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सम्पादकीयअंग्रेजीकी एक सुप्रसिद्ध कहावत है “ The proper study of mankind is man" मनुष्यके अध्ययनका उपयुक्त विषय मनुष्यही है। जबसे हमें मानवीय सभ्यताका इतिहास मिलता है तभीसे हमें इस बातके प्रचुरप्रमाण दिखाई देते हैं, कि मनुष्य अपने अनुभवोंका लाभ अपने समकालीन अन्य जनोंको, एवं भावी सन्तानको देनेका प्रयत्न करता रहा है। और अपने पूर्वजों एवं समसामयिकोंसे बहुत कुछ सीखता रहा है। जिसे हम साहित्य कहते हैं वह इसी मानवीय प्रवृत्तिका फल है । कहानी साहित्यका प्राण है । पूर्वजोंके अनुभव कह कहकर दूसरोंका मनोरंजन करना बडी प्राचीन कला है । संभवतः उतनीही प्राचीन जितनी चित्रकला और भाषा। किन्तु कथाओं द्वारा नैतिक उपदेश देने की कलाका उद्गम और विकास धर्मके साथ साथ हुआ प्रतीत होता है । बौद्धधर्मके जातक और जैनधर्मके व्रत-कथानक इतिहास-प्रसिद्ध हैं ।
__जिन कथाओंने भारतवर्षमें विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त की है वे हैं राम और कौरव-पाण्डवोंके चरित्र । यहांतक कि राम हिन्दूधर्ममें भगवान्के अवतारही माने जाने लगे और रामायणकी प्रतिष्ठा घर घरमें हो गई। जैनियोंनेभी रामको अपने सठ शलाका पुरुषोंमें स्थान देकर उन्हें 'बलभद्र' माना और पद्मपुराण, पउमचरियं, पउमचरिउ आदि संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश काव्योंमें उनके चरित्रका विस्तारसे वर्णन किया। कौरव-पाण्डवोंका चरित्र महाभारतमें इतने विस्तारसे वर्णन किया गया है कि उस रचनाको शत-साहस्री अर्थात् एक लाख श्लोक प्रमाण होनेका गौरव प्राप्त हुआ है। महाभारतका दावा है कि ' यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित् ' जो यहां है वही अन्यत्र है, और जो बात यहां नही कही गई वह अन्यत्र कहींभी नही मिल सकती । तात्पर्य यह कि इस ग्रंथको भारतीय विद्वानोंने एक राष्ट्रीय विश्वकोश बनानेका प्रयत्न किया है। अन्वेषकोंने खोज करके पता लगाया है कि महाभारतकी कथा प्रारंभमें चारणों और भाटोंद्वारा ग्राम ग्राम
और घर घर गाई जाती थी। इसका जब साहित्यमें अवतरण हुआ तब आदितः यह लगभग आठ नौ हजार श्लोक प्रमाण ग्रंथ था जिसमें पाण्डवोंके विविध प्रयत्नोंसे कौरवोंके विनाशकी दःखद कहानी कही गई थी। पश्चात् कृष्णके पाण्डवोंके साथ सम्पर्कके कारण जब कथाने लगभग चौवीस हजार श्लोकोंका विस्तार प्राप्त किया तब जनताकी सहानुभूति कौरवोंपरसे हटाकर पाण्डवोंके प्रति उत्पन्न करनेकी प्रवृत्ति काव्यमें आगई। पश्चात् कृष्णभक्तिके प्रसारके साथ क्रमशः ग्रंथ एक लाख श्लोक-- प्रमाण बन गया।
यहां यह सब कहनेका तात्पर्य यह है कि इन पौराणिक कथाओंमें ऐतिहासिकता देखना बड़ी भूल है। प्राचीन छोटीसी कथाको लेकर कवि उसे अपनी प्रतिभाद्वारा चाहे जितना विस्तार दे सकता है और पाठकोंकी भावनाको अपनी रुचि अनुसार मोड़ सकता है। किसी प्राचीन कविने रामायणके विषय में भी कहा है कि कौन जाने राम कहांतक अवतार पुरुष थे और रावण कहांतक राक्षस था; हम जो कुछ समझ रहे हैं वह सब तो वाल्मीकि कविकी प्रतिभाका चमत्कार है। जो रामायणके विषयमें कहा गया है वह महाभारतके विषयमें तो इतिहास-सिद्धही
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