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पाण्डवपुराणम् दशवाणैस्तु गाङ्गेयः कुमारध्वजमाच्छिनत् । सौभद्रः सारथिं वाही गाङ्गेयस्याच्छिनध्वजम् ॥ वदन्ति स्म तदा वाणीं विदोऽयमभिमन्युकः । साक्षात्पार्थ इवोचस्से सुस्थिरः प्रथितो भुवि ।। अनेनैकेन बाणेन वैरिवृन्दं निराकृतम् । निरङ्कुशेन नागेन यथा सर्वस्वहारिणा ॥१८२ पार्थसारथिना शल्य उत्तरेण रणान्तरे । समाहूतो रणार्थ हि कुन्तासिधन्वधारकः ॥१८३ शल्येन तेन क्रुद्धेन जघ्ने चोत्तरसारथिः । प्रचण्डो भुजदण्डो वा पार्थस्य पृथुविग्रहः ॥१८४ वैराटभूपतेः सूनुः श्वेतनामा दधाव च । शल्यस्य ध्वजछत्रास्त्रवृन्दं संपातयन्मुवि ॥१८५ एतस्मिन्नन्तरे कुद्धो गाङ्गयः संचचाल च । श्वेतेन संनिरुद्धः स धावमानो यदृच्छया ॥१८६ छादयामास गाङ्गेयं शरैर्वैराटनन्दनः । अदृश्यतां परं नीतो मेघौघ इव भास्करम् ।।१८७ तदा दुर्योधनः प्राप्तो मार्यतां मार्यतामयम् । वदन्पार्थेन संरुद्धो वारिणेव धनंजयः ॥१८८ धनंजयः करे कृत्वा गाण्डीवं दशविंशति । चत्वारिंशच सद्धाणान्विससर्ज स कौरवम् ॥१८९ तावन्योन्यं रणे लग्नौ पार्थदुर्योधनौ नृपौ । कृपाणकुन्तघातेन प्रहरन्ती महोद्धतौ ।।१९० वैराटनन्दनस्तावाद्धयमानो महायुधि । पितामहस्य चिच्छेद चापं छत्रं ध्वजं तथा ॥१९१
किया । जब सुभद्रापुत्र अभिमन्युने भीष्माचार्यका सारथि, दो घोडे, और ध्वज तोड दिये तब विद्वान् लोग बोलने लगे की यह अभिमन्यु साक्षात् अर्जुनके समान प्रगट हुआ है । यह अतिशय स्थिर
और भूतलमें प्रसिद्ध है । जैसे अंकुशको नहीं माननेवाला हाथी सर्व वस्तुओंको नष्ट करता है, वैसे इसने एक बाणहीसे शत्रुसमूह नष्ट किया है ॥ १७८-१८२ ॥ जो पूर्वयुद्धमें अर्जुनका सारथि था ऐसे उत्तरकुमारने कुन्त, तरवार और धनुष्यधारक शल्यको रणमें युद्ध करनेके लिये बुलाया। तब शल्यने क्रुद्ध हाकर उत्तरकुमार सारथि मारा । जिसका देह बडा है ऐसा वह उत्तरकुमार मानो अर्जुनके प्रचण्ड भुजदण्डके समान था । तब विराटराजाका पुत्र जिसका नाम श्वेतकुमार था वह शल्यके प्रति दौडा और उसने उसका ध्वज, छत्र और अस्त्रसमूहू भूमिपर गिराया ॥१८३-१८५॥ इसी समय कुापित हुए भीष्माचार्य युद्ध के लिये निकले । वे यथेच्छ जा रहे थे बीचमें श्वेतकुमारने उनको रोका। उसने भीष्माचार्यको बाणसमूहसे आच्छादित किया। मेघसमूह जैसे सूर्यको आच्छादित करते हैं वैसे उसने बाणोंसे भीष्माचार्यको आच्छादित किया ॥ १८६-१८७ ॥
[अर्जुन और दुर्योधनका पुनः युद्ध ] उस समय इस श्वेतकुमार को मारो मारो ऐसा कहता हुआ दुर्योधन जब वहां आया तब पानी जैसे अग्निको रोकता है वैसे धनंजयने दुर्योधनको रोक लिया। धनंजयने अपने हाथमें गाण्डीव धनुष्य लेकर दस, वीस, चालीस ऐसे बाण दुर्योधनपर छोडे । वे अर्जुन और दुर्योधन दोनों राजा आपसमें लडने लगे। वे दोनो उद्धत राजा भाला और तरवार के आघातसे प्रहार करने लगे ॥१८८-१९०॥ उस महायुद्धमें लडनेवाले वैराटनन्दनने-श्वेतकुमारने पितामहका धनुष्य, छत्र और ध्वज छिन्न भिन्न किया तथा उनके वक्षःस्थलपर तरवारका आघात
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