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एकोनविंशं पर्व
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उरःस्थले जघानासौ गाङ्गेयं करवालतः । तदा हाहारवो जज्ञे कौरवाणां बलेऽखिले ॥१९१ तदा दिव्यखरो जज्ञे गगने च सुधाशिनाम् । कातरो भव माद्यात्र गाङ्गेय भज धीरताम् ॥ हन्तव्या आहवे वीरास्त्वया चतुरचेतसा । निशम्येति पुनः सोऽभूत्सावधानः स्थिरायुधः ॥ लक्षबाणान्स संधाय मुक्त्वा श्वेतमपातयत् । पतितः सोऽपि संस्मृत्य जिनांधिले दिवं गतः।। तदा निशीथिनी जज्ञे योद्धृणां कृपयेव वै । वारयन्ती रणं नृणां प्रहारान्शोधयन्त्यपि ॥ १९६ वैजयन्त्यौ यथास्थानं तदा जग्मतुरुनते । वैराटोऽथ वधं श्रुत्वारोदीत्पुत्रस्य चेत्यलम् ॥१९७ पुत्र हा संगरे नापि केन त्वं परिरक्षितः । हा धर्मपुत्र धर्मात्मंस्त्वया किसु न रक्षितः ।। भीममूर्ते महाभीम धनंजय धनंजय । भवद्भिर्दृश्यमानोऽयं कथं नीतोऽथ वैरिणा ॥। १९९ तावद्युधिष्ठिरो धीमानभिधत्ते स्म दारुणम् । वस्त्रे सप्तदशे शल्यं मारयिष्यामि निश्चितम् ॥ नहन्मि यदि तत्रेमं ज्वलिष्यामि तदानले । झम्पां दत्त्वा जनैः प्रेक्ष्यमाणो मानविवर्जितः ॥ शिखण्डी खण्डितारातिर्जगौ वै नवमे दिने । पितामहं हनिष्यामि संगरे संगरो मम ॥ २०२ अन्यथाहं च होष्यामि हुताशे स्वं पुनर्जगौ । धृष्टद्युम्नो हनिष्यामि सेनान्यं संगरोधतम् ||
किया । उससमय कौरवोंके संपूर्ण सैन्यमें हाहाकार मच गया । तथा आकाशमें देवोंकी दिव्यध्वनि इस प्रकार सुनी गयी " हे गांगेय, आप नहीं डरिए । आज यहां आप धैर्य धारण कीजिए । चतुरचित्तवाले आप युद्ध में शत्रुओंको मारिए ।” ऐसी ध्वनि सुनकर भीष्माचार्य सावधान हुए और उन्होंने अपने हाथ में स्थिरतासे आयुध धारण किया । उन्होंने धनुष्य पर लक्षत्राण जोडकर श्वेतकुमारपर छोडे और श्वेतको जमीनपर गिराया । गिरे हुए उसने जिनश्वरोंका मनमें स्मरण करके स्वर्ग में प्रयाण किया ॥१९१ - १९५॥ उस समय योधाओंके ऊपर मानो कृपा करनेके लिये रात्री आगई । मनुष्योंके युद्धको रोकती हुई और प्रहारोंका अन्वेषण करती हुई वह रात्री आई । उस समय अपने अपने स्थानपर दोनों पक्षोंकी उन्नतिवाली सेनायें गई ॥ १९६ - १९७ ॥ वैराट राजा पुत्रका वध सुनकर अतिशय रोने लगा । " हे पुत्र, युद्धमें तेरी किसीनेभी रक्षा नहीं की । हा हे धर्मपुत्र आप तो धर्मात्मा हैं, तोभी आपने उसका रक्षण नहीं किया । हे भीममूर्ते महाभीम, और • धनंजय - धन तथा जयसे युक्त हे धनंजय, आप उसकी देखभाल करते थे, तो भी शत्रु उसे कैसे ले गया”॥१९८-१९९॥ उससमय धीमान् युधिष्ठिर राजाने 'मैं सतरहवे दिन शल्यको निश्चयसे मारुंगा । यदि मैं उसदिन उसे नहीं मारुंगा तो अग्निमें जल जाऊंगा । अर्थात् अभिमान छोड़कर लोगों के • समक्ष अग्निमें कूदकर प्राणत्याग करूंगा । " ऐसी प्रतिज्ञा की। जिसने शत्रुओं को खण्डित किया है ऐसे शिखण्डीने कहा कि की मैं नौवे दिन पितामहको मारुंगा यह मेरी प्रतिज्ञा है । यदि मैं नहीं मार सकूंगा तो अग्निमें अपने को जला डालूंगा । धृष्टद्युम्नने कहा कि "युद्ध में लडने के लिये उद्यत सेनापति को मारूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा इन राजाओंने की । " ॥ २०० - २०३ ॥ इतने में रात्रीका अंधकार
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