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एकोनविंशं पर्व
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भ्रान्त्वा भूवलयं विराटनगरे नानाभटैः संकटे, गत्वा वेषधराः सुपाण्डुतनया जित्वा रणे दुर्जयान् । कौरव्यान्किल गोकुलं जनकुलानन्दप्रदं संख्यके रक्षन्ति स्म सपक्षतो वरवृषात्प्रापुर्विराटे जयम् ||२०० धर्माद्वैरिजनस्य भेदनमहो धर्माच्छुभं सत्प्रभम् धर्मान्धुसमागमः सुमहिमालाभः सुधर्मात्सुखम् । धर्मात्कोमलकप्रकायसुकला धर्मात्सुताः संमताः धर्माच्छ्रीः क्रियतां सदा बुधजना ज्ञात्वेति धर्मः श्रियै ॥२०१ इति श्रीपाण्डवपुराणे भारतनानि शुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे पाण्डवानां विराटनगरे कौरवभङ्गप्रापणगोकुलविमोचनाभिमन्युविवाहद्वारावतीप्रवेशवर्णनं नामाष्टादशं पर्व ॥ १८ ॥
। एकोनविंशं पर्व ।
अनन्तानन्तसंसारसागरोत्तारसेतुकम् । अनन्तं नौम्यनन्तत्वं गुणानां यत्र वर्तते ॥ १
श्रेणिकराजा, तुम सुनो जिससे विष्णु और प्रतिविष्णुके सुख और दुःखका ज्ञान होगा ॥ १९९ ॥ पाण्डव भूवलयमें घूमकर नाना- भटोंसे व्याप्त विराटनगरमें गये । वहां वेष धारण कर युद्धमें दुर्जय कौरवोंको उन्होंने जीता । जनसमूहको आनन्द देनेवाले गोकुलकी उन्होंने शत्रुओंसे रक्षा की और सत्यक्षरूप धर्मके आश्रयसे विराटदेशमें उन्होंने जय प्राप्त किया । धर्मसे वैरियोंका नाश होता है, अहो धर्मसे उत्तम कान्तिवाला पुण्य प्राप्त होता है । धर्मसे बंधुओंका समागम और उत्तम महिमाका लाभ होता है । सुधर्मसे सुखप्राप्ति होती है। धर्मसे कोमल और सुंदर शरीरकान्ति प्राप्त होती है । धर्मसे अपने मतानुकूल पुत्र प्राप्त होते हैं और धर्मसे लक्ष्मी प्राप्त होती है । हे विद्वज्जन आप धर्म होनेवाले शुभकार्य जानकर उसकी अनन्तज्ञानादि - लक्ष्मी के लिये आराधना करो ॥ २०० - २०१ ॥ ब्रह्म श्रीपालजीकी सहायतासे भट्टारक श्रीशुभचन्द्रजीने रचे हुए श्रीपाण्डवपुराण महाभारतमें विराटनगरमें कौरवोंको पराजयप्राप्ति, गोकुलोंको कौरवोंसे छुडाना, अभिमन्युका विवाह और द्वारावतीमें प्रवेश इन विषयोंका वर्णन करनेवाला अठारहवा पर्व समाप्त हुआ ॥ १८॥
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[ उन्नीसवा पत्र ]
जिसमें गुणोंका अनंतपना है, जो अनन्तानंत-संसाररूपी समुद्रसे पार जानेके लिये सेतुके समान है ऐसे अनन्तनामक तीर्थकर परमदेवकी मैं स्तुति करता हूं ॥ १ ॥
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