________________
अष्टादशं पर्व
३७१ सच्छीलेन च कीचकः कृतमहापापः समापाशु च
पश्चत्वं परहास्यतां च जयतात्तच्छीलवृन्दं सदा ॥३२८ इति श्रीपाण्डवपुराणे भारतनाम्नि भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे पाण्डवानां कृत्योपद्रवविनाशनविराटगमनद्रौपदी— शीलरक्षणकीचकवधवर्णनं नाम सप्तदशं पर्व ॥१७॥ -----
-
। अष्टादशं पर्व । विमलं विमलालापं विमलं विमलप्रभम् । विमलैः सेव्यपादाब्जं मलहान्यै स्तुवे जिनम् ॥१ पितामहः प्रपञ्चेनाथावादीद्रोणमुत्तमम् । चतुर्थे पञ्चमेवाह्नि समायास्यन्ति पाण्डवाः ॥२ पाण्डवाः प्रकटीभूत्वा संघटिष्यन्ति ते स्फुटम् । दुर्घटं कार्यमेवाहं जानामीति सुनिश्चितम् ॥ तदा जालंधरो जाल्मो जगाद जननिष्ठुरः । विराटे भेटनं स्पष्टं भविता विकटे परे ॥४ कीचकः परचक्राणां भयदः प्रकटो भटः । दुर्जयो विग्रहे योद्धा कौरवीयसुपक्षभृत् ॥५
उपहासको प्राप्त हुआ ऐसा वह शीलसमूह हमेशा जयवन्त रहे ॥ ३२८॥ ब्रह्म श्रीपालकी सहायतासे भट्टारकश्रीशुभचंद्रजीने रचे हुए श्रीपाण्डवपुराण-महाभारतमें पाण्डवोंके कृत्योपद्रवका विनाश, विराटराजाके यहां गमन, द्रौपदीका शीलरक्षण और कीचकका
वध इन विषयोंका वर्णन करनेवाला यह सतरहवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ १७॥
[ पर्व अठारहवाँ ] जिनका भाषण विमल है अर्थात् जिनका दिव्यध्वनि पूर्वापरादि-दोषरहित ह, तथा जो विमल-पापरहित हैं, जो रागद्वेषादि-दोषोंसे रहित हैं, जिनकी कान्ति निर्मल है तथा रागादि दोषरहित गणधरादि मुनियों द्वारा जिनके चरण-कमल सेवनीय हैं ऐसे विमल जिनेश्वरका मैं पापनाशके लिये स्तुति करता हूं ॥१॥
पितामह भीष्माचार्यने विस्तारसे श्रेष्ठ द्रोणाचार्यको कहा कि “ पाण्डव चौथे अथवा पांचवें दिन यहां आनेवाले हैं। पाण्डव प्रकट होकर कठिन कार्यकी संयोजना स्पष्टतया करेंगे, युद्ध करेंगे ऐसा मैं निश्चयसे समझता हूं"। उस समय दुष्ट जालंधर नामक राजाने लोगोंको कर्कश लगनेवाला भाषण किया, कि इस बिकट उत्तम युद्धमें स्पष्टतया विराटका मर्दन होगा। क्यों कि शत्रुसैन्यकों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org