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पाण्डवपुराणम् मानमुक्तो महाशूरो दुर्योधनमहीपतिः । आहवे विह्वलस्तेनाहूतचित्रागवैरिणा॥९७ चित्राङ्गः कौरवोऽन्योन्यं प्रहरन्तौ वरेषुभिः । वीक्ष्यमाणौ सुरौघेण शंसितौ तौ पुनः पुनः।। युध्यमानं स्थिरं युद्धे चित्राङ्गं वीक्ष्य चार्जुनः । शशंसान्यमहाशिष्यानादिदेश युयुत्सया ।। लब्धलक्ष्यस्तु गन्धर्वो लब्ध्वावसरमुत्तमम् । चिच्छेद तद्ध्वजं धीमान्पत्रिणा शीघ्रगामिना । गन्धर्वोपातयत्तूर्ण गन्धौं तद्रथस्थितौ । दौर्योधनं रथं बाणैर्बभञ्ज भुजविक्रमी ॥१०१ जगाद पार्थधानुष्को गन्धर्वः कौरवं प्रति । क यासि सांप्रतं दुष्ट खलीकृत्य जगत्खल ॥ दौर्जन्येन नरान्हन्तुं प्रवृत्तः पापपण्डितः । पश्येदानीं फलं तस्य प्राप्तं पाप गतायुध ॥१०३ इत्युक्त्वा नागपाशेन पपाश पशुवन्नृपम् । तस्मिन्बद्धे भटा भक्ता भेजुः काष्ठां भयावहाम् ।। गन्धर्वस्य यशो भूमौ बभ्राम विधुनिर्मलम् । दुर्योधनसुबन्धोत्थं न्यायात्कस्य जयो न हि ॥ तावता पत्तयः सर्वे सादिनश्च विषादिनः । नियन्तारो गजस्थाश्च कौरवाः शुचमाययुः ॥ पापेन प्राप्तदुर्माना दुर्योधनजनाः क्षणात् । मोहिता मोहबाणेन मुमूच्र्छश्छमकारिणः॥१०७ तदा भानुमती प्राप तत्प्रिया प्रियवादिनी । प्रियबन्धनजां श्रुत्वा किंवदन्ती रुदत्यलम् ।।
हुआ, विह्वल हुए उस दुर्योधनको चित्राङ्ग विद्याधरने बुलाया। अन्योन्यको उत्तम बाणोंसे प्रहार करनेवाले चित्राङ्ग और कौरव देवोके द्वारा देखे गये और पुनः पुनः प्रशंसित हुए ॥ ९५-९८ ॥ अर्जुनने युद्ध में स्थिरतासे लडनेवाले चित्राङ्गको देखकर उसकी स्तुति की और युद्ध करनेके लिये अन्य महाशिष्योंको आज्ञा दी ॥ ९९ ।। जिसको लक्ष्यकी प्राप्ति हुई है ऐसे बुद्धिमान् गंधर्वने उत्तम अवसर प्राप्त करके शीघ्र गतिवाले बाणसे उसका ध्वज तोड दिया ॥ १०॥ गंधर्व विद्याधरने दुर्योधनके रथको जोडे हुए घोडोंको गिराया। तथा दुर्योधनका रथ बाहुप्रतापी गंधर्वने तोड दिया ॥१०१ ॥ अर्जुनका शिष्य धनुर्धारी गन्धर्व कौरवको कहने लगा, कि- “हे दुष्ट दुर्योधन, जगत्को पीडा देकर अब तूं कहाँ जा रहा है ? पापमें चतुर तू दुष्टपनसे मनुष्योंको मारनेके लिये प्रवृत्त हुआ है, परंतु जिसका आयुध नष्ट हुआ है ऐसे हे पापी दुर्योधन उसका फल अब प्राप्त होनेका समय आया है देख। ऐसा कहकर उसने राजाको ( दुर्योधनको ) पशुके समान नागपाशसे बद्ध किया"। उसको बांधनेपर उसके भक्त ऐसे वीर भयावह अवस्थाको प्राप्त हुए ॥ १०२-१०४ ॥ उस समय दुर्योधनको बांधनेसे गंधर्वका उत्पन्न हुआ चन्द्रके समान निर्मल यश भूतलपर फैल गया। योग्यही है कि न्यायसे किसे जय नहीं मिलेगा? उस समय दुर्योधनके सर्व पैदल सैन्य, घुडसवार सैन्य खिन्न हुआ और गजपर आरोहण करनेवाले वीरपुरुष शोकयुक्त हुए ॥ १०६ ॥ पापोदयसे दुष्ट अभिमानको धारण करनेवाले दुर्योधनके सैन्यको तत्काल मोहबाणसे मोहित किया। वे कपट करनेवाले लोग मूछित हो गये ॥ १०७ ।।
[ भानुमतिकी पतिभिक्षायाचना ] उस समय मधुर भाषण करनेवाली दुर्योधनकी प्रियपत्नी
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