SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाण्डवपुराणम् अथवा बहुभिः साध्यं नृपैः किं रणनाशिमिः । धनंजयेन चैकेन पूर्यतां पूर्यतामिति ॥९० चूर्यन्ते येन पार्थेन सन्नरा रणचञ्चवः । न शक्नुवन्ति तं विष्णुं वारयितुं सुरा नराः ॥९१ बलः प्रविपुलो बाल्यान्मुशलेन हलेन च । दस्यूदराणि दीप्रेण दारयत्येव दुर्धरः ॥९२ प्रज्ञप्तिप्रमुखा विद्याः समर्थाः शत्रुशातने । सिद्धा यस्य स्मरः केन वार्यते स रणाङ्गणे ॥९३ पावनिः पावनो भूमौ पातयन्योऽरिसंहतिम् । तं निवारयितुं शक्यः कोऽस्ति सद्गदयाङ्कितम् एवमन्ये महीपालास्तरले बलशालिनः । खेचराः संचरन्त्यत्र संख्यातीता महाहवे ॥९५ स सप्ताक्षौहिणीयुक्तो विष्णुरास्ते निरस्तद्विट् । निशम्येति स चक्रेशमगदीत्कौरवाग्रणीः॥ श्रुत्वेति च जरासंधो मदान्धा क्रूरमानसः । जगाद गरुडाकि हि फणी फूत्कुरुते कियत् ॥ भासते किं तमोभारो विभाकरसुभानुतः । पुरस्तान्मम भूपालास्तथा तिष्ठन्ति किं पुनः॥९८ भणित्वेति त्रिखण्डेशः खण्डयन्खण्डिताशयान् । अखण्डचण्डकोदण्डप्रचण्डो रणमाययौ ।। आतोद्यैश्च दिशां नाथानर्तयन्तो नभोऽङ्गणम् । सुच्छत्रैश्छादयन्तस्ते नृपा योद्धं समुद्ययुः ।। पलायन करनेवाले अनेक राजाओंसे क्या साध्य होनेवाला है ? अकेले धनंजयसेही सब कुछ कार्य सिद्ध होगा। अकेला अर्जुन रणचतुर अनेक उत्तम योद्धाओंको चूर्ण करेगा, विष्णुराजाको तो देव और मनुष्य कोईभी रोकने में समर्थ नहीं है। बालकालसेही बलभद्र प्रविपुल-महासामर्थ्यवान् और दुर्धर है। वह तेजस्वी मुशल और हल नामक आयुधोंसे शत्रुओंके पेट फाड डालता है ॥८९-९२॥ शत्रुका संहार करनेमें समर्थ ऐसी प्रज्ञप्ति आदि प्रमुख विद्यायें जिसे सिद्ध हुई हैं वह प्रद्युम्नकुमाररणांगणमें किससे रोका जायगा ? जो इस भूतलपर शत्रुओंके समूहको मार डालता है और जो उत्तम गदासे युक्त है ऐसे पवित्र भीमको कौन रोक सकता है ? ॥९३-९४॥ इस प्रकार श्रीविष्णुके बलमें अनेक बलशाली राजा हैं, तथा अनेक विद्याधर इस महायुद्ध विहार करते हैं ॥९५॥ जिसने शत्रुओंको नष्ट किया है ऐसा विष्णु सात अक्षौहिणी सैन्यसे युक्त है" ऐसी मंत्रीकी कही हुई बातें सुनकर कौरवोंके अग्रणी दुर्योधनने जरासंधको सब बातें कहीं। तब मदान्ध और दुष्टचित्त जरासन्ध सुनकर कहने लगा, गरुडके आगे-सर्प कितना फूत्कार कर सकेगा ? क्या सूर्यकी किरणोंके आगे अंधकारका समूह शोभा धारण कर सकता है ? वैसे मेरे सामने ये राजा क्या खडे हो सकते हैं ? ऐसा कहकर जिनके अभिप्राय विफल किये हैं ऐसों का खण्डन करनेवाला, अखण्ड भयंकर धनुष्यसे प्रचण्ड दीखनेवाला, त्रिखण्डका स्वामी जरासंध युद्धस्थलमें आया ॥ ९६-९९ ॥ वाद्योंसे दिक्पालकोंको आकाशमें नचानेवाले और उत्तम छत्रोंसे आकाशको आच्छादित करनेवाले राजा युद्ध के लिये उद्युक्त हुए ॥ १०० ॥ सैन्यसे ऊपर उडी हुई धूलीके समूहसे आकाशभाग मानो पृथ्वी बन गया और उत्तम छत्र और उत्तम ध्वजोंसे आच्छादित सूर्यभी राहु जैसा दीखने लगा। अंध. कारके समान धूलीसे उस समय रणांगण शीघ्र व्याप्त हुआ। वाद्योंकी ध्वनिके मिषसे युक्त सैनिकोंको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy