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पाण्डवपुराणम्
४३२ विविशुः कौरवा वेगाद्वाजिवारणभीकराः । पाण्डवीये बले सुप्ते ध्वान्ते ध्वाङ्क्षारयो यथा॥ कौरवाणां नृपैश्छिन्ना पाण्डवानामनीकिनी। नानाबाणगणैस्तूणादुद्धतैर्धन्वसुधृतैः ॥१९४ कौरवाने क्षणं स्थातुं न क्षमास्तु क्षमाभृतः। पाण्डवानां भृशं भग्ना बभ्रमुस्त इतस्ततः॥ पृषत्कैर्दशभिर्विद्धः पावनिः पावनोऽपि तैः । त्रिभिस्त्रिभिस्तथा विद्धौ मद्रीपुत्रौ मदोद्धतौ ।। दशाभिस्तु तथा विद्धो घुटुको विशिखैनॅपैः । पञ्चभिस्तु तथा भिन्न आशुगैः शक्रनन्दनः ।। शिखण्डी षदशरैर्विद्धो धृष्टद्युम्नस्तु सप्तभिः । वैकुण्ठः पश्चभिर्वाणै रुद्धः संसिद्धशासनः॥ तावद्युधिष्ठिरः क्रुद्धो युद्धं कर्तुं समुद्यतः । दुर्योधनं शरैश्च्छित्त्वापातयन्मूछितं भुवि ॥१९९
द्रोणस्तस्थौ रणं कर्तुं संमुखो न पराङ्मुखः।
प्रविष्टः पाण्डवे सैन्ये व्योम्नि भावानिवोन्नतः ॥२०० प्रभाते पाण्डवं सैन्यं द्रोणेनोत्सारितं क्षणात् । पार्थो बबन्ध तं द्रोणं ब्रह्मास्त्रेण सुशस्त्रवित् ।। गुरुं कृत्वा प्रपूज्यासौ मुक्तः पार्थेन धीमता। द्रोणस्तु लज्जितस्तस्थौ रणानिवृत्त्य निणः।। पार्थस्तु सारथिं सार्थ जगौ वाहय सद्रथम् । कर्णो दुर्योधनश्वास्तेऽश्वत्थामा यत्र तत्र वै॥ तदा दुर्योधनः कर्णमुवाच तस्य सद्रथम् । गृहीत्वा स्वकरे कर्ण नष्टं नो विपुलं बलम् ॥
स्थिर रहने में समर्थ नहीं थे। वे भग्न होकर इतस्ततः भ्रमण करने लगे। पवित्र भीमको भी उन्होंने दश बाणों से विध्द किया । तथा तीन तीन बाणोंसे मदोद्भुत नकुल और सहदेवको उन्होंने विद्ध किया । राजाओंने दस बाणोंसे भीम और हिडिंबाका पुत्र-घुटुक ( घटोत्कचको) विद्ध किया और पांच बाणोंसे अर्जुनको विध्द किया ? शिखण्डीको छह शरोंसे और धृष्टद्युम्नको सात बाणोंसे विद्ध किया । जिसका राजशासन पूर्ण सिध्द हुआ है ऐसे वैकुण्ठको पांच बाणोंसे विध्द किया। यह सब परिस्थिति देखकर क्रुद्ध हुए युधिष्ठिरने लडना शुरू किया। उसने दुर्योधनको बाणोंसे विद्ध करके जमीनपर गिराया और मूछित किया । पाण्डवोंके सैन्यमें प्रवेश किये हुए द्रोणाचार्य आकाशमें उंचे सूर्यके समान रण करनेके सम्मुख हुए। वे पराङ्मुख नहीं हुए। प्रातःकाल पाण्डवोंके सैन्यको तत्काल द्रोणाचार्यने पीछे हटाया तब उत्तम शस्त्रोंके वेत्ता अर्जुनने आचार्यको ब्रह्मास्त्रसे बांधा परंतु गुरु समझकर विद्वान् अर्जुनने उनकी पूजाकर उन्हें मुक्त किया। परंतु व्रणरहित द्रोण लज्जित होकर रणसे लौटकर स्तब्ध बैठ गये ॥ १९१-२०२॥ अर्जुनने सारथिको कहा, कि प्रयोजनभूतशस्त्रोंसे भरा हुआ उत्तम रथ तुम उधर चलाओ, जहां कर्ण, दुर्योधन और अश्वत्थामा हैं। तब दुर्योधन कर्णके रथको अपने हाथमें लेकर कर्णको बोला, कि “ हे कर्ण अपना बल-सैन्य सब नष्ट हुआ है । तब कर्णने कहा, कि हे राजन् , तू मनमें विषाद मत कर। प्रथमतः मैं अर्जुनको मारूंगा और अनंतर दूसरे राजाओंको मारूंगा ।। २०३-२०५॥
[ घुटुकके वधसे पाण्डव खिन्न हुए ] जिनके मनमें क्रोध उत्पन्न हुआ है ऐसे कर्ण और
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