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३७.
पाण्डवपुराणम् तस्मिन्नवसरे प्रेष्याः प्रेषिताः प्रेक्षितुं नृपान् । दुर्योधनमहीशेन प्राप्ताः कीर्तिकलकिना ॥३१९ भृत्यास्ते वीक्षितुं याता महीधे च महीतले । अटव्यां सलिले दुर्गे लोकयन्ति स्म नो कचित् ॥
समीक्ष्य निर्वृतास्तेऽपि नत्वा कौरवभूपतिम् । न दृष्टाः क्वापि कौन्तेया जीवन्तो न श्रुतौ श्रुताः ॥३२१ न कापि लक्षिता भूमौ प्राप्तास्ते च परासुताम् ।
इति विज्ञाप्य संप्रापुर्वेश्म वित्तं च कौरवात् ॥३२२ अगदीद्गुरुगाङ्गेयः कौरवाः शृणुताद्भुतम् । प्रचण्डाः पाण्डवाः पञ्च न म्रियन्तेऽल्पमृत्युतः । महापराक्रमाक्रान्ता निश्चलाः पञ्चमेरुवत् । पञ्च ते परमाश्चान्त्यदेहा दीप्तिधरा ध्रुवम् ॥ ममाग्रे मुनिना प्रोक्तं राज्यभागी युधिष्ठिरः। भविता तपसा सिद्धिं याताः शत्रुजये गिरौ। ते सन्ति संततं सन्तो जीवन्तो विसृता गुणैः । सर्वत्र सुगुणैः पूज्याः पूज्यपूजनतत्पराः ॥
यत्रैते परमोदयाः परभुवि प्राप्ताः प्रतिष्ठां पराम् संनिष्ठाः सुगरिष्ठशिष्टमहिताः सचेष्टया वेष्टिताः । प्रेष्ठाः स्वेष्टजनस्य कष्टरहिताः प्रस्पष्टमिष्टाक्षराः श्रेष्ठाः सन्तु समस्तविघ्नविमुखा कः श्रेयसे पाण्डवाः ॥३२७ पाञ्चाली परमा सुपावनयशाः सच्छीललीलावहा लावण्यामृतवापिका वरगुणा गाम्भीर्यधैर्यावृता ।
नहीं दीख पडे है अतः वे मर गये होंगे" ऐसा कहकर उन्होंने दुर्योधनसे घर और धन प्राप्त किया ॥३१८-३२२॥ एक समयमें गुरु भीष्माचार्यने कौरवोंसे ऐसा कहा “ हे कौरवों, तुम अद्भुत वार्ता सुनो। प्रचण्ड पांचों पाण्डव अल्पमृत्युसे नहीं मरनेवाले हैं। वे महापराक्रमसे पूर्ण हैं, वे पांचोंभी पंचमेरुके समान निश्चल हैं। वे निश्चयसे उत्कृष्ट और अन्त्यशरीरवाले, कान्तिके धारक हैं। मेरे आगे मुनिने ऐसा कहा है, कि युधिष्ठिर संपूर्ण कुरुजाङ्गल देशका राजा होगा और शत्रुजय पर्वतपर मुक्ति प्राप्त करनेवाला होगा । वे सत्पुरुष जीवन्त हैं और हमेशा गुणोंसे प्रसिद्ध होंगे। सर्वत्र अपने गुणोंसे वे पूज्य होंगे और पूज्य महापुरुषोंके पूजनमें तत्पर रहेंगे " ॥ ३२३-३२६ ॥ ये पाण्डव उत्तम उदयवाले हैं और उत्तम पृथ्वीपर उत्कृष्ट प्रतिष्ठाको प्राप्त हुए हैं। शुभकार्योंमें तत्पर रहते हैं। अतिशय बडे शिष्ट पुरुषोंसे आदरणीय हुए हैं और सदाचारसे वेष्ठित हैं। प्रिय अपने इष्ट जनोंको कष्ट नहीं देनेवाले, स्पष्ट और मिष्ट बोलनेवाले, श्रेष्ठ, सम्पूर्ण विनोंसे रहित ह ऐसे वे पाण्डव आपके लिये मोक्षका हेतु हो जावें ॥ २७ ॥ द्रौपदी उत्तम पवित्र यशवाली और उत्कृष्ट शीलकी लीला धारण करनेवाली है। लावण्यरूपी सुधाकी वह वापिका-बावडी ह। वह उत्कृष्ट गुणवाली है, तथा गंभीरता और धैर्यसे युक्त है। जिसके प्रशंसित शीलसे कीचक महापाप करके मरण और
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