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पाण्डवपुराणम् कालसंवरभूमीशस्तदायाद्धतकङ्कट । विपक्षान्विमुखान्संख्ये कुर्वन्कौतुकसंगतः ॥११४ तदा शम्ब निवार्याशु प्रद्युम्नो द्युम्नदीधितिः । मेघौघ इव संवर्षनाययौ शरधारया ॥११५ बभाण खचरं मारः पितृतुल्यो भवानिह । योद्धं युक्तं त्वया साकं नातस्तेन निवर्त्यताम् ।। नावाच्यं मार सोऽवोचत्स्वामिकार्यसुकारिणः । सेवकाः सन्ति तेन त्वं संधानं धन्वनः कुरु ।। तदा मारो विमोच्याशु प्रज्ञप्ति कालसंवरम् । विबन्ध्य स्वरथे चक्रे युध्यमानः परैर्भटैः ॥ शल्यखेटस्तदायासीत्प्रद्युम्नं योद्धमुद्धतम् । मारः शरसमूहन तस्य चिच्छेद स्यन्दनम् ।। खेटोऽन्यरथमारुह्य तेन चक्रे महारणम् । शिशुपालानुजः प्राप्तः कर्तुं मारणसंगरम् ॥१२० मारो हतस्तु बाणेन यथा तेन विमूच्छितः । रथं बभञ्ज कामस्य स शरैः शत्रुभेदकैः ॥१२१ सारथिभेयसंत्रस्तस्तदा तस्थौ समुत्थितः । कामः खसारथिं स्वस्थो जगाद गुरुसद्गुणः ॥ इत्थं कृते रणे क्षत्तो लज्यते सुरसंसदि । मर्येषु खेचरेशेषु लज्यते पाण्डवेष्वपि ॥१२३
रोका जानेसे भाग गया। जिसने कवच धारण किया है और जो युद्ध में शत्रुओंको युद्धविमुख करनेवाला कौतुकयुक्त कालसंवर राजा लडनेके लिये आया तब जिसकी देहकान्ति सोनेकीसी है ऐसे प्रद्युम्नने शंबुकुमारको हटाया और जैसे मेघसमूह शरधारा-जलधाराओंकी वृष्टि करता है वैसे शरधाराकी वृष्टि प्रद्युम्न कालसंवरके ऊपर करने लगा ॥ १११-११५ ॥
[ कालसंवरसे प्रद्युम्नका युद्ध ] उस समय प्रद्युम्नने कालसंवर विद्याधरको कहा कि “ इस जगतमें आप मेरे पिताके तुल्य है आपके साथ लडना योग्य नहीं है इस लिये आप युद्धसे लौट जाइये" "हे मारकुमार, तुझे ऐसा बोलना योग्य नहीं है। हम खामिका कार्य करनेवाले सेवक हैं इस लिये तूं अपना धनुष्य सज्ज करके संधान कर। तब मारने प्रज्ञप्तिविद्या कालसंवरके ऊपर छोडकर उसे बांधकर अपने रथमें लिया। इसके अनंतर दूसरे भटोंके साथ युद्ध करनेवाला शल्य नामका विद्याधर उद्धत प्रद्युम्नके साथ लडनेके लिये आया। प्रद्युम्नकुमारने बाणसमूहसे शल्यका रथ तोड डाला तब वह विद्याधर अन्य रथपर आरूढ होकर उसके साथ महा-रण करने लगा ॥ ११६-१२० ॥ शिशुपालका छोटा भाई प्रद्युम्नके साथ युद्ध करनेके लिये आया। उसने बाणके द्वारा प्रद्युम्नके ऊपर आघात किया जिससे वह मूञ्छित हो गया। उसने शत्रुओंको विदारण करनेवाले बाणोंसे प्रद्युम्नका रथ भग्न किया। सारथि अतिशय डर गया। उस समय प्रद्युम्नकुमार ऊठकर बैठा और सारथिको कहने लगा कि यद्धमें यदि ऐसा किया जायगा ( डर कर भागा जायगा) तो हे सारथि देवोंकी सभामें अपनेको लज्जित होना पडेगा। मनुष्योमें, विद्याधरोंमें और पाण्डवोंमें भी लज्जित होना पडेगा। विशेषतः दशाहोंमें अर्थात् यादववंशीय राजाओंमें और बलभद्र तथा कृष्ण इनके आगे लज्जित होना पडेगा। दुःख देनेवाले इस अपवित्र देहसे फिर क्या साध्य होगा? फिर सरस आहारसे पुष्ट शरीरमें क्या गुण रहेगा" ऐसा बोलकर प्रद्युम्न अन्य रथमें बैठकर युद्ध में
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