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पाण्डवपुराणम्
गन्धर्वेण सगर्वेण हतः स श्रूयते लघु । असहायो विराटोऽपीदानीं संजातवानिह ॥ ६ विपुलं गोकुलं तस्य विख्यातमखिले जने । अटित्वा तत्र वै तूर्णं हर्तव्यं च मयाधुना ॥७ रणशूरान्मम पृष्ठे संगतान्विकटान्भटान् । हत्वा समानयिष्यामि गोकुलं तस्य चाखिलम् ||८ पाण्डवाः प्रकटास्तत्र समेष्यन्ति युयुत्सवः । हनिष्यामि महाद्रोहान्गुप्तदेहांश्च तांस्त्वरा ॥ ९ आकति सुगान्धार्यास्तं प्रशस्य सुतः परम् । जालंधरं नृपं हर्तुं प्रेषयामास गोकुलम् ॥ १० स चचाल तरतुङ्गतुरङ्गै रिङ्खणोद्धतैः । सजैर्गजैश्चलत्केतुसंघातैः सुरथैः सह ॥ ११ तत्रेत्वा नृपतिर्जालंधरः क्रोधसमुद्धतः । जहार गोकुलं सर्व गोरक्षै रक्षितं सदा ॥१२ तदा तद्रक्षकाः सर्वे पूत्कुर्वाणा भयावहाः । नष्ट्वा चक्रुश्च पूत्कारं विराटाग्रे विशेषतः ||१३ देव जालंधरो धेनुवृन्दं संहृत्य यात्यहो । चतुरङ्गेन सैन्येन सागरो वारिणा यथा ॥ १४ निशम्य भूपतिः क्रुद्धो विराटनगरेश्वरः । दापयामास सरीं युद्धौद्धत्यविधायिनीम् ॥१५ श्रुत्वा शूराः समुत्तस्थुर्युद्धसंनाहसंगिनः । कुर्वन्तो बधिरं व्योम ध्वनिना धन्ववर्तिना ॥१६
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भयंकर ऐसा प्रकट और दुर्जय योद्धा कीचक जो कि कौरवपक्षका धारक था युद्धमें गर्वोद्धत गंधमारा है ऐसा वृत्त हालही हमने सुना है । इससे इस समय विराटराजाभी असहाय हुआ है ॥२-६॥
[ विराटराजाका गोकुलहरण ] “ विराटराजाका गोकुल ( गौओंका समूह ) विपुल है और सम्पूर्ण जगतमें विख्यात है । इस लिये अब जल्दी विराटकी राजधानीमें जाकर मैं उसका हरण करता हूं। मेरे पीछे आये हुए रणशूर बिकट योद्धाओं को मारकर मैं उसका सम्पूर्ण गोकुल लाता हूं ॥ ७-८ ॥ उस समय वहां प्रकटपनेसे पाण्डवभी युद्ध करनेकी इच्छासे आयेंगे अर्थात् युद्धेच्छु rose आयेंगे। मैं महाद्रोही गुप्त-शरीरवाले पाण्डवोंको त्वरासे मारुंगा " ॥ ९ ॥ जालंधरके इस वचनको सुनकर गांधारीरानीका पुत्र दुर्योधनने उसकी स्तुति की और उसने गोकुलहरण कर - नेके लिये जालंधर राजाको भेज दिया ॥ १० ॥ वह जालंधर राजा हेषारवसे उद्धत और चंचल ऊंचे घोडे, सज्ज हाथी, जिनके ऊपर ध्वजसमूह हैं ऐसे रथ इनके साथ प्रयाण करने लगा। वहां पहुंचकर क्रोधसे उद्धत, जालंधरराजाने रक्षण करनेवालोंसे सर्वदा रक्षित सर्व गोकुलका हरण किया ॥ ११-१२ ॥ उस समय उसके सर्व रक्षक पूत्कार करने लगे । भययुक्त होकर वे भाग गये तथा विराटराजाके आगे जाकर विशेष पूत्कार करने लगे । " हे देव, जैसे समुद्र पानीका प्रवाह लेकर जाता है - बहता है वैसे चतुरंग सैन्य लेकर जालंधरराजा धेनुओंको हरण कर यहांसे चला गया है । " इस वार्ताको सुनकर कुपित हुए विराटनगरके स्वामी विराटराजाने युद्धकी उद्धतता उत्पन्न करनेवाली भेरी बजवाई । भेरीकी आवाज सुनकर युद्धकी तयारी जिन्होंने की है ऐसे योद्धा धनुष्यसे उत्पन्न हुए शब्दसे आकाशको बधिर करते हुए उठकर खडे हुए। जिनके ऊपर घोडेस्वार बैठे हुए हैं, सुवर्णके पलानोंसे भूषित, घण्टिकाओंसे सुंदर ऐसे घोडे युद्धसमुद्रके तरंगोंके समान
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