैन्यको, वज्र जैसे पर्वतको, अथवा वायु जैसे मेघको पीडित करता है, पीडित किया है। हमारे सैन्यमें ऐसा कोई बलवान् नहीं है जो उनका निवारण कर सके। परंतु इस लिये एकही उपाय है। उसे आप कृपाकर करें। · अश्वत्यामा ' नामक हाथी मारा गया है। परन्तु उसके स्थानमें आप द्रोणाचार्यको अश्वत्थामा मारा गया ऐसा यदि कहें तो वे युद्धसे पराङ्मुख होंगे।" धर्मात्मजने कहा, कि मैं असत्य कैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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