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सप्तदशं पर्व
३६७ कीचकोऽचिन्तयश्चित्ते सैषा नेति च निश्चितम् ।
अन्यः कोऽपि समायातो धूर्तो धृष्टमनाः स्वयम् ।।२८६ नैमित्तिकवचश्चेति मरणं विपुलोदरात् । कीचकस्य ममेदानीं जातं सत्यं तदीक्ष्यते ॥२८७ ध्यात्वेति तेन तद्धस्तात्स्वहस्तो मोचितो हठात् । कीचकेनाशु मौनेन ध्यायता मरणं ततः।। ततस्तौ प्रवरौ लगौ रणं कर्तुं कृपातिगौ । हस्तपादप्रहारेण प्रहरन्तौ परस्परम् ॥२८९ संदष्टोष्ठपुटौ स्पष्टौ रुधिरारुणलोचनौ । प्रस्खेदोदकदीप्राङ्गौ दरदौ देहिनां सदा ।।२९० भीमेन वज्रघाताभकरघातेन वक्षसि । जप्ने हुंकारनादेन कीचकः पातितो भुवि ।।२९१ ततस्तडतडत्संधिबन्धास्थिः स्थगितो हृदि । पादाभ्यां भीमसेनेन कीचकः कण्ठरुद्धवाक् ॥ पादौ दत्त्वा तदा तस्य हृदये पावनिर्जगौ । रे दुष्टानिष्टसंक्लिष्ट पररामेष्टिसंरत ॥२९३ फलं प्रविपुलं पश्य पररामारतेतम् । इत्युक्त्वा भीमसेनस्तं पिपेषोरसि निष्ठुरम् ॥२९४ पररामारतस्त्वं हि क यासि व्यसनोद्यतः । इत्युक्त्वा पादघातेन मारितः स मृतः क्षणात।। द्रौपद्या ज्ञापितं तत्र गन्धर्वैः कीचको हतः । इति श्रुत्वा विराटेशो भयभीतः क्षणं स्थितः ॥
कर उसका हाथ उसने पकड लिया तब उसके हाथका कठोरपना उसके अनुभवमें आया । कीचकने मनमें निश्चित जान लिया कि यह वह नहीं है, अर्थात् यह द्रौपदी नहीं है, यह कोई धृष्ट-मनवाला धूर्त स्वयं आया है ऐसा उसने समझ लिया। “ कीचकका मरण विपुलोदरसे-भीमसे होगा ऐसा जो नैमित्तिकका आदेश है वह सत्य होने जा रहा है ऐसा मुझे दीखने लगा है।" भीमसे मेरा मरण होगा ऐसी चिन्ता करनेवाले कीचकने मौनसे भीमके हाथोंसे अपना हाथ जोरसे छुडा लिया ॥ २८३-२८८ ॥ तदनंतर दयारहित वे श्रेष्ठ बली भीम और कीचक युद्ध करनेके लिये उद्युक्त हुए। वे अन्योन्यको हाथोंसे और पावोंसे मारने लगे। वे दोनों अपने दो ओठोंको पीसने लगे। उनकी आखें रक्तके समान लाल हो गई। लडनेसे उनके शरीर पसेवके जलसे चमकने लगा। वे प्राणियोंको सदा भयंकर मालूम हुए। भीमने कीचकके छातीपर वज्राघातके समान हाथोंका प्रहार कर हुंकारनादसे उसे जमीनपर गिरा दिया। तदनंतर जिसकी सन्धिबन्धनोंकी हड्डियां टूट गई हैं, ऐसे कीचकके छातीपर भीमसेनने अपने दोनो पांव रखे जिससे उसके कंठमें ही वचन रुक गये बाहर नहीं आ सके। उसके हृदयपर अपने दो पाव रखकर भीमसेन इस प्रकार बोला----- " हे दुष्ट, अनिष्ट संक्लेश परिणामवाले, परस्त्रीकी अभिलाषामें लुब्ध, परस्त्रीमें रति करनेका यह विशाल फल देख " ऐसा कहकर भीमसेनने निष्ठुर होकर उसकी छाती पीस डाली। तूं परस्त्रीकी अभिलाषा करनेवाला उस व्यसनमें उद्युक्त हुआ है। अब तू मेरे पंजोंसे छूटकर कहां जायगा? ऐसा कहकर उसने कीचकको पांवके प्रहारसे मार डाला। कीचक तत्काल मर गया ॥२८९-२९५॥ गंधर्वोने कीचकको मार डाला' ऐसी वार्ता द्रौपदीने विराटराजाको निवेदन
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