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पाण्डवपुराणम्
चतुर्दशसस्त्राहणि कुमाराणां सुचारिणाम् । अभिमन्युर्जघानैवमाशुगैरसुहारिभिः ॥ ११ रणकेलं प्रकुर्वाणो गजानिव महाद्विषः । केशरीव हरन्भेजे सौभद्रो भद्रसंगतः ||१२ तदा दुर्योधनः क्रुद्धो मानसे म्लानितामितः । प्रेक्षते स्म महाशूरान्वचोभिर्भावितात्मनः ॥ विचित्राश्चञ्चलावेलुर्गजवाजिरथस्थिताः । भ्रूभङ्गभीषणा भूपा भाषयन्तः सुभाषणम् ॥१४ द्रोणो विद्रावशत्रून्सुलिङ्गेर्लिङ्गिताङ्गकः । कलिङ्गः कर्णभूपालोऽप्येवं चेतुर्नृपा रणे ।।१५ कलिङ्गकुम्भिनं तावच्चकार विगतासुकम् । सौभद्रः कर्णभूपस्य जहार गर्व संततिम् ॥ १६ द्रोणं स जर्जरीचक्रे जरयेवास्त्रमालया । यत्र यत्र रणं चक्रेऽभिमन्युस्तत्र संजयी ॥१७ नकोsप्यभूत्तदा शूरोऽभिमन्युरणसंमुखः । जायते मत्तमातङ्गः किं सिंहाभिमुखः क्वचित् ॥ अभिमन्युशरेणाशु वाजिनो गजराजयः । स्यन्दनाः पत्तयस्तत्र न च्छिन्ना नाभवन्निति ।। १९ स्वसैन्यमक्षयं कुर्वन्कुमारोऽक्षयसंज्ञकः । दशबाणैर्जघानैनमभिमन्युं महाहवे || २० मूर्च्छितच्छिन्नचेतस्कः स पपात महीतले । उन्मूच्छितः समुत्तस्थे पुनः पार्थस्य नन्दनः || २१ अश्वत्थामा तदा धाम दधदाप च सद्धनुः । विमुखः क्षणतस्तेन शरैश्चक्रेऽभिमन्युना ॥ २२
मन्युने प्राणहारक बाणोंसे युद्ध में प्रवेश किये हुए अर्थात् लडनेवाले चौदह हजार राजकुमारोंको मार डाला । युद्ध-क्रीडा करनेवाला, कल्याणयुक्त, सिंहके समान, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु महाशत्रु जो कि हाथी के समान थे, उनको नष्ट करता हुआ शोभने लगा ।। ९-१२ ॥ उस समय मन में क्रुद्ध और शरीरसे म्लान हुआ दुर्योधन, वचनोंसे जिनको उत्साहित किया है ऐसे महाशूर राजाओंको देखने लगा । उससमय अनेकविध, चंचल ऐसे हाथी, घोडे और रथोंमें बैठे हुए, मोहें टेढी होने से भयंकर दिखाई देनेवाले राजागण भाषण करते हुए चलने लगे । शत्रुओंको भगानेवाले द्रोणाचार्य, उत्तम लक्षणोंसे जिसका शरीर युक्त है ऐसा कलिंगराजा, कर्णराजा तथा अन्य राजा युद्धके लिये रणमें चलने लगे ॥ १३-१५ ॥ सौभद्रने - अर्जुन - पुत्रने उससमय कलिंगराजा का हाथी प्राणरहित किया - मारा और उसने कर्णराजाका गर्वसमूह नष्ट किया। उसने द्रोणको मानो जराही है ऐसी अखपंक्तिसे जर्जर किया। जहां जहां अभिमन्युने युद्ध किया वहां वहां उसे विजय मिला । जो अभिमन्युसे युद्ध करनेके लिये सम्मुख हो सके ऐसा कोई शूर राजाही नहीं था । क्या मत हाथी कभी सिंहके सामने होता है ? अभिमन्युके बाणसे घोडे, हाथियोंकी पंक्ति, रथ, पैदल इनमें ऐसा कोई नहीं था कि जो छिन्न नहीं हुआ हो ॥ १६-१९ || अपने सैन्यको अक्षय रखनेवाले अक्षयकुमारने इस महायुद्ध में दशबाणोंसे अभिमन्युको विद्ध किया । जिसका मन भिन्न हुआ है ऐसा अभिमन्यु मूर्च्छित होकर पृथ्वीतलपर गिर पडा । जब उसकी मूर्च्छा हट गई तब वह युद्धके लिये तैयार हो गया । उससमय शौर्य, तेज और धनुष्य धारण करनेवाला अश्वत्थामा रणभूमि में आया। उसे अभिमन्युने एक क्षण में बाणोंसे विमुख कर दिया || २०-२२ ॥ कर्णने गुरु
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