SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्सेवकास्तदा श्रुत्वा दधावलियूसराः। आययुनर्तनागारे सकिविकजनाकुले ॥२९७ तत्रालोकि विलक्षैस्तैः कीचको विगतासुकः । असुक्संघातसंकीर्णो देषेनेव हतो हठात् ॥२९८ ते तं मृतं समालोक्य कीचकं विकटा भटाः । गन्धर्वेण हतं चिते निश्चिक्युवीडया वृताः ।। गन्धर्वेण शवं सत्रं ज्वालनीयं च पावके । प्रच्छन्नं को न जानाति यथावक्रियते लघु ॥३०० प्रभातसमये जाते ज्ञास्यन्ति निखिला जनाः । वृत्तमेत्प्रवृत्तं हि सहेलं हास्यकारणम् ॥३०१ तमिस्रायां विमिश्रायां तमसा त्वरयान्वितैः । कल्प्यतां कीचको वहौ गन्धर्वेण सम ध्रुवम् ।। इत्युक्त्वा ते गता यत्र पाश्वाली परमोदया। समास्ते तत्र तां धृत्वा हस्ते ते निरकासयन्। पाञ्चाली निर्गता हा धिग्वदन्ती परिमुञ्चती। अश्रुधारां सुगन्धर्व हाहेति मुखरानना ॥३०४ पाञ्चालीवचनं श्रुत्वा विभञ्ज्य वरणं वरम् । मुक्तकेशः समुन्मूल्य महीरुहमखण्डतः॥ करे कृत्वा दधावासी वायुवद्वायविस्तदा । कुर्वाणो जनतारेका सद्यो विस्मयकारिणीम् ।। की। उसे सुनकर वह भीतिसे क्षणतक चुप बैठा रहा । उस समय धूलिसे मलिन उसके सेवक इस वार्ताको सुनकर संकेतस्थानके तरफ दौडने लगे। संकेत करनेवाले लोगोंसे व्याप्त नाट्यशालामें वे आ गये। खिन्न हुए उन नौकरोंने मरा हुआ कीचक वहां देखा। वह रक्तप्रवाहसे भर गया था। मानो दैवने उसको हठसे मार डाला था। वे शूर भट उस कीचकको मरा हुआ देखकर लज्जासे घिरे हुए उन्होंने गंधर्वने इसको मारा ऐसा निश्चय कर लिया ॥ २९६-२९९ ॥ कीचकका शव गन्धर्वके साथ अग्निमें जलाना चाहिये। और यह कार्य जैसा कोई नहीं जान सकेगा ऐसा गुप्तरीतिसे शीघ्र करना चाहिये। प्रातःकाल होनेपर हास्यकी कारणभूत इस बातको सब लोक तिरस्कारसे जानेंगे। अंधकारसे मिश्रित इस रात्रीमें हमारे द्वारा कीचकका प्रेत गन्धर्वके साथ निश्चयसे अग्निमें जलाना योग्य है। ऐसा भाषण कर जहां परमोन्नतिशाली द्रौपदी थी वहां वे गये और उसे पकडकर उन्होंने बाहर निकाला ॥ ३००-३०३ ॥ हा धिक्कार ऐसा बोलती हुई और अश्रुधारा ओंको बहाती हुई तथा हे गन्धर्व, हाय हाय ऐसा वारंवार कहती हुई पांचाली बाहर निकली ॥ ३०४ ॥ पांचालीका वचन सुनकर और उत्तम तटको फोडकर तथा अखंड रूपसे वृक्षको मूलसे उखाडकर जिसके केश छुट गये हैं ऐसा भीम उसको हाथमें लेकर वायुके समान उस समय दौडने लगा। अहो क्या यह क्षय करनेवाला साक्षात् राक्षस शीघ्र आ रहा है ? अथवा सब लोगोंको विकल करनेवाला यह काल आया है ऐसा आश्चर्यकारक संशय जनोंमें उत्पन्न करनेवाला भीम हाथमें वृक्ष लेकर दौडने लगा। उस समय उसके दर्शनसेही वे राजसेवक उस शवको छोडकर भयपीडित होकर वहांसे भागने लगे । कलकल शब्द करनेवाला और कृतान्त-यमके समान भयंकर और हाथीके समान उद्धत भीमसेन उनके पीछे दौडने लगा। भागे हुए वीर पुरुष पीछे लौटकर न देखते थे और न खडे होते थे। अहो भययुक्त कौन मनुष्य मरणके भयसे स्थिरताको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy