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सप्तदशं पर्व
३४९ तन्निशम्य तदा क्रुद्धो वैरिकादम्बकादवः । चित्राङ्गो गर्वसंपन्नो रणं कर्तुं समुद्यतः ॥८६ तावद्दौर्योधनं सन्य संनद्धं बन्धुबन्धुरम् । चतुरङ्ग रणं कर्तुं समायासीत्सहोदरैः ।।८७ तदा क्रोधाग्निसंतप्तश्चित्राङ्गश्चित्रचित्तभृत् । गन्धवण दधावाशु धवलं दधता यशः ।।८८ संक्षुब्धः सैन्यजलधिश्चित्राङ्गागस्तिना तदा । शोषितोऽशेषमात्रोऽपि विचित्रेण महात्मना ॥ शल्यश्चाथ विशल्यश्च सबलो दुष्टमानसः। दुःशासनादयोऽप्यन्ये समुत्तस्थू रणोत्सुकाः॥९० चित्राङ्गशरसंघातैश्छिन्ना बाणास्तदीरिताः । जेनीयन्ते धनैर्घातैस्तेऽन्योन्यं रणलालसाः॥ प्रहरन्तो महाबाणेगेदाभिः कुन्तकोटिभिः । तीक्ष्णधाराधरैः खगर्योयुध्यन्ते भटा रणे।।९२ मुशलैारिता मत्ता मनो मानं विमुच्य च । म्रियन्ते तद्रणे किं न यदनिष्टमजायत ॥९३ हलैर्विदारिता हृद्ये हृदये च पतन्त्यहो । भटाः संघट्टसंपन्ना भूगर्भा इव संभ्रमात् ॥९४ धार्तराष्ट्रमहावाणैर्विद्धं वीक्ष्य निजं बलम् । विव्याध तारगन्धर्वो मोहनेन शरेण तान् ।।९५ मोहितं तेन बाणेन सकलं विपुलं बलम् । अयशोभाजनं भूत्वैकको दुर्योधनः स्थितः ॥९६
धनका चतुरंग सैन्य युद्धके लिये उसके भाईयोंके साथ आया। उस समय क्रोधाग्निसे संतप्त, नाना प्रकारके विचारोंको धारण करनेवाला चित्रांग शुभ यश धारण करनेवाले गंधर्व विद्याधरके साथ युद्ध करनेके लिये वेगसे जाने लगा। विचित्र महात्मा ऐसे चित्रांगदरूपी अगस्तिके द्वारा संक्षुब्ध हुआ वह संपूर्ण सैन्य-समुद्र शुष्क किया गया। शल्य, विशल्य, सबल, दुष्टमानस, दुःशासन आदिक और अन्य भी योद्धा रणके लिये उत्सुक होकर सिद्ध हो गये ॥ ८७-९० ॥
[चित्रांगदसे दुर्योधनका बंधन ] चित्रांगके बाणसमूहसे दुर्योधनके सैन्यने छोडे हुए बाण बीचहीमें तोड डाले। रणकी अभिलाषा जिनको हैं ऐसे दोनों सैन्य आपसमें अतिशय दृढ आघात करने लगे। बडे बडे बाण, अनेक गदा, भालाके अग्रभाग और, तीक्ष्ण धाराओंको धारण करनेवाले खडगादि साधनोंसे योद्धा खूब लडने लगे । मुशलोंसे पीटे गये उन्मत्त पुरुष मनका अभिमान छोडकर युद्धमें मरने लगे। जो अनिष्ट नहीं हैं ऐसा युद्धमें क्या था ? अर्थात् युद्धमें प्रायः अनिष्टही होता है। मनोहर हृदयमें हलके द्वारा विदीर्ण किया गया वीर पुरुषोंका समूह मानो गडबडीसे इकट्ठे हुए पृथ्वीके गर्भ है क्या ? ॥ ९१-९४ ॥ धृतराष्ट्रके पुत्रोंके द्वारा अपना सैन्य विद्ध हुआ देखकर तारगंधर्वने मोहनशरके द्वारा उनको विद्ध किया। उस बाणसे दुर्योधनका विपुल सैन्य मोहित हुआ और दुर्योधन अपकीर्तिका पात्र बनकर अकेला रहा। युद्धमें महाशूर, दुर्योधन राजा अभिमानगलित
ग. वैरकारि च तद्वचः। प. वैरिकानन सहवः । ब. वैरिकाननशोषकः ।
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