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पाण्डवपुराणम् तालता च हरभैशमुदियाय दिवाकरः । तमः संवीक्षितुं वृत्तं जनानामिव जन्यके ॥२०४ . सैन्ययोस्तु सुयोद्धारो युद्धमारेभिरे तदा । परस्परं शरीराणि खण्डयन्तो महायुधैः ॥२०५ गजा गजै रथास्तूर्ण रथैः सद्वाजिनो हयैः । पत्तयः पत्तिभिः सार्ध संक्रुद्धा योद्धमुद्धताः॥ धनंजयो दधावाशु क्षणे तस्मिन्सुलक्षणान् । सुभटान्मत्तमातङ्गान्केसरीव जयं गतः॥२०७ संख्ये संख्यातिगैर्वाणैरवृणोत्तं पितामहः । आगच्छन्तं प्ररुन्धानो यथा कूलं सरिजलम् ॥ सुरापगासुतेनापि बाणैश्छन्नं नभःस्थलम् । पार्थेनकेन तत्सर्व निन्ये निष्फलतां क्षणात् ॥ शुण्डालानां महाशुण्डा घोटकानां महोन्नतान् । चरणान्रथचक्राणि पार्थश्चिच्छेद सच्छरैः ॥ स शूराणां च वर्माणि मर्माणीव सुनर्मणा । पार्थश्चिच्छेद दिव्येन गाण्डीवेन जयार्थिना ॥ दुर्योधनो जगौ क्रोधाद्गङ्गापुत्रं विनिन्दयन् । तात तात किमारब्धं रणं पराजयप्रदम् ।।२१२ तथा कुरु यथा पार्थः स्थातुं शक्नोति नो रणे । अरौ प्राप्ते रणे तात को निश्चिन्तो भवेद्भटः ।। श्रुत्वेति जाह्नवीपुत्रः पार्थेन योद्धमुद्यतः । तदा नरो जजल्पेदं शृणु शीघ्रं पितामह ॥२१४
नष्ट करनेवाला सूर्य उदित हुआ मानो युद्ध में लोगोंका वृत्त देखने के लिये वह उदित हुआ ॥२०४॥ दोनो सैन्योंमें अन्योन्य के शरीर बडे आयुधोंसे खंडित करते हुए योद्धालोग उस समय युद्ध करने लगे। उद्धत-उन्मत्त हाथी हाथियोंके साथ, रथ रथोंके साथ, उत्तम घोडे घोडोंके साथ और पैदल पैदलोंके साथ क्रुद्ध होकर लडने लगे । २०५-२०६ ॥ जयको प्राप्त हुए सिंहके समान अर्जुनने उस समय उत्तम लक्षणों से युक्त हाथियोंके समान सुभटोंके ऊपर आक्रमण किया। जैसे नदीका किनारा उसके पानी को रोकता है, वैसे युद्धमें प्रवेश किये हुए अर्जुनको भीष्माचार्यने असंख्यात बाणों से रोका । सुरापगासुतने-गांगेयने बाणों से आकाश को आच्छादित किया था तो भी अकेले अर्जुनने वह सब निष्फल किया । अर्जुनने अपने उत्तम बाणोंके द्वारा हाथियोंकी सूंडों को, तथा घोडोंके बडे पैरोंको और रथके चक्रों को छेद डाला । नर्म भाषणसे उपहासके वचनोंसे जैसे मौंको छिन्न किया जाता है वैसे जयको चाहनेवाले अर्जुनने दिव्य गाण्डीव धनुष्यके द्वारा शूर पुरुषोंके कवच छिन्न कर दिये ॥ २०७-२११ ॥ . [अर्जुन और भीष्म, द्रोण और धृष्टद्युम्न का अन्योन्य युद्ध ] दुर्योधन गंगापुत्रकी निंदा करता हुआ कोपसे ऐसा कहने लगा- “ हे तात आप पराजय देनेवाला यह युद्ध क्यों कर रहे हैं। अर्थात् आप यदि उत्साहसे अर्जुन के साथ नहीं लडेंगे तो पराजय ही प्राप्त होगा। इसलिये आप अर्जुनसे ऐसा युद्ध कीजिए, कि, वह रणमें नहीं ठहर सके। शत्रु युद्धमें आनेपर कौन योद्धा निश्चिन्त होगा ? दुर्योधनका भाषण सुनकर अर्जुनके साथ जाह्नवीपुत्र-भीष्माचार्य लडनेके लिये उद्युक्त हुआ। उस समय 'हे पितामह आप शीघ्र सुनिए, मेरा सर्व शस्त्रसमूह समाप्त हुआ है, तो भी मुझे उसकी कुछ चिन्ता नहीं है, परंतु मैं आपको यमका अतिथि बनाकर यममंदिर को भेज
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