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षोडशं पर्व
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ते गत्वा तत्र संनत्य नरं विनयसंयुताः । कार्यसिद्धयै वचो दत्च्त्वा निन्युर्द्वारावतीं पुरीम् ॥ तत्रैत्य परमोत्साहादातोद्यवरनादतः । नटनटीनटोत्साहान्नानावित्तप्रदानतः ॥५९ मण्डपे सुमुहूर्तेऽथ सुभद्रां परिणीतवान् । पार्थः परमया प्रीत्या रन्तुकामस्तथानिशम् ||६० तद्विवाहक्षणे क्षिप्रं चत्वारश्चतुरा नराः । पाण्डवास्तद्विवाहाय हूता यादवराजभिः ॥६१ ततो लक्ष्मीमतिं प्राप ज्येष्ठः शेषवतीं पराम् । भीमोऽथ नकुलो रम्यां विजयां चानुजो रतिम् ॥ एवं सर्वेषु भूपेषु यथास्थानं गतेषु च । कृष्णः पार्थेन संप्राप रन्तुं चोपवनं परम् ॥६३ तत्र तौ सफलौ रम्ये रेमाते माधवार्जुनौ । जलकल्लोलमालाभिश्छादयन्तौ परस्परम् ॥६४ तावता गच्छता तत्र ब्राह्मणेन धनंजयः । अवाचि चारुणा वाक्यं परं संतोषदायिना ॥ ६५ भो पार्थ भोजनं देहि मां प्रीणय सुवस्तुभिः । अहं दावानलो राजंस्त्वं श्रीकौरवनन्दनः ॥६६ खण्डयस्त्र वनं मेऽद्यानुचरैश्चरितार्थिभिः । श्रुत्वा तद्वचनं पार्थो बम्भणीति स्म भासुरः ॥६७ रथो नास्ति ममाद्यापि धनुर्धर्ता न कथन । सर्वकार्यकरा दिव्यशरा वर्तन्त एव न ॥ ६८
हरिने भेज दिये । वे मंत्री गये । विनयनम्र होकर उन्होंने अर्जुनको नमस्कार किया और कार्यसिद्धिके लिये वचन देकर उसे द्वारावती नगरीमें ले गये ।। ५७-५८ ।।
[ यादवकुलकी कन्याओंसे पांडवों का विवाह ] बडे उत्साहसे अर्जुन द्वारावतीमें आया । उस समय अनेक वाद्योंका ध्वनि होने लगा । नृत्य करनेवाले नट और नटियोंका उत्साह देखकर अर्जुनने उनको बहुत द्रव्य दिया और मण्डपमें सुमुहूर्तपर सुभद्राके साथ उसने अपना विवाह किया। उसके अनंतर अत्यंत प्रीतिसे उसके साथ वह हमेशा क्रीडा करने लगा । ५९-६० ॥ ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिरका विवाह लक्ष्मीमती के साथ, भीमका विवाह सुंदर शेषवती कन्या के साथ, नकुलका विवाह रमणीय विजयाके साथ और सहदेवका विवाह रतिदेवी के साथ हुआ। इस प्रकार विवाह होने पर सर्व राजा अपने अपने स्थानको चले जानेपर कृष्ण अर्जुन के साथ उत्तम उपवन में क्रीडा करने के लिये गये । ६१-६३ | उस रम्य वनमें जिनकी इच्छा सफल हुई है, ऐसे वे श्रीकृष्ण और अर्जुन जलकी तरंगमालाओंसे अन्योन्यको आच्छादित करते हुए क्रीडा करने लगे ॥ ६४ ॥
[ खाण्डववनदाह ] अतिशय सन्तोष देनेवाले दावानल नामक ब्राह्मणने उपवन में आकर मधुर वाक्योंसे अर्जुनसे बोलना प्रारंभ किया । " हे अर्जुन मुझे भोजन दे । अच्छी वस्तुयें देकर आनंदित कर । हे राजन्, मैं दावानल हूं, और तू लक्ष्मीसंपन्न कौरववंशको आनंदित करनेवाला अर्जुन है । आज कृतकृत्य होनेवाले मेरे अनुचरोंको साथमें लेकर खाण्डव नामक वनका नाश कर । दावानलका भाषण सुनकर तेजस्वी अर्जुन उसे बोला, कि " हे दावानल, आज मेरे पास रथ नहीं है, तथा कोई धनुर्धारी मनुष्य भी नहीं हैं और सर्व कार्य करनेवाले दिव्यशर भी नही हैं" ॥ ६५-६८ ॥ अर्जुनका भाषण सुनकर शत्रु जिसके साथ नहीं लड सकेंगे ऐसा मर्कटचिह्न से
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