SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 474
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विंशतितम पर्व ४१९ किं वैरिणा हतः पुत्रश्चक्रव्यूहेऽथ किं मृतः । तदा युधिष्ठिरोऽवोचच्छृणु शक्रसुत ध्रुवम् ॥ शानं मुक्त्वा नरौघेण हतस्ते बालनन्दनः । तन्निशम्य मुमूर्छाशु पार्थः पृथ्वीमुपागतः ॥ पुनरुन्मूछितः पार्थो रुरोदेति शुचं सरन् । त्वया विनात्र भो पुत्र धरां धतुं च कः क्षमः ॥ राज्यं भर्ता कुलं त्राता को हनिष्यति वैरिणः । तावदायान्नृपस्तत्र मुकुन्दो मुरमर्दनः ॥४९ नो पार्थ केवलं तेऽद्य सुतो यातो ममापि च । विधवत्वं परं सैन्यं नीतं तेन गतेन वै ॥५० ममातिवल्लभो भन्यो दुर्लभत्वं गतोऽधुना । शोकेनालं नरेंन्द्रात्र शत्रुशर्मविधायिना ॥५१ विद्यतेऽवसरो नात्र शोकस्य शृणु वैरिणः । संयुगे जहि धीरत्वं धर धर्मविशारद ॥५२ जहि पुत्रस्य हन्तारं तत्फलं च प्रदर्शय । अभिमन्युमृतिं श्रुत्वा सुभद्रा भूतलं गता ॥५३ प्राप्ता मूछों समुच्छिमवल्लीव गतचेतना । उन्मूञ्छिता रुरोदाशु हा पुत्रेति प्रजल्पिनी ॥५४ सुसहायपरित्यक्तः सुतो मेऽद्य मृतिं गतः । कथं सुप्तः सुत त्वं हा दुस्तरे शरसंस्तरे ॥५५ हा युधिष्ठिर भूमीश त्वया कि रक्षितो न सः । कुलत्रातात्र भवतां भविता भुवने सुतः ॥५६ ..... पुत्र अभिमन्यु मारा है ।" यह धर्मराजकी बात सुनकर अर्जुन मूछित होकर पृथ्वीपर गिर गया। पुनः सावध होकर शोक करनेवाला वह अर्जुन इस प्रकारसे रोने लगा । हे पुत्र, तेरे विना यहां इस पृथ्वीके भारको धारण करनेमें कौन समर्थ है। राज्यको धारण करना, कुलका रक्षण करना ये कार्य कौन करेगा और वैरियोंका नाश कौन करेगा? ॥ ४१-४९ ॥ [जयद्रथ-वधकी अर्जुन-प्रतिज्ञा ] अर्जुन शोक करने लगा उस समय मुरदैत्यका नाश करनेवाले श्रीकृष्ण वहां आये और वे इस प्रकारसे उसे समझाने लगे- “हे अर्जुन, आज तेरा पुत्र चला गया ऐसा मत समझ, मेरा भी पुत्र मर गया ऐसा समझ, उसने अपने मरणसे अपना उत्तम सैन्य स्वामिरहित किया। अर्थात् अपने सैन्यका एक उत्तम शास्तासेनापति आज नष्ट हुआ है। अभिमन्यु मुझे अतिशय प्रिय था । वह भव्य-सुंदर अभिमन्यु आज दुर्लभ हुआ। हे अर्जुनराज, अब शोक छोड दे इससे शत्रुको सुख होगा। सुन, अब शोकके लिये यहां अवसर नहीं है। तू धर्मका स्वरूप जाननेमें चतुर है, युद्धमें शत्रुको मार और धैर्य धारण कर, जिसने पुत्रको मारा है उसको तू मारकर पुत्रको मारनेका फल दिखा दे ।। ५०-५३ ॥ अभिमन्युका मरण सुनकर सुभद्रा पृथ्वीपर गिर पड़ी। और छिन्न हुई बल्लीके समान चेतनारहित-मूञ्छित होगयी। जब उसकी मूर्छा दूर हुई तो 'हा पुत्र हा पुत्र, ऐसा कहती हुई शोक करने लगी। सहायकोंसे रहित होनेसे आज मेरा पुत्र मर गया है। हाय पुत्र, तू अतिशय दुस्तर-दुःखदायक शरशय्यापर कैसे सो गया ? हे पृथ्वीपते युधिष्ठिर महाराज, मेरे पुत्रका आपने संरक्षण क्यों नहीं किया? इस पृथ्वीतलमें मेरा यह पुत्र आपके कुलका रक्षण करनेवाला हो जाता। हे पृथ्वीपते भीमराज, हे भव्य, आपने उसका रक्षण क्यों नहीं किया ? हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy