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अष्टादशं पर्व
३७३ घोटका घण्टिकाटोपाः स्वर्णपर्याणभूषिताः । तरङ्गा इव संचेलुः संग्रामाब्धेः ससादिनः ॥१७ सकुथाः सत्पथास्तत्र जगर्जुर्गजराजयः । रथ्यायां संस्थिता रम्या रथाः संरुद्धसत्पथाः ॥१८ एवं विराटभूमीशश्चतुरङ्गबलान्वितः । पुररक्षां विधायाशु निर्जगाम रथस्थितः ॥१९ . प्रच्छन्नाः पाण्डवाः पश्चाचेलुश्चञ्चलमानसाः । सरथा धावमानास्ते धराधरा इवोभताः॥२० संग्रामातोद्यवृन्दानि दध्वनुर्ध्वनिमिश्रिताः । धनुषां व्योम्नि संबद्धा मेघध्वाना इवोद्धताः ॥ रोमाञ्चिता महाशूराः समालोक्य तयो रणम् । भीरूणां विकटं नृणां संकटं प्रकटं तदा॥ शरेण रणशौण्डीरा धनुः संधाय धन्विनः । मुमुचुहृदयं वेध्यं विधाय विद्विषां शरान् ॥२३ खण्डिताः खगघातेन परे पेतुर्महाहवे । तयोश्च वल्गतोर्यद्वत्पर्वताः पविपाततः॥२४ महाहवस्तयोर्जातः सर्वलोकभयप्रदः । निशीथिन्यां हिमांशोश्वोद्गमे वीरसमुद्गमे ॥२५ जालंधरो धरन्योद्धन्दधाव धनुषा क्षिपन् । विशिखानशाखया मुक्तान्कुर्वन्वृक्षान्यथा करी॥ विराटं विकटं धीरमाहूय शरजालकैः । जालंधरोऽथ विव्याध ससारथिं समुद्धतम् ।।२७ व्याजेनासौ परां दत्त्वा झम्पां तद्रथमूर्धनि । बबन्ध बन्धनैवीर विराटं संकटं गतम् ॥२८
चलने लगे। कुथोंसे-झालरियोंसे सहित और अच्छे मार्गसे जानेवाली ऐसी हाथियोंकी पंक्तियाँ गर्जना करने लगीं। और मार्गमें खडे हुए सुंदर रथोंने उत्तम मार्गोंको रोका। इसप्रकारसे नगरकी रक्षण-व्यवस्था कर विराटराजा अपने चतुरंग सैन्यसहित रथमें बैठकर निकला ॥ १३-१९ ॥ जिनका मन चञ्चल है ऐसे गुप्तवेषवाले पाण्डव उसके पीछे चलने लगे। रथमें बैठकर दौडनेवाले वे ऊंचे पर्वतोंके समान दीखने लगे। आकाशमें सम्बद्ध उद्धृत मेघोंकी ध्वनिके समान युद्धमें वाद्यसमूह धनुष्योंके ध्वनिओंसे मिश्रित होकर बजने लगे ।। २०-२१ ॥
विराटनृप-बंधन] जालंधर और विराटराजाका आपसमें होनेवाला युद्ध देखकर महाशूर वीरोंके शरीर रोमाञ्चित हुए। और भयभीत लोगोंको वही युद्ध प्रकटरूपसे संकटरूप हुआ। रणमें पराक्रमी धनुर्धारियोंने अपना धनुष्य बाणके साथ जोडकर तथा शत्रुओंके हृदयको वेध्य करके बाण छोडे । जैसे पर्वत वज्रके गिरनेसे गिरते हैं वैसे वल्गना करनेवाले दोनों राजाओंके महायुद्धमें खड्गके आघातसे खण्डित हुए शत्रु गिरने लगे। रात्रिमें चन्द्रका उदय होनेपर वीरसमूहमें उन दोनोंका सर्व लोगोंको भय दिखानेवाला बडा युद्ध हुआ। जैसे हाथी वृक्षोंको शाखाओंसे रहित करता है वैसे धनुष्यके द्वारा बाणोंको फेंकनेवाले जालंधर राजाने योद्धाओंको शाखामुक्त किया अर्थात् हाथोंसे रहित किया-योधाओंके हाथ उसने बाणोंके द्वारा तोड डाले ॥२२-२६॥ धैर्यवान् और पराक्रमी विराटको बुलाकर जालंधरने सारथिके साथ उद्धत विराटराजाको शरसमूहसे विद्ध किया । जालंधरने कुछ निमित्तसे विराटराजाके रथके अग्रभागपर बडे जोरसे कूदकर संकटमें पडे हुए विराटवीरको बंधनोंसे बांध लिया। जैसे गरुड आकाशमें भयंकर सर्पको पकडकर ले जाता है वैसे जालंधर व्यथासे
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