________________
सप्तदर्श पर्व
तेन कासारती तौ कनिष्ठौ गतजीवितौ । इव वीक्ष्य विषण्णेन रुरुदे करुणस्वरम् ॥१७५ अहो किं पतिता भूमौ सूर्याचन्द्रमसौ च खात् ।
वा धर्मपुत्रस्य पतितौ किं महाहवे ।। १७६
किमुत्तरं प्रदास्याम्यनयोर्भ्रात्रे सुखात्मने । विलप्येति चिरं चित्ते दधार धीरतामसौ ॥ १७७ पुनर्धनंजयः क्रुद्धो धृत्वा गाण्डीवसद्धनुः । करे बभाण भीमेन स्वरेण क्षोभयन्दिशः ॥ भ्रातरौ न केनापि हतौ हन्त हतात्मना । मम तं प्रेषयिष्यामि सत्वरं यममन्दिरे ॥ १७९ बभाण भीतिमुक्तात्मा साक्षाद्धर्म इवोन्नतः । धर्मः प्रच्छन्नरूपेण पार्थं प्रत्यर्थिनं यथा ।। १८० तव भ्रातृयुगं योग्यं युगपद्विनिपातितम् । मया चेच्छक्तिमांस्त्वं हि कुरु तर्हि ममोदितम् || मत्कासारे क्रुधं त्यक्त्वा पिपासां हन्तुमुल्बणाम् । पयः पिब पवित्रात्मन्यद्यस्ति बलवान्भवान् ।। १८२
इत्युक्ते क्रुद्धचित्तेन पपे तस्य सरोजलम् । भ्रमद्देहः पपातासौ विषेणेव जलेन च ॥ १८३ यावत्प्रत्येति पार्थो न भीमं प्रोवाच धर्मतुक् । पार्थः किं न समायातो विलम्बयति केन वा ।। त्वं याहि ब्रूहि तं लात्वा समेहि हितकारक । इत्युक्ते पावनिः प्रीतामवनिं विदधद्गतः ॥
१७७ ॥ पुनः कुपित हुए धनंजयने अपने हाथमें उत्तम गाण्डीव धनुष्य धारण कर और भयंकर स्वरसे दिशाओंको क्षुब्ध करता हुआ इस प्रकारसे बोलने लगा- “ खेद है, कि - किसी दुष्टात्माने मेरे दो भाईयों को मार डाला है। मैं उसे शीघ्र यममंदिरमें भेज देता हूं।" भीतिरहित आत्मा जिसका है और साक्षाद्धर्मके समान उन्नत ऐसा धर्म नामक देव गुप्तरूप से मानो शत्रुरूप अर्जुनको बोलने लगा - " तेरे दो भाई योग्य, शूर हैं उनको मैंने युगपत् मार दिया है, तू यदि शक्तिमान् है तो मेरा भाषण सुन--"यदि तू शक्तिमान् है तो हे पवित्रात्मन् मेरे तालावमें तू क्रोध छोडकर तीव्र पिपासाको नष्ट करनेके लिये जलपान कर " ऐसा बोलनेपर कुपितचित्त होकर उसने तालावका जल पिया | विष समान उस जलसे जिसका देह भ्रमयुक्त हुआ है ऐसा अर्जुन जमीनपर गिर गया ॥ १७८-१८३ ॥ अभीतक अर्जुन क्यों नहीं आता है ऐसा भीमको धर्मराज पूछने लगे । अर्जुन क्यों नहीं आया और किस कारणसे वह विलम्ब कर रहा है । हे हित करनेवाला वत्स भीम, तू जा उसको देरीका कारण पूछ और उसको लेकर आ । ऐसा धर्मराजने कहा तब भीम पृथ्वीको आनंदित करता हुआ वहांसे चला गया। अपने चरणाघातसे उत्तम पृथ्वीको कंपित करता हुआ वह श्रेष्ठ विपुलोदर - भीम तालावको प्राप्त हुआ। वहां गये हुए भीमने अपने पडे हुए तीनों सज्जन बंधुओं को देखा। देखकर भीम हाहाकार करने लगा, उसका चित्त ठिकानेपर नहीं रहा, उसका मन
।
Jain Education International
१ प. कोषचित्तेन ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org