________________
(४०) भानजा कुर्यधर आ पहुंचा। उसने पाण्डवोंको देखकर और अपने मातुलोंके घातक समझकर उन्हें घोर कष्ट दिया । उसने लोहनिर्मित आभूषणोंको आतशय गरम कर उनके अंगोंमें पहिनाया। इस समय पाण्डवोंने आत्मचिन्तन करते हुए बारह अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन किया । उस भयानक उपसर्गको जीतकर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुनने मुक्ति प्राप्त की । नकुल और सहदेवने किंचित् कालुष्यसे संगत हो शरीरका त्याग कर सर्वार्थसिद्धिमें देवपर्याय प्राप्त की। राजीमती, कुन्ती, सुभद्रा
और द्रौपदीने सम्यक्त्वके साथ चारित्रका परिपालन करते हुए आयुके अन्तमें स्त्रीलिंगको नष्ट कर सोहलवें स्वर्गमें देवत्वको प्राप्त किया।
पंडित बालचंद्र सिद्धान्तशास्त्री
टा
---
धन्य वाद श्रीयुत पण्डित बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्रिजीने हमारी प्रार्थनाका स्वीकार कर पाण्डवपुराणपर गवेषणापूर्ण प्रस्तावना भेजदी अतः हम उनके अत्यन्त आभारी हैं।
पाण्डवोंके विषयमें दिगंबर, श्वेतांबर और वैदिकोंमें जितना साहित्य प्राप्त हुआ है उसका पण्डितजीने अच्छा चिन्तन किया है। पण्डितजीन प्रस्तावनाकी टिप्पणियोंमें पाण्डवोंके .रितसंबंधी बातोंमें कहां समानता और कहां भिन्नता है यह खूब सुंदरतासे दिखाया है। इस विषयमें तथा अन्य सिद्धान्तादिक विषयोंमें उनका परिश्रम प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।
ब्र. जीवराज गौतमचंद दोशी
१ ह. पु. ६५, १८-२३. यहां कहा गया है कि नकुल और सहदेव ज्येष्ठदाहको देखकर अनाकुलित चेतस्क (किंचित् व्याकुल) होकर सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न हुए । उ. पु. ७२, २६७-२७१.
वर्म विशुद्धमुपदिश्य ततः सदैव मासुरे सदसि योगजुषो मुहूर्तम् ।
गण्डोः सुताः क्षणमयोगिगुणास्पदे ते विश्रम्य मुक्तिपदमक्षयसौख्यमीयुः ॥ तत्पथानुगमकाम्यविक्रमा निर्मलानशनकर्मपावनी । नन्दिनी द्रुपदभूभुजोऽपि सा ब्रह्मलोकमतुलश्रियं ययौ॥
दे. प्र. पां. च. १८, २७२-७३. २ कृष्णस्याष्टौ महिष्यश्च तथैव मुनयोऽपरे । साध्व्यश्च राजीमत्याद्या भूयस्यः शिवमासदन् ॥
दे. प्र. पां. च. १८, २४७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org