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पाण्डवपुराणम् देव ते मन्वते त्वां न पीतमद्या इवोन्नताः । सद्यस्त्वत्सेवनामुक्ता वियुक्ताः शुभकर्मणा ॥४८ श्रुत्वा वाक्यं घराधीशः क्रुद्धो निर्याणसंमुखः । दुन्दुभिं दापयामास कुर्वन्तं बधिरा दिशः॥ खेचराः खेचरन्तश्च वत्रिरे विपुलोदयाः । विमानस्था नरेन्द्रं तं भास्वन्तमिव भानवः ॥५० नरेन्द्राश्चन्द्रसंकाशाः कुमुदोल्लासकारिणः । सदा ग्रहसमुत्तुङ्गा व्योमेव नृपमन्दिरम् ॥५१ आजग्मुस्तेजसा व्याप्तदिङ्मुखास्ते नरेश्वराः । सुगम्भीरोमृतोल्लासाः सत्पथस्यावगाहिनः॥ द्रोणेन भीष्मभूपेन कर्णेन नृपरुक्मिणा । अश्वत्थाम्ना सुशल्येन जयद्रथमहीभुजा ॥५३ कृपेण वृषसेनेन चित्रेण कृष्णवर्मणा । रुधिरेणेन्द्रसेनेन हेमप्रभेण भूभुजा ॥५४
उसने इसप्रकारसे कह दी। " हे देव वे यादव मद्यपायी मनुष्यों के समान होकर आपको नहीं मानते हैं। उन्नत हुए वे आपकी सेवासे तत्काल रहित हो गये हैं। और शुभकर्मसे रहित हुए हैं " ॥ ४७-४८॥
[युद्धके लिये जरासंधका प्रयाण ] दूतका भाषण सुनकर प्रयाणक सम्मुख हुआ राजा क्रुद्ध हो गया। उसने नगारा बजवाया जिससे सर्व दिशायें बधिर हुईं । जैसे किरण सूर्यका आश्रय करते हैं वैसे विमानमें बैठे हुए आकाशमें विहार करनेवाले विपुल उन्नतिवाले उन विद्याधरोंने राजा जरासंधका आश्रय लिया ॥ ४९-५० ॥ वे राजालोग चन्द्रके समान थे। चंद्र कुमुदोल्लासकारीरात्रिविकासी कमलोंको प्रफुल्ल करनेवाला होता है। सदाग्रहसमुत्तुङ्ग-हमेशा सर्व ग्रहोंमें श्रेष्ठ होता. है और आकाशके आश्रयसे वह विहार करता है। राजा भी चन्द्रके समान कु-मुदोल्लासकारी पृथ्वीके आनन्दकी वृद्धि करनेवाले थे और सत्-आग्रह-समुत्तुंग उत्तम आग्रह-शुभकार्य करनेका आग्रह-निश्चय उससे उन्नत थे। ऐसे राजाओंने राजमंदिरका-जरासंधराजाका मन्दिरका आश्रय लिया । अपने तेजसे दिशाओंके मुखोंको व्याप्त करनेवाले वे राजा सत्पथका अवगाहन करनेवाले थे। गंभीर अमृतका उल्लास उनमें था अर्थात् गंभीर और अमृततुल्य शुभविचारोंका विकास उनमें हुआ था। चंद्र भी अपने प्रकाशसे सब दिशाओंके मुख उज्ज्वल करता है औरसत्पथका अवगाहन करता है अर्थात् प्रकाशमान तारादिकोंके मार्गरूप आकाशमें वह अवगाहन-प्रवेश करता है ॥ ५१-५२॥
[ युद्धके लिये कुरुक्षेत्रमें जरासंधका आगमन ] द्रोण, भीष्माचार्य, कर्ण, रुक्मिराजा, अश्वत्थामा, सुशल्य, जयद्रथराजा, कृप, वृषसेनराजा, चित्र, कृष्णवर्मा, रुधिरराजा, इंद्रसेन, हेमप्रभराजा, दुर्योधनराजा, दुःशासनराजा, दुर्मर्षण, दुर्धर्षण, कलिंगराजा ऐसे अन्य राजाओंके साथ अपने
१ प दिङ्मुखाः सर्वदा सदा, स दिङमुखाः सन्मुखाः सदा । २ प महाभारा, स गभीरामृतध्युल्लासा ।
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