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।विंशतितमं पर्व। धर्म धर्ममयं सर्व कुर्वाणं धर्मशालिनम् । धर्मराजहरं धयं वन्दे सद्धर्मदेशकम् ॥१ अथः प्रातः समुत्थाय भटा भेजू रणाङ्गणम् । प्रलयानलसंक्षुभ्यत्सागरा इव निघृणाः ॥२ पादभारेण भञ्जन्तो भुजङ्गान्भुवि संस्थितान् । क्षोभयन्तः ककुन्नाथान्भटा योद्धं समुद्यता।। पार्थस्तु प्रथयामास प्रधनं निधनोद्यतः । भटघोटकसंघट्टान्खण्डयंश्च मतङ्गजान् ॥४ एतस्मिन्नन्तरे प्राप्तोऽभिमन्युः सुभटो महान् । विश्वसेनेन संयुद्धं सह कर्तुं समुद्ययौ ॥५ पातयामास विश्वस्य सारथिं पार्थनन्दनः । स्वहस्ते धन्वसंधानं कुर्वन्धुन्वनिपूत्करान् ॥६ शल्यपुत्रः समायासीच्छल्पीभूतश्च वैरिणाम् । अभिमन्युसमं योद्धं वाहयन्स्वरथं रथी ॥७ तावन्योन्यं समालग्नौ छादयन्तौ परैः शरैः । अभिमन्युशरैर्ध्वस्तः शल्यपुत्रो मृतिं गतः ॥८ लक्ष्मणो लक्षणैर्युक्तो लक्ष्यीकृत्य सुपार्थजम् । छादयामास बाणौधैर्धनधातविधायिभिः ॥९ लक्ष्मणं स जघानाशु बाणैः कोदण्डनिर्गतैः । यमप्राघूर्णकं कृत्वाभिमन्युस्तं रणे स्थितः॥१०
[वीसवाँ पर्व ] सर्व जगत्को धर्ममय करनेवाले, धर्मसे शोभनेवाले, जीवोंको जिनधर्म का उपदेश देनेवाले ऐसे धर्मके हितकर और धर्मराजको-यमको नष्ट करनेवाले धर्मनाथ-तीर्थकरको मैं वन्दन करता
इसके अनंतर प्रातःकाल उठकर शूर योद्धा रणांगणमें चले गये। वे क्रूर योद्धा प्रलयकी वायुसे क्षुब्ध होनेवाले समुद्र के समान दीखते थे । पृथ्वीमें रहे हुए भुजंगोंको अपने चरणक भारसे भन्न करनेवाले और दश दिशाओंके इंद्रादि-दिक्पालोंको क्षोभित करनेवाले वे शूर योद्धा युद्धके लिये उद्युक्त हुए ॥२-३॥ मारनेके लिये उद्युक्त हुए अर्जुनने शूर योद्धा, और घोडोंके समूह को तथा हाथियों को खण्डित कर युद्धको विस्तृत किया ॥ ४ ॥ इतने में शत्रुसमूहको भगानेवाला महान् वीर अभिमन्यु रणमें आया और विश्वसेनके साथ युद्ध करनेके लिये उद्युक्त हुआ। अर्जुनपुत्र अभिमन्युने अपने हाथमें धनुष्यका संधानकर विश्वसेन-कुमारका सारथि रथसे गिराया ॥ ५-६ ॥ वैरियोंके हृदयमें शल्यकासा चुभनेवाला शल्यराजाका रथी पुत्र अपना रथ चलाता हुआ अभिमन्युके साथ युद्ध करनेके लिये आया । वे दोनों अन्योन्यको उत्कृष्ट-तीत्र बाणोंसे आच्छादित करते हुए लडने लगे । आभमन्युके बाणोंसे विद्ध हुआ शल्यपुत्र मर गया ॥ ७-८॥
. [ अभिमन्युका अपूर्व पराक्रम ] लक्षणोंसे युक्त लक्ष्मणने अभिमन्युको लक्ष्य बनाकर उसको तक्षिण आघात करनेवाले बाणोंसे आच्छादित किया । तब अभिमन्युने शीघ्र धनुष्यसे निकले हुए बाणोंसे लक्ष्मणका नाश किया। अभिमन्यु उसे यमका मेहमान बनाकर रथमें बैठ गया। अभि
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