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________________ पाण्डवपुराणम् बने कुरुष्व संकेतं श्वो निशायां सुसुन्दरी । यत्र नो जायते केषां प्रवेशो वेषधारिणि ॥२७४ पुनः सा द्रौपदी प्रातर्गता कीचकसंनिधिम् । कपटाल्लम्पटं प्राह स्मरसंमिनमानसम् ॥ भवतो रोचते यत्र संकेतं कुरु तत्र हि । सोऽवदन्नाव्यशालायां सायमागच्छ मानिनि ॥२७६ त्वदिष्टमिष्टमिष्टेन पूरयिष्यामि मालिनि । इत्युक्त्वा मारुतिं गत्वा व्याजहार तदुद्भवम् ॥ श्रुत्वा भीमः प्रहर्षात्मा सायं सीमन्तिनीसमम् । रूपं निरूपयामास स्फुरत्सौभाग्यसंकुलम् ।। दधौ स नूपुरं पादे सुकल्यां कटिमेखलाम् । करयोः कङ्कणं रम्यं हारं वक्षसि लक्षितम् ।। कर्णयोः कुण्डले रम्ये. माले तिलकमद्भुतम् । अञ्जनं नेत्रयोमूनि चूडामणि स्फुरत्प्रभम् ।। फुल्लिकापुष्पनागैश्वालङ्कृताकृतिधारिणी । सीमन्तिनीव भूत्वासौ कुर्वती विभ्रमं परम् ।।२८१ रतिर्वा किं शची वाहों लक्ष्मीर्वा किं भुवं गता । कुर्वती विभ्रमं चागात्सा संकेतनिकेतनम् ।। तत्र गत्वा क्षणं भीमो यावत्तिष्ठति निर्भयः । तावदायात्स्मराक्रान्तः कीचकस्तद्गताशयः ।। तमोविभागतः सोऽयं मुखरागरसोत्कटा। इयं द्रपदसंजाता कृत्वेत्यासीत्तदुन्मुखः ।।२८४ तामिमां मन्यमानः स तत्करग्रहणं व्यधात् । यावत्तत्करकार्कश्यं तावल्लग्नं विवेद च ॥२८५ ख़तंत्र दासीका वेष धारण करनेवाली हे द्रौपदी, जहां किसीका प्रवेश नहीं होगा ऐसे स्थानमें तू कल रात्रीमें संकेत निश्चित कर ॥ २७३-२७४ ॥ पुनः प्रातःकालमें वह द्रौपदी कीचकके पास गई और मदनने जिसका मन विदीर्ण किया है ऐसे लंपटी कीचकको कपटसे कहने लगी- " तुझे जहां रुचि होगी वहां तू संकेत निश्चित कर। तब उसने कहा, कि हे मानवती मालिनी नाट्यशालामें तू सायंकालके समय आ । वहां तुझे इष्ट वस्तु देकर तेरी इष्ट कामना मैं पूर्ण करूंगा। तब द्रौपदीने मारुतिके पास-भीमके पास जाकर उससे उत्पन्न हुआ सब वृत्तान्त कहा ॥ २७५२७७॥ उसके सुननेसे भीम अतिशय हर्षित हुआ। सायंकालमें सुवासिनी स्त्रीके समान रूप उसने धारण किया जो कि चमकनेवाले सौभाग्यसे युक्त था। उसने अपने चरणोंमें नूपुर धारण किये और कमरपर करधौनी, हाथोंमें कंकण और हृदयपर सुंदर हार धारण किया। अपने दोनों कानोंमें रम्य कुण्डल, भालप्रदेशमें अद्भुत-आश्चर्यकारक कुंकुमतिलक, दोनों आंखोंमें अञ्जन, और मस्तकपर चमकनेवाली कान्तिका चूडामणि उसने धारण किया। फुल्लिका, पुष्पनाग आदिकोंसे वह अलंकृत हुआ। स्त्रीकी आकृति धारण करनेवाला वह भीम हावभावादि अभिनय करनेवाली स्त्रीके समान होकर संकेतगृहको जाने लगा। उस समय मानो वह रति अथवा इंद्राणी या लक्ष्मी पृथ्वीतलपर आई है ऐसा लोग समझने लगे ॥ २७८-२८२ ॥ वहां जाकर निर्भय भीम कुछ क्षणतक बैठाही था कि इतनेमें जिसका मन सैरन्ध्रीपर लुब्ध हुआ है ऐसा कामविह्वल कीचक वहां आया। संकेतस्थानमें अंधकारका अविभाग था अर्थात् निबिड अंधकार था। मुखके ऊपर दीखनेवाले प्रीतिरससे भरी हुई यह द्रौपदी है ऐसा समझकर वह कीचक उसके पास आया। उस भीमको द्रौपदी समझ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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