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________________ ४२८ पाण्डवपुराणम् तदा दुयाधनः प्राप्तोऽप्राक्षीद्धो भज्यते कथम् । भवद्भिः संजयन्तस्तु बभाण शृणु भूपते ॥ पार्थेन निखिलं सैन्यं भवत्सैन्यं च विष्णुना । दुर्मर्षणवलं सर्व निरस्तं प्रपलायितम् ॥१५० दुःशासनस्तु नायातो द्रोणस्त्यक्तो गुरुत्वतः । ताभ्यां च कृतवर्माणो हताः संगरसंगिनः॥ शिशुदक्षिणमुख्याश्च हतास्ताभ्यां नृपाः शरैः। ध्वस्तः शतायुधो युद्धे वृन्दविन्दौ नृपौ हतौ॥ पातालाच समानीता गङ्गा पार्थेन पावनी । ताविदानी न जानेऽहं किं करिष्यत उद्धरौ ॥ क्रुद्धो दुर्योधनोवादीन्निन्दयन्द्रोणसद्गुरुम् । द्रोण किं भवतारब्धं वैरिणो हि प्रवेशनम् ॥ त्वया च मानिताः सर्वे वैरिणो विषमाहवे । पक्षं त्वं पाण्डवानां हि धत्से ते बुद्धिरीदृशी॥ तदा गुरुबेभाणेति विषादान्वितमानसः। पार्थबाणेन विद्धोऽहं तेन यामि न तुल्यताम् ॥ अयं युवा च वृद्धोऽहं तेन योद्धं कथं क्षमः । यौवनश्रीसमाकान्तस्त्वं तेन कुरु संगरम्॥१५७ ऐसा पूछनेसे संजयन्तने कहा, कि हे राजन् सुनो । अर्जुनने संपूर्ण सैन्य नष्ट किया है और आपका सैन्य विष्णुने नष्ट किया है। तथा दुर्मर्षणका सर्व सैन्य भागता हुआ नष्ट किया गया। दुःशासन तो युद्धमें आया नहीं। तथा द्रोणाचार्य गुरु होनेसे उनको अर्जुन और श्रीकृष्णने छोड दिया। उन दोनोंने कृतवर्मराजाके युद्ध में लडनेवाले सैनिक नष्ट किये । शिशु, दक्षिण ये राजा जिनमें मुख्य हैं ऐसे राजा बाणोंसे उन दोनोंने नष्ट किये । शतायुधराजा युद्धमें मारा गया। वृन्दराजा और विन्दराजा दोनोंभी मारे गये। अर्जुन पातालसे पवित्रगङ्गा लाया था। ऐसे प्रबल ये कृष्ण--अर्जुन क्या करेंगे कुछ नहीं जाना जाता। यह सब वृत्त सुनकर दुर्योधन कुपित होकर द्रोणाचार्यकी निन्दा करने लगा ॥ १४८-१५३ ॥ - [अर्जुनने दुर्योधनको पराजित किया ] " हे द्रोणगुरो, आपने वैरियोंका प्रवेश होने दिया यह क्या योग्य कार्य किया है ? संपूर्ण वैरियोंका विषमयुद्धमें आपने आदर किया है। आपने पाण्डवोंका पक्ष धारण किया। हे गुरो, आपकी बुद्धि ऐसी कैसी हो गई ? गुरुने विषण्णचित्त होकर कहा कि “ मैं अर्जुनके बाणसे विद्ध हूं इस लिये मैं उसके समान बली कैसे हो सकता हूं। यह अर्जुन तरुण है और मैं वृद्ध हूं इस लिये उसके साथ लडने में मैं कैसे समर्थ हो सकता हूं। " हे दुर्योधन, तू तारुण्यलक्ष्मीसे युक्त है। तू उसके साथ युद्ध कर" ऐसा द्रोणाचार्यका वचन सुनकर मैं अर्जुनको शीघ्र यमका मार्ग देता हूं अर्थात् मैं उसको शीघ्र मारूंगा ऐसा आनंदसे कहनेवाला दुर्योधन धनुष्य लेकर युद्ध के लिये उद्युक्त हुआ। दुर्योधन और अर्जुन दोनों युद्ध करनेके लिये उद्युक्त हुए । दोनोंका शरीर युद्धलक्ष्मीसे सुशोभित दीखता था अर्थात् दोनों पराक्रमसे शोभते थे। अनेक वीरोंने उन दोनोंका आश्रय लिया था। दुर्योधनने अर्जुनके छोडे हुए बाण बीचमेंहि निश्चयसे काट दिये। दुर्योधनने हंसकर कहा, कि हे अर्जुन तेरे गाण्डीवका क्या उपयोग है वह तो बेकार है। हंसकर श्रीकृष्णने कहा कि अब तुम थके हुए क्यों चुप बैठो हो ? अर्जुनने कहा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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