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पाण्डवपुराणम् पदप्रहारघातेन काश्यपी कंपयन्पराम् । पचाकरं प्रपेदेऽसौ परमो विपुलोदरः ॥१८६ . गतस्तत्र ददर्शासौ पतितांस्त्रीन्सुबान्धवान् । हाकारमुखरः क्षीणो विलक्षः क्षीणमानसः ।। विललापेति हा दैव किमनिष्टमनुष्ठितम् । अद्यैव पतिता लोकास्त्रयो वा बान्धवा मम॥१८८
बान्धवांस्त्रीन्विमुच्याहं क बजामि स्थितिं भजे ।
ककेन वचनं वच्मि क पश्यामि सहोदरान् ॥ १८९ पावनिर्विलपमेवमपतन्मर्छया भुवि । कृच्छ्रेण च्छिन्नशाखीव मुक्तशोभो गतक्रियः ॥१९० वायविर्वायुना जातस्तत्रत्येन पयःकणैः । गतमूच्छेः समुत्थाय पश्यति स्म दिशो दश ॥ उवाच पावनिश्चेति हता मे येन वान्धवाः। तमीले चेत्स्वहस्तेन हत्वा दास्यामि दिग्बलिम्।। ततो गगनमार्गस्थो वृषोऽवादीद्वचो वरम् । यः कोहि बलवाञ्लोके प्रविश्य सरसं सरः॥ पयः पियति तस्यैव शक्तिं वेमि निरङ्कुशाम् । इत्युक्ते पावनिस्तत्र प्रविश्य स्नातवाञ्जले ॥ पपौ परमपानीयं पावनिस्तस्य निर्भयः । निर्गतो यावदास्ते स समुत्कृष्टमहाबलः ॥१९५ तावद्विषेण संछिनो मुमूर्छ धरणीमितः । न विदन्विदितात्मापि खेष्टानिष्टानि किंचन ॥ तावद्युधिष्ठिरो धीमान्विषण्णो निजचेतसि । अचिन्तयचिरं चित्ते नायाता मम बान्धवाः ।। स उत्थाय स्थितस्तत्र वनषण्डं विलोकयन् । ददर्श पतितान्भ्रातृनितस्ततः सुमूच्छितान् ।।
क्षीण हुआ-दुःखी हुआ व क्षीण होकर " हा दैव, तूने यह अनिष्ट कार्य क्यों उत्पन्न किया ? मेरे ये तीनों बांधव त्रैलोक्यके समान आज गिर गये हैं। आज इन तीनों बांधवोंको छोडकर मैं कहां जाऊं और मुझे कहां स्थिति-शांति प्राप्त होगी? अब मैं किनके साथ बोलूं और मेरे बांधवोंका मुझे कहां दर्शन होगा" इसप्रकार विलाप करनेवाला भीमराज मूळसे जमीन पर गिर गया। टूटे हुए वृक्षके समान इस संकटसे भीम शोभारहित और निश्चेष्ट हुआ। वहांके जलकणोंसे और हवासे भीमसेनकी मूर्छा नष्ट हुई। ऊठ करके वह दश दिशाओंको देखने लगा। और इस प्रकारसे बोलने लगा--- " जिसने मेरे बांधवोंको मार डाला है उसको यदि मैं देख लूंगा तो अपने हाथसे उसे मारकर उसको दशदिशाओंमें बलि दूंगा।" ॥ १८४-१९२ ॥ तदनंतर आकाशमार्गमें खडा होकर धर्मदेव श्रेष्ठ भाषण बोलने लगा। " इस जगतमें जो कोई बलवान् होगा वह सरोवरमें प्रवेश कर यदि उसका जल पिएगा तो मैं उसकी अप्रतिहत शक्ति जानू ।" तब भीमने सरोवरमें प्रवेश कर स्नान किया और उसका अच्छा पानी निर्भय होकर प्राशन किया। सरोवरसे बाहर निकला हुआ, उत्कृष्ट महाबलका धारक भीम तटपर बैठा था इतनेमें विषसे व्याप्त होकर, पृथ्वीपर गिर गया और मूर्छित हुआ। विद्वान् ऐसा भीम भी अपना इष्टानिष्ट कुछ भी जाननेमें समर्थ नहीं था। उतनेमें विद्वान् युधिष्ठिर अपने मनमें खिन्न हुआ बहुत देरतक विचार करने लगा कि, “ मेरे बांधव क्यों नहीं आये ? तदनंतर वह उठ करके वहां वनप्रदेश देखता हुआ इतस्ततः मूछित
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